मेरठ। समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता और रामपुर से सांसद आजम खान पर एक के बाद एक कानूनी शिकंजा कसने के बाद अब उनके ड्रीम प्रॉजेक्ट जौहर यूनिवर्सिटी पर भी खतरा मंडराने लगा है। उनके हाथ से इस यूनिवसिर्टी का संचालन छिन सकता है। चर्चा है कि प्रदेश सरकार इस यूनिवर्सिटी पर प्रशासक नियुक्त कर सकती है। फर्जी बर्थ सर्टिफिकेट मामले में आजम अपनी पत्नी तंजीन और बेटे अब्दुल्ला के साथ अभी जेल में हैं।
जिला प्रशासन की तरफ से यूनिवर्सिटी को कब्जे में लेने की सलाह की रिपोर्ट शासन को भेजी गई है। प्रशासन ने सरकार यह भी जानकारी दी है कि यूनिवर्सिटी की गतिविधियों का संचालन कर रही ट्रस्ट के अहम ओहदेदारों के जेल चले जाने के बाद आगे उसकी देखरेख कौन करेगा, इसकी रिपोर्ट भी नहीं मिली है।
यूनिवर्सिटी में आजम के अपनों का दबदबा
दरअसल, समाजवादी पार्टी की सरकार में कद्दावर मंत्री रहते आजम खान ने जौहर यूनिवर्सिटी की स्थापना की थी। इसके लिए देश-विदेश से चंदे के साथ सरकारी मदद भी मिली थी। यूनिवर्सिटी का संचालन एक ट्रस्ट करती है। यूनिवर्सिटी के संस्थापक और कुलाधिपति खुद आजम खान हैं।
वह ट्रस्ट के अध्यक्ष भी हैं। उनके पूर्व विधायक बेटे अब्दुल्ला आजम सीईओ के साथ ट्रस्ट के सदस्य हैं। आजम की पत्नी तंजीन फातिमा (राज्यसभा सांसद) और रामपुर जिला सहकारी बैंक के पूर्व अध्यक्ष सलीम कासिम भी ट्रस्ट के खास सदस्य हैं।
फिलहाल ऐसे हैं हालात
कुलाधिपति आजम खान, सीईओ अब्दुल्ला आजम, सदस्य तंजीन फातिमा और सलीम कासिम चारों जेल में हैं। जौहर ट्रस्ट के अध्यक्ष आजम खान, सीईओ अब्दुल्ला आजम और पत्नी तंजीन फातिमा पर धोखाधड़ी और सलीम कासिम पर फर्जीवाड़े के आरोप हैं। बेटे के फर्जी बर्थ सर्टिफिकेट मामले में आजम अपनी पत्नी और बेटे के साथ 26 फरवरी से जेल में हैं। सलीम कासिम हाल में अदालत में सरेंडर कर जेल गए हैं।
इसी के साथ जौहर ट्रस्ट पर आरोप है कि उसने अपने हर साल सरकार को भेजी जाने वाली रिपोर्ट नहीं भेजी है। यह सीधे तौर पर नियमों का उल्लंघन है। नियमों के तहत ट्रस्ट को हर साल एक अप्रैल को जिला प्रशासन को प्रगति रिपोर्ट देनी चाहिए। इस लेटलतीफी पर जांच भी बैठ गई है। एसडीएम सदर रामपुर जांच अफसर हैं।
शासन को भेजी रिपोर्ट
जानकारी के मुताबिक, रामपुर प्रशासन की तरफ से एक रिपोर्ट शासन को भेजी गई है। इसमें मौजूदा हालात का हवाला देते हुए कहा गया है कि सभी चाहते हैं कि यूनिवर्सिटी चलती रहे, इसलिए इसे सरकार टेकओवर कर ले। रिपोर्ट में दलील दी गई है कि प्रदेश सरकार का कानून है कि प्राइवेट यूनिवर्सिटी में अगर वित्तीय और प्रशासनिक अनियमितता पाई जाती है, तब प्रशासक नियुक्त किया जा सकता है।
जिला प्रशासन का यह भी तर्क भी है कि यूनिवर्सिटी में काफी जमीन सरकारी हैं। साथ ही जमीन लेने के दौरान स्टांप लगाने से अनियमितता हुई। अल्पसंख्यक यूनिवर्सिटी में गरीबों को मुफ्त में शिक्षा नहीं दी जा रही है। लाइब्रेरी से चोरी की किताबें बरामद की गई। किसानों की जमीन कब्जे की शिकायतें सही पाई गई। काफी जमीन वक्फ के होने के सबूत हैं। चकरोड और कोसी नदी क्षेत्र की 140 बीघा जमीन मिलाने के साथ दलितों की 101 बीघा जमीन नियम के खिलाफ लेकर यूनिवर्सिटी में मिलाने का आरोप है।