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उपचुनाव नतीजों ने बढ़ाई बसपा की टेंशन, गठबंधन की राह पर फिर लौटें सकती है मायावती?

संगठन में बड़े फेरबदल का जल्द हो सकता है फैसला

विशेष संवाददाता

नई दिल्ली । उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव में सबसे बड़ा झटका बसपा को लगा है. सूबे की 9 सीटों में से छह सीट पर बसपा प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई. यही नहीं पश्चिमी यूपी की सीटों पर बसपा से ज्यादा चंद्रशेखर आजाद की पार्टी के उम्मीदवारों को वोट मिले हैं. एक के बाद एक चुनाव में मिल रही करारी हार और खिसकते दलित जनाधार ने बसपा की सियासी टेंशन बढ़ा दी है. ऐसे में मायावती जल्द ही कुछ अहम कदम उठा सकती हैं, जिसमें संगठन में बड़े फेरबदल और गठबंधन की राह पर लौटने का फैसला हो सकता है.

यूपी उपचुनाव की 9 में 6 सीट बीजेपी, एक सीट आरएलडी और दो सीटें सपा ने जीती है. सपा को दो सीटों का नुकसान तो बीजेपी को तीन सीट का फायदा मिला है. बसपा एक भी सीट जीतना दूर की बात है, 2022 के बराबर वोट भी नहीं पा सकी. कुंदरकी सीट पर 1099 वोट, मीरापुर सीट पर 3248 वोट और सीसामऊ सीट पर 1400 वोट बसपा को मिले हैं. यही नहीं गाजियाबाद में भी बसपा दस हजार वोट पर ही सिमट गई है और खैर, केटहरी सीट पर बसपा की जगह सपा ने ले ली है.

इस बार बसपा की स्थिति ज्यादा खराब

बसपा का इस तरह का सियासी हश्र मीरापुर, कुंदरकी और सीसामऊ सीटों पर कभी नहीं रहा. कुंदरकी सीट बसपा दो बार जीत चुकी है तो मीरापुर सीट पर भी उसके विधायक रहे हैं. सीसामऊ सीट पर इतना कम वोट बसपा को कभी नहीं मिला. उपचुनाव नतीजे से यह बात भी साफ हो गई है कि बसपा का अपना कोर वोटबैंक जाटव समुदाय भी मायावती की पकड़ से बाहर निकल रहा है और नए सियासी विकल्प की तलाश में है. यही वजह है कि उपचुनाव की हार ने बसपा प्रमुख मायावती को चिंता में डाल दिया है.

मायावती ने भले ही उपचुनाव न लड़ने का ऐलान कर दिया हो, लेकिन अपने कोऑर्डिनेटर से फीडबैक लेना शुरू कर दिया है. सूत्रों की मानें तो बसपा प्रमुख ने उपचुनाव वाली सीटों की जिम्मेदारी संभाल रहे कोऑर्डिनेटर से रिपोर्ट मांगी है. यूपी से बाहर काम देख रहे सभी कोऑर्डिनेटर की बुधवार को बैठक बुलाई है. इसके अलावा यूपी में बसपा के संगठन का जिम्मा संभालने वाले सभी 56 प्रमुख कोऑर्डिनेटर और उनके साथ काम देख रहे पार्टी नेताओं भी मीटिंग संभावित है. माना जा रहा है कि कई प्रमुख कोऑर्डिनेटर को संगठन से छुट्टी हो सकती है और उनकी जगह पर युवा नेता को लगाया जा सकता है.

संगठन में बदलाव पर काम शुरू किया

मायावती ने सोमवार से बसपा संगठन में बदलाव का काम भी शुरू कर दिया है. झारखंड में पार्टी संगटन का काम देख रहे गया शरण दिनकर को बुलाकर कानपुर की जिम्मेदारी सौंपी है. धर्मवीर अशोक को पूर्वांचल से हटाकर बुलंदेखंड में लगाया गया है. ऐसे ही कई नेताओं को उनके मंडल से हटाकर अलग-अलग क्षेत्रों में लगाया गया है. चंद्रशेखर आजाद के बढ़ते सियासी आधार को रोकने के लिए मायावती कई बड़े अहम कदम उठाने की दिशा में भी मंथन शुरू कर दिया है.

बसपा के एक बड़े नेता ने नाम न छापने की शर्त पर उत्तर प्रदेश में बसपा का संगठन पूरी तरह से कमजोर पड़ चुका है, जिसकी वजह से पार्टी प्रत्याशी चुनाव में जीत नहीं पा रहे हैं. संगठन को मजबूत करने के लिए की तमाम कवायदें असर नहीं दिखा रही हैं. पार्टी के अधिकतर बड़े नेता सक्रिय नहीं हैं, उनकी भूमिका केवल प्रत्याशियों का चयन करने तक सीमित रह गई है. पार्टी की सदस्यता शुल्क की राशि कम करने का कोई खास फायदा नहीं मिला है. संगठन में बदलाव के बिना बसपा का दोबारा से खड़ा होना मुश्किल है.

अकेले चुनाव लड़ने का दांव उल्टा पड़ा

बसपा का अकेले चुनाव लड़ने का दांव भी लगातार यूपी में उलटा पड़ता जा रहा है. 2022 विधानसभा चुनाव में पार्टी को सिर्फ बलिया की रसड़ा विधानसभा सीट पर जीत मिली था. 2024 के लोकसभा चुनाव एक भी सीट नहीं जीत सकी और उपचुनाव में बसपा का खाता खुलना दूर की बात है, उसका अपना सियासी जनाधार भी खिसक गया है. एक के बाद एक चुनाव में मिल रही हार के चलते पार्टी को किसी दूसरे दल से गठबंधन नहीं करने का अपना फैसला बदलना पड़ सकता है. गठबंधन से बसपा को भले ही सत्ता हासिल न हो सके, पार्टी के सियासी अस्तित्व बचाने के लिए सांसद और विधायक मिल सकते हैं.

बसपा की सियासत को करीब से जानने वाले सैय्यद कासिम बताते हैं कि मौजूदा राजनीति में बिना गठबंधन के बसपा का सियासी उभार आसान नहीं है. बीजेपी और सपा जैसी पार्टियां गठबंधन करके राजनीति कर रही हैं तो बसपा को परहेज नहीं होना चाहिए. मायावती के अपना जनाधार और बसपा के सियासी अस्तित्व के बचाए रखना है तो गठबंधन की राजनीति पर लौटना पड़ेगा, वरना बचा कुचा वोट भी खिसक जाएगा. बसपा के तमाम वरिष्ठ नेता भी चाहते हैं कि किसी भी दल से चुनावी गठबंधन नहीं करने का पुराना फैसला मायावती को पलटना चाहिए.

गठबंधन में वापस लौट सकती हैं मायावती

कासिम कहते हैं कि यूपी उपचुनाव के नतीजों के बाद मायावती भी इस बात को सोंचने के लिए मजबूरी हुई हैं. माना जा रहा है कि मायावती अब एकला चले की राह के बजाय गठबंधन की राह पर लौटने का फैसला कर सकती हैं. उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2027 में है, लेकिन उससे पहले दिल्ली व बिहार में चुनाव होने हैं. बसपा बिहार के 2021 चुनाव में गठबंधन के तहत चुनाव लड़ी थी और एक सीट जीतने में कामयाब रही थी. बिहार उपचुनाव में बसपा एक सीट पर काफी अच्छा चुनाव लड़ी है.

बसपा को गठबंधन की राजनीति करना तो किसी छोटे दलों के बजाय बड़े दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की दिशा में मायावती को कदम उठाना होगा, क्योंकि बिहार और यूपी दोनों ही जगह दो मजबूत गठबंधन है. बसपा को इन्हीं दोनों गठबंधन में से किसी गठबंधन के साथ जाने की दिशा में सोचना चाहिए, क्योंकि वोटिंग पैटर्न बता रहा है कि मतदाता बीजेपी को सत्ता में बनाए रखने के लिए वोटिंग करते हैं या फिर उसे हटाने के लिए करते हैं.

चंद्रशेखर आजाद कर रहे हैं पार्टी का विस्तार

2024 के लोकसभा चुनाव के बाद से चंद्रशेखर आजाद अपनी आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के संगठन का तेजी से विस्तार करने में जुटे हुए हैं. कभी विधान परिषद में बसपा सदस्य एवं जोनल कोआर्डिनेटर रहे सुनील चित्तौड़ अब आजाद समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं. पश्चिमी उप्र में पार्टी के विस्तार के पीछे उनकी भूमिका अहम मानी जाती है. दलित और मुस्लिम समीकरण पर चंद्रशेखर आजाद तेजी से काम कर रहे हैं. इस दिशा में अपने जड़े जमाने के लिए एक्टिव हैं. इसी समीकरण के चलते उपचुनाव में चंद्रशेखर आजाद को काफी वोट मिले हैं.

सैयद कासिम कहते हैं कि चंद्रशेखर आजाद की राजनीति अभी भी मुस्लिम वोटों पर टिकी है, लेकिन दलित वोटों को भी जोड़ने की दिशा में लगे हैं. ऐसे में चंद्रशेखर की राजनीति को मायावती बेअसर करना चाहती हैं तो आकाश आनंद को यूपी की सियासत में एक्टिव करना होगा. आकाश आनंद ही चंद्रशेखर की तरफ जा रहे दलित युवाओं को बसपा की तरफ मोड़ सकते हैं. खासकर पश्चिमी यूपी में दलित वोटर काफी अहम है और उसे अपने साथ जोड़े रखने के लिए मायावती को कई दिशा में काम करना होगा, जिसमें युवा लीडरशिप को आगे लाना होगा और संगठन में युवा नेताओं को जगह देनी होगी.

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