चुनावी मौसम में चुनाव सर्वेक्षेण करवाने वालों और चुनाव विश्लेषकों की लॉटरी लग गई है। दरअसल, इस तरह का सर्वेक्षण करवाने वाली कंपनियों की डिमांड सिर्फ राजनीतिक दलों और मीडिया हाउस में ही नहीं है, अब छोटी से बड़ी कंपनियां भी इनकी सेवाएं लेने लगी हैं।
मल्टीनेशनल से लेकर स्टार्टअप कंपनियों को भी यह जानकारी चाहिए कि आने वाले चुनावों में किसकी सरकार बन रही है, चुनावी हवा का रुख किस ओर है और मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है? इसकी जरूरत इस वजह से पड़ रही है, ताकि इसी के मुताबिक वे अपने बिजनेस प्लान को आगे बढ़ाएं।
बिजनेस कंपनियों को पड़ी चुनावी सर्वे के आंकड़ों की जरूरत
इस तरह के सर्वे विधानसभा चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनाव दोनों को ध्यान में रखकर करवाए जा रहे हैं, ताकि कॉपोर्रेट कंपनियां निवेश के फैसले ले सकें और अपनी भविष्य की रणनीति तैयार कर सकें। एक रिपोर्ट के मुताबकि चुनाव विश्लेषक और सीएनएक्स के को-फाउंडर भवेश झा ने कहा है, ‘चुनावी डेटा कॉपोर्रेट्स, फंड हाउस और स्टार्टअप के लिए एक नई ईंधन की तरह है।’
कई सीईओ चुनावी हवा का रुख भांपने के लिए चुनाव से जुड़े खास डेटा की जानकारी के लिए लगातार चुनाव विशेषज्ञों के साथ संपर्क में रह रहे हैं। सीएनएक्स चुनावी सर्वे करने वाली एक कंपनी है, जो राजनीतिक पार्टियों को चुनावी रणनीति बनाने में भी मदद करती है।
वोटरों से जुड़ी हर तरह की जानकारियों की है डिमांड
झा के अनुसार सभी तरह की कंपनियां यह सर्वे कराना चाहती हैं कि चुनावों में किसकी जीत हो रही है या फिर अगला प्रधानमंत्री कौन बनने जा रहा है। ये भी आंकड़ा जुटाना चाहती हैं कि गठबंधनों की तरफ वोटरों की क्या सोच है। या फिर मतदाता देश की अर्थव्यवस्था या अन्य बातों को लेकर क्या सोच रहे हैं। उनका कहना है कि फिनटेक और गेमिंग से जुड़ी नई जमाने की कंनियों की ओर से इस तरह की जानकारी की मांग बहुत ज्यादा हो गई है, क्योंकि उन्हें इसी आधार पर अपनी नीतियां बनानी होंगी, जिससे भविष्य में उनके बिजनेस पर असर पड़ सकता है।
इन कंपनियों को कितने तरह की डेटा चाहिए और गितनी गहराई वाला विश्लेषण चाहते हैं, यह उस कंपनी के बजट पर निर्भर है। ‘सीईओ यह जानना चाहते हैं कि उन्हें दांव किस ओर लगाना है’
विशेषज्ञों का कहना है कि सिर्फ कंपनियां ही नहीं, बल्कि निवेशक और ब्रोकर्स को भी इस तरह के आंकड़ों की जरूरत पड़ रही है। मसलन, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी कंपनी आई-पैक के डायरेक्टर और को-फाउंडर प्रतीक जैन ने बताया, ‘सभी छोटे और बड़े सीईओ जानना चाहते हैं। ऐसे कई लोग हैं जो मेरे पास पहुंचते हैं, बातचीत से उन्हें यह समझने में मदद मिल सकती है कि उन्हें अपना दांव किस तरफ लगाना है।’
कंपनियों को राजनीतिक दलों गुप्त मदद देने में भी मिल सकती है सहायता
इस कारोबार से जुड़े एक अंदर के व्यक्ति ने नाम नहीं जाहिर होने देने की गुजारिश करते हुए बताया कि किसकी जीत की संभावना है, इस बारे में जानकारी ‘कॉपोर्रेट घरानों को गुप्त रूप से राजनीतिक पार्टियों को सहायता (कई मामलों में फंड) देने में मदद करती है और यह समझने में सहायता करती है कि किसके साथ जुड़ना है और किसके साथ नहीं..।’ उनके मुताबिक कई बार कॉपोर्रेट घरानों का राजनीतिक दलों से संबंध होता है और इससे उन्हें यह आकलन करने में मदद मिल सकती है कि किसके साथ ज्यादा जुड़े रहना ठीक है या फिर किससे कन्नी काट लेने में भलाई है। चुनावी डेटा उन्हें समय से पहले अपने भविष्य का रास्ता तय करने का एक मार्ग दिखा सकता है। कौन सत्ता में आएगा या कौन नहीं आएगा?
चुनाव विश्लेषक और सीएसडीएस के पूर्व डायरेक्टर संजय कुमार के मुताबिक, ‘कई लोग मेरे पास बातचीत करके यह समझने आते हैं कि कौन सत्ता में आएगा या कौन नहीं आएगा….।’ उनका कहना है, ‘बिजनेस घराने की यह चिंता होती है कि अगली सरकार कितनी स्थाई होगी।’
हजारों को मिलेगी जॉब
इसका एक अच्छा पहलू ये है कि चुनावी सरगर्मी बढ़ने के साथ अब चुनावी सर्वेक्षणों और डेटा जुटाने के लिए लोगों की मांग काफी बढ़ गई है। इस कारोबार से जुड़े लोंगे के मुताबिक उन्हें डेटा जुटाने में माहिर लोगों और जमीनी स्तर पर रिसर्च करने वाले स्थायी और तात्कालिक लोगों की जरूरत है।
सीएनएक्स वाले ने कहा कि ‘हम लोकसभा चुनाव तक विभिन्न राज्यों में रिसर्चर, डेटा एनालिस्ट्स समेत लगभग 1,000 लोगों को नियुक्त करेंगे…..।’ वहीं सी-वोटर के फाउंडर यशवंत देशमुख ने कहा कि सोशल साइंस वाले बैकग्राउंड के लोगों की भी काफी डिमांड है, जिसका फोकस खासकर महिलाओं की भर्ती करने पर है।