नई दिल्ली। आजादी के बाद भारत में पहली बार ऐसा समय आया है जब तीन पडोसी देश सीमा पर एक साथ तनाव पैदा करें और दूसरी ओर दुनिया में मानव अस्तित्व को चुनौती देने वाला कोरोना जैसा संक्रामक रोग देश में विकराल रूप ले रहा हो और इसके कारण चरमराती अर्थ-व्यवस्था को खम्भा लगा कर उठाने की कोशिश हो रही हो. सामरिक स्थिति यह है कि एक देश जो सदियों से सांस्कृतिक-धार्मिक एकात्मकता के तार से जुड़ा हो, अचानक कुछ भूभाग पर दावा करे और सीमा-पार के लोगों के साथ मारपीट करे. दूसरा पडोसी हमेशा सीमा पर उपद्रव करता रहा है लेकिन तीसरा एक सामरिक-आर्थिक महाशक्ति है. ऐसे में किसी भी सरकार और उसके मुखिया के लिए बेहद चिंता की घड़ी होती है. एक भी गलती उसे वर्तमान में जन-अभिमत में हीं नहीं, भावी इतिहास में भी गलत ठहरा सकती है.
ऐसे मुशिकल वक्त में कांग्रेस नेता राहुल गाँधी का ट्वीट “व्हाई पीएम इस साइलेंट”, “व्हाई इज ही हाइडिंग (प्रधानमंत्री चुप क्यों है, वह क्यों छुप रहे हैं)”, सामान्य मानवोचित व्यावहारिकता के खिलाफ हीं नहीं है, राजनीतिक अदूरदर्शिता भी है. समाजशास्त्रीय अवधारणा है कि युद्ध या उसकी आशंका के समय जनता सरकार के साथ होती है. फिर यही कांग्रेस अकसर प्रधानमंत्री पर ओवर-एक्सपोजर का आरोप लगाती रही है. दूसरा, प्रधानमंत्री दो दिन से कोरोना संकट को लेकर मुख्यमंत्रियों से बातचीत कर रहे हैं, अपने रक्षा-मंत्री और सैन्य अधिकारियों से रणनीति पर चर्चा कर रहे हैं. लिहाज़ा ऐसे ट्वीट न केवल बचकाने लगते हैं बल्कि पार्टी की छवि भी प्रभावित करते हैं. यह सामान्य अवसर नहीं है जब कांग्रेस विपक्ष की भूमिका निभाते हुए सरकार की लानत –मलानत का शाश्वत भाव रखे. ध्यान रहे कि सत्ता की ओर से एक अतिरेक-मिश्रित वक्तव्य युद्ध की विभीषिका में 139 करोड़ लोगों को झोंक सकता है. यही नासमझी 1962 में हुई थी जिसमें इसी चीन ने हमारी सेना को परास्त करते हुए भारत की 15000 वर्ग किलोमीटर जमीन हड़प ली.
तत्कालीन प्रधानमंत्री ने उस क्षेत्र के बारे में संसद में कहा था “वहाँ घास का एक तिनका भी नहीं उगता” तो महाबीर त्यागी ने अपनी टोपी उतार कर अपना गंजा सिर दिखाते हुए पूछा था “यहाँ भी कुछ नहीं उगता तो क्या इसे कटवा दिया जाये”. 70 साल की प्रजातान्त्रिक प्रणाली में विपक्ष को भी समय और स्थिति के अनुरूप प्रतिक्रिया देनी चाहिए. जरूरी नहीं कि सामरिक मामलों में भी विपक्ष को सरकार हर तथ्य बताये. इस ट्वीट के तीन घंटे बाद राहुल गाँधी का एक और ट्वीट आया जिसमें शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी गयी. इसे प्रधानमंत्री की आलोचना के पहले किया जाना उचित होता.