दिल्ली

दिल्ली की 1800 अवैध कॉलोनियों वालों को मालिकाना हक जल्द!

नई दिल्ली। दिल्ली की 1797 अनधिकृत कॉलोनियों में रह रहे लोगों को जल्द राहत मिल सकती है। केंद्र सरकार इन कॉलोनियों को नियमित करने की तैयारी कर रही है। खबर है कि केंद्रीय आवास और शहरी कार्य मंत्रालय इन कॉलोनियों को नियमित करने और इनमें रहने वालों को मालिकाना हक देने के इरादे से कैबिनेट नोट तैयार कर रहा है। माना जा रहा है कि मोदी सरकार विधानसभा चुनाव से पहले ही कैबिनेट में इन कॉलोनियों को लेकर महत्वपूर्ण फैसला कर सकती है। इसकी वजह यह है कि मोदी सरकार ने इस मुद्दे को अपने 100 दिन के एजेंडे में प्रमुखता से रखा है।

आवास और शहरी कार्य मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि इस मामले में कैबिनेट नोट तैयार किया जा रहा है। यह कैबिनेट नोट हाल ही में उपराज्यपाल की अगुवाई वाली कमिटी की ओर से पेश की गई रिपोर्ट के आधार पर बनाया जा रहा है। इस कमिटी के गठन के वक्त ही सरकार ने कहा था कि यह कमिटी उन उपायों को सुझाएगी, जिनके जरिए इन कॉलोनियों में रहने वालों को मालिकाना हक दिया जा सके। मालिकाना हक देने का मतलब ही इन कॉलोनियों को नियमित करना है।

सूत्रों का कहना है कि दक्षिण दिल्ली में तीन सम्पन्न कॉलोनियों अनंत राम डेयरी, महेन्द्रू एन्कलेव और सैनिक फार्म को नियमित करने को लेकर फिलहाल केंद्र सरकार जल्दबाजी में नहीं है लेकिन अन्य कॉलोनियों को लेकर वह जल्द फैसला लेना चाहती है। सरकारी सूत्रों का कहना है कि अगर इन कॉलोनियों को नियमित किया जाता है तो इससे यहां लोग रजिस्ट्री कराकर मकानों की खरीद फरोख्त कर सकेंगे। फिलहाल यहां जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी (जीपीए) के जरिए ही खरीद फरोख्त होती है।

सूत्रों का कहना है कि इन कॉलोनियों को रेग्युलर करने के लिए कैबिनेट नोट में इन कॉलोनियों को अलग-अलग कैटिगरी में बांटा जाएगा। मसलन, ऐसी कॉलोनियां जो निजी जमीन पर बनी हैं लेकिन उनका लैंडयूज रेजिडेंशियल की बजाय एग्रीकल्चर था या फिर वे तय मानकों के मुताबिक नहीं हैं। इसी तरह दूसरी कैटिगरी ऐसी होगी, जो सरकारी जमीन पर बनी हैं। ऐेसी कॉलोनियों में रहने वालों से चार्ज लगाया जा सकता है। इसी तरह से कुछ ऐसी कॉलोनियां भी होंगी, जो किसी खास कानून की वजह से अनधिकृत हैं। ऐसी कॉलोनियों के लिए सरकार को कुछ खास तरह के कदम उठाने की जरूरत होगी। अधिनियमों में भी संशोधन करना पड़ सकता है।

सरकारी जमीन पर बनी कॉलोनियों का क्या होगा?
अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने के लिए भले ही केंद्र सरकार तैयारी कर रही हो लेकिन इनमें से बड़ी संख्या में ऐसी भी कॉलोनियां हैं, जिन्हें नियमित करना इतना आसान नहीं होगा। इनमें से अधिकतर वे कॉलोनियां हैं, जो फॉरेस्ट लैंड पर बनी हैं या फिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) की भूमि पर। इसके अलावा जो कॉलोनियां सरकारी जमीन पर बनी हैं, उनके लिए भी सरकार को वहां रहने वाले लोगों से शुल्क वसूलना अनिवार्य होगा।

डीडीए में प्लानर रहे आर.जी. गुप्ता का कहना है कि हालांकि सरकार चाहती तो यह कार्य पहले भी हो सकता था। इससे पहले 1961 में सबसे पहली बार ऐसी पॉलिसी बनाई गई थी और 101 कॉलोनियों को नियमित किया गया था। उसके बाद भी कम से कम तीन बार कॉलोनियों को नियमित करने की कवायद की गई। गुप्ता का मानना है कि सरकार चाहे तो इन कॉलोनियों को नियमित कर सकती है। लेकिन मुख्य अड़चन ऐसी कॉलोनियों की है, जो फॉरेस्ट लैंड पर बनी हैं यानी जो जगह पेड़ों के लिए है, वहां कालोनी बस गई। ऐसी कॉलोनियों के लिए सरकार को लंबी कवायद करनी पड़ सकती है।

यही स्थिति एएसआई की जमीन या फिर किसी ऐतिहासिक महत्व की इमारत से एक तयशुदा दूरी से कम में बनी कॉलोनियां भी हैं। इन कॉलोनियों को नियमित करने से पहले सरकार को इन अधिनियमों में बदलाव करना होगा। इसी तरह से अगर सरकारी जमीन पर कालोनी बनी हैं तो उसके लिए वहां रहने वालों से पैसा लेना अनिवार्य होगा। यह राशि मौजूदा सर्कल रेट के आधार पर तय करनी होगी। यह जरूर है कि सरकार सर्कल रेट पर कुछ डिक्सकाउंट दे लेकिन उसे यह राशि लेनी होगी। ऐसे में वहां रहने वालों को मोटी रकम देने के बाद ही इसे रेग्युलर किया जाएगा। ऐसे में अगर किसी कालोनी में आधे लोग यह राशि नहीं जमा कराते तो उस स्थिति में क्या होगा।

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