विनीत कांत पाराशर
अगर लोकसभा चुनाव से पहले आत्मविश्वास से भरी बीजेपी वोटर्स के लिए कुछ भी अतिरिक्त न करके अंतरिम बजट पेश करने में खुश थी, तो नई सरकार का पहला पूर्ण बजट रियायतें और वित्तीय प्रोत्साहन देकर इस कमी की भरपाई करने की कोशिश करता दिख रहा। चुनाव नतीजों ने दिखाया कि केवल ‘मोदी सरकार की गारंटी’ का वादा वोटरों को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त नहीं था: यह बजट पहले जो अस्पष्ट रूप से गारंटी दी गई थी, उसे ठोस रूप देता है।
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद बड़ा राजनीतिक बदलाव यह है कि बीजेपी को अब महत्वपूर्ण सहयोगियों की राजनीतिक मांगों को सुनने और समायोजित करने की जरूरत है। इस तरह बजट में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर जोर रहा। बिहार और आंध्र प्रदेश पर बहुत जोर रहा। ये एनडीए सरकार के बुनियादी ढांचे में निवेश पर जोर की चली आ रही नीति के हिसाब से ही है। हालांकि, ये लोकसभा में बीजेपी के सहयोगी दलों को सबसे ज्यादा सांसद भेजने वाले दो राज्यों की ओर थोड़ा झुका हुआ है।
बिहार को अमृतसर-कोलकाता औद्योगिक गलियारे के हिस्से के रूप में गया में एक इंडस्ट्रियल नोड मिली है। इसके अलावा कई सड़क संपर्क परियोजनाएं, एयरपोर्ट्स, मेडिकल कॉलेज और बेहतर पर्यटन बुनियादी ढांचा भी मिला है। आंध्र प्रदेश को अमरावती में अपनी नई राजधानी के लिए 15,000 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता, पोलावरम सिंचाई परियोजना के लिए अतिरिक्त फंड, विजाग-चेन्नई औद्योगिक गलियारे पर कोप्पार्थी नोड और पिछड़े क्षेत्रों के लिए अनुदान देने का वादा किया गया है।
लेकिन बजट का सबसे बड़ा विषय युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी की समस्या को दूर करने पर केंद्रित था। एनडीए के अधिकांश बजटों में रोजगार सृजन को बढ़ावा देने की कोशिशें की गई हैं, लेकिन यह बजट इस दिशा में पूरी तरह से आगे बढ़ रहा है। एक बड़ी पहल ईपीएफओ के साथ पंजीकृत पहली बार काम करने वाले कर्मचारियों के लिए एक महीने का वेतन (15,000 रुपये तक) देने की पेशकश है- जिससे 2.1 करोड़ युवाओं को फायदा पहुंचने की उम्मीद है।
इसके अलावा, मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में अतिरिक्त रोजगार को प्रोत्साहित करने की स्कीम है जो कर्मचारियों और नियोक्ताओं दोनों को प्रोत्साहित करने वाली है। 500 बड़ी कंपनियों में अप्रेंटिसशिप को प्रोत्साहित करने की योजना से 5 साल में एक करोड़ युवाओं को कौशल विकास के अवसर मिलने की उम्मीद है, जिसमें सरकार इंटर्नशिप भत्ते के रूप में 5,000 रुपये प्रति महीने देगी। ये योजनाएं फिर से मोदी सरकार के जॉब मार्केट को औपचारिक बनाने के दर्शन के अनुरूप हैं।
दो अन्य बजट प्रस्ताव भी रोजगार पैदा करने के लिहाज से अहम हैं। एक एमएसएमई से जुड़ा है, और दूसरा शहरी विकास से। दोनों ही रोजगार सृजन में भी अच्छा योगदान देते हैं। नोटबंदी और उसके बाद जीएसटी के दबाव से बुरी तरह प्रभावित रहे एमएसएमई सेक्टर को विशेष सहायता दी जा रही है। मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में एमएसएमई के लिए एक क्रेडिट गारंटी स्कीम और मुश्किल वक्त में बेहतर क्रेडिट सपोर्ट से जुड़ी योजना है। स्टार्ट-अप सेक्टर को बूस्ट करने के लिए एंजल टैक्स को खत्म कर दिया गया है। मुद्रा लोन की सीमा बढ़ाकर 20 लाख कर दी गई है। इसका मतलब है कि सबसे महत्वपूर्ण रोजगार सृजन क्षेत्र- छोटी कंपनियों और स्टार्ट-अप को बढ़ावा दिया जा रहा है।
साथ ही, शहरी निवेश पर फिर से जोर दिया गया है। इस तरह एक बार फिर इसे मान्यता दी गई है कि खेतों से निकालकर और ज्यादा लोगों को शहरी रोजगार देने की जरूरत है। शहरों को विकास केन्द्रों के रूप में विकसित किया जाएगा। समय-समय पर नीतिगत फैसलों के जरिए शहरों के पुनर्विकास को प्रोत्साहित किया जाएगा। 30 लाख से अधिक आबादी वाले 14 बड़े शहरों को ट्रांजिट हब के तौर पर विकसित किया जाएगा। 1 लाख शहरी गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत शहरी आवास को प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके लिए लिए 10 लाख करोड़ रुपये खर्च किया जाएगा, जिसमें से 22% अगले 5 वर्षों में केंद्र से आएगा।
बजट का निराशाजनक हिस्सा वेतनभोगी मध्यम वर्ग से जुड़ा है। वेतन पाने वाले मध्यम वर्ग को दिए जाने वाले आधे-अधूरे लाभ निराश करने वाले हैं, जो लगभग हर चीज की लागत में वृद्धि की भरपाई नहीं करते हैं। बाजारों को भी झटका लगा जब लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स (LTCG) को 10% से बढ़ाकर 12.5% कर दिया गया। इसके अलावा अचल संपत्ति की बिक्री पर इंडेक्सेशन लाभ आंशिक रूप से समाप्त कर दिए गए हैं।
कुल मिलाकर, मोदी सरकार ने चुनाव नतीजों से निकले संदेश को सही ढंग से पढ़ा है और खुद को आर्थिक और राजनीतिक रूप से उबरने के लिए जगह दी है।