विदेश

ये है चीन की वो सीक्रेट लैब जिस पर लग रहे कोरोना वायरस तैयार करने के आरोप

दिल्लीः क्या कोरोना वायरस एक बायो वेपन है? ये सवाल पिछले दो महीनों से लगातार दुनियाभर में तैर रहा है. शुरुआत में इसे लेकर तगड़ी बयानबाजी एक अमेरिकी नेता द्वारा की गई. फिर चीन भी इस बहस में कूद पड़ा और आरोप लगाया कि ये बायो अटैक अमेरिका की तरफ से किया गया है. अब ब्रिटेन की एक लैब ने भी दावा किया है कि कोरोना वायरस दरअसल एक बायोवेपन है जो चीन में बनाया गया है.

चीन द्वारा फैक्ट छुपाए जाने के कारण कोरोना को लेकर तरह-तरह खबरें दुनियाभर में चली हैं. समस्या ये है कि खुद चीन में भी कोरोना की उत्पत्ति को लेकर विवाद है.

चीनी सरकार हमेशा ये कहती रही कि कोरोना वायरस वुहान के सी-फूड मार्केट से उपजा है, विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इस दावे के साथ खड़ा है. जबकि चीन में हुई कुछ रिसर्च का दावा है कि ये वायरस देश में पहले से मौजूद था. कोरोना की उत्पत्ति को लेकर भ्रम, बायोवेपन के आरोप, वैश्विक संक्रमण से उपजे भय ने कई कहानियों को लोगों को सच मानने पर मजबूर किया है. लेकिन अभी तक इसके कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं कि कोरोना एक बायोवेपन है.

चीन की जिस लैब में बायोवेपन तैयार किए जाने का दावा किया जा रहै उसका नाम वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (WIV) है. ये इंस्टिट्यूट एकेडमी ऑफ साइंस के तले चलता है. पहले इसका नाम वुहान माइक्रो बायोलॉजी लेबरोटरी था. इसकी स्थापना 1956 में की गई थी. 1978 में इसका नाम वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी रखा गया था. ये लैब वर्ल्ड क्लास रिसर्च के लिए पहचानी जाती है.

कोरोना वायरस पर रिसर्च
यह सच है कि कोरोना वायरस (वर्तमान कोविड 19 भी इसी परिवार का हिस्सा है.) को लेकर चीन की ये लैब कई रिसर्च का हिस्सा रही है. लेकिन इसका उद्देश्य सार्स की दवा और भविष्य में उससे लड़ने के उपाय तलाशना था. 2005 में कुछ शोधकर्ताओं ने, इनमें WIV के लोग भी शामिल थे, सार्स कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर रिसर्च पेपर पब्लिश किया था. इस रिसर्च में खुलासा किया गया था कि चीन के horseshoe चमगादड़ के शरीर में प्राकृतिक रूप से सार्स-कोरोना वायरस होता है.

Wuhan lab virus leak 'no longer discounted': Cobra - Asia Times

2015 में इस इंस्टिट्यूट ने एक रिसर्च पेपर पब्लिश किया. इस पेपर में दावा किया गया कि चमगादड़ में मौजूद कोरोना वायरस इंसानों में ट्रांसफर हो सकता है. दरअसल शोधकर्ताओं ने एक हाइब्रिड वायरस तैयार किया था जिसमें चमगादड़ के शरीर से निकला वायरस और सार्स वायरस मिश्रित थे. इस हायब्रिड वायरस को शोधकर्ताओं ने चूहों के शरीर में पनपाकर देखा था. और रिजल्ट पाया था कि ये इंसानी शरीर को भी संक्रमित कर सकते हैं.

2017 में इस इंस्टिट्यूट ने आगाह भी किया था युनान की गुफाओं में पाए जाने वाले चमगादड़ों से ये वायरस इंसानों में ट्रांसफर भी हो सकता है. युनान की गुफाओं में मौजूद चमगादड़ों पर पांच साल रिसर्च करने वाली एक टीम ने कहा था कि यहां से रिहायशी गांव 1 किमी से कम के दायरे में है और यहां से सार्स जैसा कोई वायरस फैल सकता है.

बायोवेपन की बातों को झुठला चुके हैं अमेरिकी विशेषज्ञ
माना जा रहा है कि चमगादड़ों पर लंबे शोध की वजह से इस इंस्टिट्यूट पर निशाना साधा जा रहा है. हालांकि इस इंस्टिट्यूट ने लगातार इन आरोपों को बकवास बताया है. अमेरिका के विख्यात माइक्रोबायोलॉजिस्ट रिचर्ड ब्राइट भी बायोवेपन के आरोपों को बकवास बता चुके हैं. लेकिन इसके बावजूद भी इस इंस्टिट्यूट को लेकर चल रही कॉन्सपिरेसी थ्योरी रुकने का नाम नहीं ले रही हैं.

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