नई दिल्ली। राजनीतिक उठापटक के अखाड़े के रूप में महाराष्ट्र ने मंगलवार को नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया। पहले शिवसेना की जिद और उसके बाद राकांपा और कांग्रेस की रणनीति में प्रदेश की राजनीति इतनी उलझी कि नतीजा आने के एक पखवाड़े बाद आखिरकार वहां राष्ट्रपति शासन लग गया। राज्यपाल के बुलावे पर भाजपा ने सरकार बनाने से इन्कार कर दिया और शिवसेना व राकांपा तय वक्त में बहुमत का आंकड़ा दिखाने में नाकाम रहीं। लिहाजा, मंगलवार दोपहर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने केंद्र से राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर दी और कैबिनेट की मुहर लगने के बाद शाम तक राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी भी दे दी। इस दौरान विधानसभा निलंबित रहेगी। हालांकि, शिवसेना सरकार गठन के लिए कम समय दिए जाने पर सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर पहुंच गई है, लेकिन मंगलवार को उसकी याचिका पर सुनवाई नहीं हो सकी।
सरकार बनाने की हर कोशिश की गई, लेकिन संभव नहीं हो पाया: राज्यपाल
गृह मंत्रालय के अनुसार, महाराष्ट्र के राज्यपाल ने अपनी अनुशंसा में साफ लिखा कि वहां सरकार बनाने की हर कोशिश की गई, लेकिन यह संभव नहीं हो पाया। ऐसे में राष्ट्रपति शासन लगाना ही उचित होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिक्स की बैठक के लिए ब्राजील रवाना होने वाले थे, लिहाजा तत्काल कैबिनेट बैठक बुलाकर सिफारिश पर मुहर लगा दी गई। दरअसल, पिछले महीने महाराष्ट्र चुनाव का नतीजा आया था और भाजपा-शिवसेना गठबंधन को संयुक्त रूप से बहुमत मिल गया था। लेकिन मुख्यमंत्री पद की जिद में मामला इतना उलझा कि नौ नवंबर को विधानसभा की अवधि खत्म होने तक बात बन ही नहीं पाई। उसके बाद राज्यपाल ने भाजपा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन पार्टी ने स्पष्ट कर दिया कि उसके पास जरूरी 145 का आंकड़ा नहीं है। हालांकि अटकलें लगाई जा रही थीं कि भाजपा सरकार बनाएगी और मजबूरन शिवसेना साथ आएगी। लेकिन कर्नाटक की घटना से सतर्क भाजपा ने ऐसा नहीं किया।
राकांपा ने शाम तक कोशिश ही नहीं की
राज्यपाल ने दूसरा मौका 56 की संख्या लाकर दूसरे नंबर पर रही शिवसेना को दिया और उन्हें 24 घंटे का वक्त दिया गया, लेकिन सोमवार शाम तक शिवसेना को कांग्रेस और राकांपा का लिखित समर्थन नहीं मिला। शिवसेना की ओर से और 24 घंटे का वक्त मांगा गया जिसे राज्यपाल ने नकार दिया और तीसरा मौका 54 सीटों वाली राकांपा को दिया गया जिसकी मियाद मंगलवार रात 8.30 तक थी। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से राकांपा ने तय अवधि से लगभग नौ घंटे पहले सुबह 11.30 पर ही राज्यपाल कार्यालय को सूचित कर दिया कि उन्हें और वक्त चाहिए। जबकि राकांपा जानती थी कि शिवसेना को भी और वक्त नहीं मिला था।
कांग्रेस ने अब तक नहीं चुना है विधायक दल का नेता
कांग्रेस की ओर से अभी विधायक दल का नेता ही नहीं चुना गया है लिहाजा उसे बुलावा ही नहीं मिला। हालांकि इस बीच एक वक्त ऐसा आया था जब लगा कि शिवसेना-राकांपा और कांग्रेस मिलकर सरकार बनाएंगी, लेकिन इनकी सुस्ती के कारण योजना बिखर गई। राजनीतिक तौर पर तो यह अटकलें भी तेज हो गईं कि राकांपा और कांग्रेस की सुस्ती कहीं शिवसेना पर दबाव बनाने के लिए तो नहीं थी।
शिवसेना को सबसे बड़ा धक्का
फिलहाल इस पूरे घटनाक्रम में शिवसेना को ही सबसे बड़ा धक्का लगा है। अब वह राकांपा और कांग्रेस से भी मोलभाव की स्थिति में नहीं है। वह केंद्र में राजग से अलग हो गई है और वापस आने का सीधा मतलब हार होगी।
अभी भी सरकार गठन की कोशिश कर सकती हैं पार्टियां
वैसे संवैधानिक रूप से राष्ट्रपति शासन के बीच भी राजनीतिक दलों को यह छूट होती है कि वे बहुमत का आंकड़ा जुटाएं और तथ्यों के साथ राज्यपाल को सौंपकर सरकार बनाने का दावा पेश करें। संतुष्ट होने पर राज्यपाल सरकार बनाने का मौका दे सकते हैं।
राष्ट्रपति शासन को भी चुनौती देगी शिवसेना
सुप्रीम कोर्ट में अब शिवसेना की याचिका पर यह तय होना है कि क्या राज्यपाल को शिवसेना और दूसरे दलों को ज्यादा वक्त देना जाना चाहिए था। दरअसल इन दलों ने आरोप लगाया है कि भाजपा को 48 घंटे का वक्त दिया गया और इन्हें सिर्फ 24 घंटे का, जो न्यायोचित नहीं है। मंगलवार को इस याचिका पर सुनवाई नहीं हो सकी, लेकिन बुधवार को होने की संभावना है। इसके अलावा शिवसेना दूसरी याचिका दायर कर राष्ट्रपति शासन के फैसले को भी चुनौती देने की तैयारी कर रही है। यह याचिका कब दाखिल की जाएगी, इस पर पार्टी बुधवार को फैसला करेगी।
हमने 48 घंटे का समय मांगा था, लेकिन दयालु राज्यपाल ने हमें छह महीने का समय दे दिया। यह सच्चा ¨हदुत्व नहीं है जब आप राम मंदिर का तो समर्थन करते हैं, लेकिन अपना वादा तोड़ देते हैं– उद्धव ठाकरे, शिवसेना प्रमुख।
महाराष्ट्र में सरकार गठन का दावा करने से पहले नीतियों और कार्यक्रमों को अंतिम रूप दिया जाना जरूरी है। कांग्रेस-राकांपा ने मंगलवार को साझा न्यूनतम कार्यक्रम पर विचार-विमर्श किया है– शरद पवार, राकांपा प्रमुख।
जनता ने महायुति (महागठबंधन) के पक्ष में स्पष्ट जनादेश दिया था, फिर भी सरकार नहीं बन सकी। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा है। उम्मीद है राज्य में जल्द ही स्थिर सरकार गठित होगी– देवेंद्र फड़नवीस, कार्यवाहक मुख्यमंत्री।