दिल्ली

मेट्रो ट्रेन की जगह अब दिल्ली में मेट्रोलाइट चलाने की तैयारी में केंद्र सरकार

नई दिल्ली। निर्माण लागत को कम करने के इरादे से अब केंद्र सरकार सिर्फ रिठाला नरेला लाइन ही नहीं बल्कि चौथे फेज की अन्य दोनों लाइनों पर भी मेट्रो की जगह मेट्रोलाइट कॉरिडोर बनाने पर विचार कर रही है। दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन से कहा गया है कि वह इन कॉरिडोर पर मेट्रोलाइट के लिए डिटेल प्रॉजेक्ट रिपोर्ट तैयार करे। इन तीनों कॉरिडोर पर मेट्रो ट्रेनें चलाने के लिए पहले ही डीपीआर तैयार कर ली गई थी, लेकिन अब सरकार का इरादा है कि मेट्रोलाइट बनाई जाए। सरकार को लग रहा है कि अगर मेट्रो की जगह मेट्रोलाइट बनाई गई तो इससे लागत में 25 से 40 फीसदी तक की कमी आ सकती है। इसके अलावा ऑपरेशनल लागत भी कम होगी।

सरकारी सूत्रों का कहना है कि चूंकि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट खुद लगातार निगरानी कर रहा है, इसलिए जल्द से जल्द फाइनल फैसला किया जाएगा। दिल्ली मेट्रो ने इसी वजह से डीडीए से भी रिठाला से नरेला कॉरिडोर के समानांतर दोनों ओर की मौजूदा आबादी के अलावा 30 साल बाद होने वाली संभावित आबादी का आंकड़ा भी देने के लिए कहा है।

सूत्रों का कहना है कि आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय की 26 सितंबर को हुई बैठक में दिल्ली मेट्रो से भी कहा गया है कि वह रिठाला नरेला कॉरिडोर पर मेट्रोलाइट बनाने के लिए संभावित खर्च का ब्यौरा तैयार करे और उसके साथ ही फंडिग पैटर्न भी तय करे, जिसमें यह साफ किया जाए कि केंद्र और दिल्ली सरकार को कितनी रकम देनी होगी। इसके अलावा डीडीए से भी मेट्रो कितनी राशि की उम्मीद करता है। अधिकारियों का कहना है कि इस बात पर भी एकमत हैं कि दिल्ली मेट्रो की निर्माण लागत में कमी आए।

इसी वजह से अब सरकार चाहती है कि चौथे फेज की अन्य दोनों लाइनों यानी लाजपत नगर से साकेत जी ब्लॉक की लगभग 8 किमी की लाइन और इंद्रलोक से इंद्रप्रस्थ की 12.58 किमी की लाइन पर भी मेट्रो कॉरिडोर बनाने की बजाय मेट्रो लाइटकॉरिडोर ही बनाया जाए। अधिकारियों का कहना है कि पहले ही मेट्रोलाइट की स्पेसिफिकेशन को मंजूरी दी जा चुकी है। ऐसे में मेट्रोलाइट के निर्माण से न सिर्फ आर्थिक फायदा होगा, बल्कि इसके बनने से अधिक भूमि के अधिग्रहण की भी आवश्यकता नहीं होगी।

कैसी होगी मेट्रोलाइट
अधिकारियों का कहना है कि मेट्रोलाइट, मौजूदा मेट्रो रेल का एक छोटा रूप होगी। इसकी कुछ ऐसी विशेषताएं होंगी, जो इसे मौजूदा मेट्रो सिस्टम से अलग करेंगी। इसके स्टेशन लगभग बस स्टॉप की तरह के ही होंगे और इसमें लंबा चौड़ा तामझाम भी नहीं होगा। भारत में यह अपनी तरह का पहला मेट्रोलाइट सिस्टम होगा।

आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय ने इसकी जो स्पेसिफिकेशन फाइनल की हैं, उनके मुताबिक इसके स्टेशनों पर फेयर कलेक्शन गेट, एक्सरे मशीन, मेटल डिटेक्टर आदि नहीं लगाए जाएंगे। इसी तरह मौजूदा मेट्रो सिस्टम की तरह ही टोकन डालने पर गेट नहीं खुलेगा, बल्कि इसके लिए उसे ट्रेन के अंदर ही लगे सिस्टम में एंट्री और बाहर जाते हुए टच करना होगा। इसके लिए चेकिंग भी होगी और अगर कोई चेकिंग में ऐसा पकड़ा गया, जिसने अपने कार्ड को सिस्टम से टच करके सफर की जानकारी नहीं दी होगी तो उस पर भारी-भरकम जुर्माना लगाया जाएगा।

ये हैं खासियतें

  • यह जमीन पर ही ट्राम की तरह ही चलेगी।
  • मेट्रोलाइट कॉरिडोर एलिवेटिड तभी बनाया जाएगा, जबकि उस कॉरिडोर में जमीन पर मेट्रोलाइट चलाना संभव ही न हो।
  • मेट्रोलाइट के लिए यह भी तय है कि इसे अंडरग्राउंड नहीं बनाया जाएगा।

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