दिल्ली। कोरोना संकट के कारण दुनिया की अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुजर रही है, लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका ज्यादा असर नहीं दिख रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश की अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है। कोरोना के कारण लॉकडाउन से ज्यादातर आर्थिक गतिविधियां बंद रहीं। लोग घरों में बंद थे, इस सख्त लॉकडाउन के बीच भी अप्रैल में देश में 3,209 नई कंपनियां बनीं। इनकी कुल अधिकृत पूंजी 1,429.75 करोड़ रुपए है। भास्कर के अनुसार अप्रैल में सबसे अधिक 591 कंपनियां महाराष्ट्र में रजिस्टर हुईं। वहीं, दिल्ली में 368 और कर्नाटक में 350 कंपनियों का गठन हुआ। मोदी सरकार के डिजिटल इंडिया के कारण लोगों को कंपनी रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया करने में आसानी हुई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना से पूरे विश्व में आर्थिक संकट है लेकिन भारत को इससे जल्द उबरने की ज्यादा उम्मीदें हैं। आइए, कुछ प्वाइंट्स के जरिए समझते हैं कैसे?
कोरोना संकट का होगा कम प्रभाव
भारत में कोरोना से निपटने के लिए पिछले कुछ समय से उपयुक्त प्रयास किए जा रहे हैं। इस कारण भारत में कोरोना का आर्थिक असर अमेरिका और यूरोप की तुलना में कम है। इसके अलावा भारत की अर्थव्यवस्था कमोबेश आत्मनिर्भर है और वैश्विक व्यापार पर भारत की निर्भरता भी कम है। इसी कारण लॉकडाउन के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में दुनिया की अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में पटरी पर लौटने की संभावना अधिक है।
देश में पर्याप्त खाद्यान्न भंडार
देश का वर्तमान खाद्यान्न भंडार करीब डेढ़ वर्ष तक लोगों की खाद्यान्न संबंधी जरूरतें पूरी करने में सक्षम है। इस महीने तक देश के सरकारी भंडारों में करीब 10 करोड़ टन खाद्यान्न का भंडार होगा। देश में चल रही विभिन्न जन कल्याणकारी योजनाओं और राशन कार्ड रखने वाले लोगों को साल में करीब छह करोड़ टन अनाज वितरित किया जाता है। केंद्र सरकार का मानना है कि लॉकडाउन के मौजूदा दौर में राज्यों द्वारा करीब तीन करोड़ टन खाद्यान्न की मांग तुरंत की जा सकती है। इससे सभी राज्य छह महीने तक खाद्यान्न की जरूरतें सरलता से पूरी कर सकते हैं। इस साल खाद्यान्न का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है और कृषि विशेषज्ञों ने आगामी मानसून की अच्छी संभावनाएं भी जताई हैं।
कच्चे तेल की कीमतों में भारी कमी
पेट्रोलियम उत्पादों के दाम घटने से भारतीय ग्राहकों को फायदा मिलने की संभावना बन गई है। केंद्र सरकार इस मौके का फायदा अपना राजस्व बढ़ाने के रूप में कर रही है। पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क में वृद्धि करने से राजस्व संग्रह के मोर्चे पर चुनौती झेल रही सरकार को लाभ होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि कच्चे तेल की कीमत में भारी कमी से ढांचागत विकास के लिए फंड जुटाने में मदद मिलेगी तथा राजकोषीय घाटे में कमी आएगी।
भारत की बनी बेहतर छवि
कोरोना संकट में भारत की छवि पूरे विश्व में बेहतर हुई है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत ने हरसंभव कोशिश की है कि अलग-अलग देशों को मदद मिले। हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन दवा के जरिए भारत ने हर एक जरूरतमंद देश की मदद की। अमेरिका, ब्राजील, इजरायल, स्पेन, ग्रेट ब्रिटेन, खाड़ी देश, मलेशिया समेत पड़ोसी देशों जैसे नेपाल, श्रीलंका, मालदीव, श्रीलंका, भूटान को मदद पहुंचाई गई। विश्व के देशों ने भारत की इस पहल की तारीफ की। भारत में कोरोना संकट को देखते हुए हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन पर बैन लगा दिया था लेकिन मानवता को देखते हुए भारत ने विश्व के देशों मदद पहुंचाई।
अमेरिका-चीन के रिश्ते में खटास
कारोबार को लेकर अमेरिका और चीन पहले ही एक दूसरे से खिलाफ हैं और दोनों के बीच बिजनेस वार चल रहा था। अब कोरोना के बाद दोनों देशों के बीच दूरियां और बढ़ती दिख रही है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कह चुके हैं कि कोरोना चीनी वायरस है और इससे अमेरिका को काफी नुकसान हुआ है। कोरोना को लेकर ट्रंप चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका पर सवाल उठा चुके हैं। वे एक पत्रकार के सवाल के जवाब मे कह चुके हैं कि अगर कोरोना के लिए चीन जिम्मेदार है तो उसे इसके नतीजे भुगतने होंगे।
कंपनियों के भारत शिफ्ट होने की खबर
मीडिया में ऐसी लगातार खबरें आ रही हैं कि कोरोना के बाद चीन की स्थिति खराब हुई है और अमेरिका, जापान समेत कई देशों की सैकड़ों कंपनियां अपना कारोबार चीन से भारत शिफ्ट करना चाहती हैं। इससे निश्चित तौर से भारत को फायदा होगा और मेक इन इंडिया को बल मिलेगा। अगर चीन में काम कर रही कंपनियां भारत आती हैं तो निवेश बढ़ेगा और यहां लोगों को रोजगार मिलने की ज्यादा संभावना बढ़ेगी।
दवा के क्षेत्र में भारत की कंपनियों को फायदा
अमेरिका को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा निर्यात करने के बाद भारत की दवा कंपनियों के लिए एक बडी संभाावना खुल गई है। अमेरिका को दवा देने पर भारत में काफी हो हल्ला मचाया गया है। इस तरह की खबरें फैलाई गई कि भारत अमेरिका के आगे झूक गया लेकिन हकीकत ये है कि प्रधानमंत्री मोदी ने इसके बदले उन्होंने अमेरिकी दवा नियामक US FDA को भारतीय दवा कंपनियों के लिए अपना बाजार खोलने के लिए मजबूर कर दिया। जब यह खबर आई कि US FDA ने एक दिन के अंदर ही भारत की पांच दवा कंपनियों के लिए अपना बाजार खोल दिया।