बैंकाक। भारत ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) समझौते में शामिल नहीं होने का फैसला किया है। सूत्रों से यह जानकारी मिली है। समझौते में पीएम मोदी की प्रमुख चिंताओं को शामिल नहीं किया गया, इसलिए कहा गया कि भारत अपने कोर हितों से कोई समझौता नहीं करेगा। आरसीईपी (RCEP) समझौता इसकी मूल मंशा को नहीं दर्शाता है। रिजल्ट उचित या संतुलित नहीं है। भारत की प्रमुख चिंताओं में शामिल है – आयात वृद्धि के खिलाफ अपर्याप्त सुरक्षा, चीन के साथ अपर्याप्त अंतर, उत्पत्ति के नियमों की संभावित ढकोसला, 2014 के रूप में आधार वर्ष को ध्यान में रखते हुए और बाजार पहुंच व गैर टैरिफ बाधाओं पर कोई विश्वसनीय आश्वासन नहीं दिया गया।
सरकार के सूत्रों ने कहा कि वे दिन चले गए, जब भारतीय वार्ताकारों ने व्यापार के मुद्दों पर वैश्विक शक्तियों के दबाव में देश को खोखला कर डाला था। इस बार भारत ने समझौते के दौरान फ्रंट फुट पर खेला। इस दौरान व्यापार घाटे पर भारत की चिंताओं को दूर करने की जरूरतों पर और भारतीय सेवाओं व निवेश के लिए बाजार खोलने के लिए देशों की आवश्यकता पर जोर दिया।
सरकार के सूत्रों का कहना है कि भारत का रुख व्यावहारिकता का मिश्रण है। इसमें गरीबों के हितों की रक्षा करने और भारत के सेवा क्षेत्र को लाभ देने के प्रयास का आग्रह किया गया है। जबकि विभिन्न सेक्टरों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए खोलने से बिदक नहीं रहा है। कहा गया है कि भारत ने मोस्ट फेवरेट नेशन (एमएफएन) के दायित्वों को भी स्वीकार नहीं किया, जहां भारत को क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) देशों को समान लाभ देने के लिए बाध्य किया गया जो उसने दूसरे देशों को लाभ दिया है।, जहां भारत को क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) देशों को समान लाभ देने के लिए बाध्य किया गया जो उसने दूसरे देशों को लाभ दिया है।
पीएम मोदी ने कहा, भारत अपने हितों से समझौता नहीं करेगा
समिट के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट किया कि भारत क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) में अपने हितों के साथ किसी तरह का समझौता नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि भारत यह देखेगा कि आरसेप समझौते में व्यापार, सेवाओं और निवेश पर उसकी चिंताओं को पूरी तरह से समायोजित किया जा रहा है या नहीं। पीएम मोदी ने कहा कि भारत का स्पष्ट मानना है कि पारस्परिक रूप से लाभप्रद आरसेप (RCEP), जिससे सभी पक्ष यथोचित लाभ प्राप्त करते हैं, वह भारत समेत वार्ता में शामिल अन्य देशों के हित शामिल है।
समझौते में 16 देश होने थे शामिल
यह समझौता 10 आसियान देशों (दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संघ) और छह व्यापार देशों -भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच होना था। आसियान देशों में ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, म्यांमार, सिंगापुर, थाइलैंड, फिलीपींस, लाओस और विएतनाम शामिल हैं। वर्ष 2012 में भारत ने इसमें शामिल होने की रजामंदी जताई थी, लेकिन चीन से बढ़ते सस्ते आयात की वजह से भारत का रुख अब बदला हुआ है।