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दिल्ली की मुस्लिम बहुल सीटों पर आप की कांग्रेस को चुनौती, भाजपा को नहीं चिंता

दिल्ली में मुस्लिम सियासत, इस बार किसकी तरफ होगा रुख -केजरीवाल सहित कांग्रेस की मुस्लिमों को रिझाने की होगी कोशिश

विशेष संवाददाता

नई दिल्ली। दिल्ली में मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी खासी तादात, इसलिए हर चुनाव से पहले राजनीतिक दल चुनाव मैदान में मुस्लिम प्रत्याशी उतारने के लिए सबसे पहले जोड़-तोड़ करने में जुट जाते हैं. अगले साल होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस से पांच बार के विधायक और वरिष्ठ मुस्लिम नेता चौधरी मतीन अहमद आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए हैं. तो बीते दिनों आप के विधायक अब्दुल रहमान ने पार्टी से मिली जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ अलग-थलग हुए हैं, राजनीतिक दल अपने-अपने सियासी फायदे नुकसान को लेकर मुस्लिम नेताओं पर नजर गड़ाए हुए हैं.

दिल्ली में मुस्लिम बहुल सीट

दिल्ली की कुल 70 विधानसभा सीटों में से आठ विधानसभा सीटें मुस्लिम बहुल है. जिनमें बल्लीमारान, सीलमपुर, ओखला, मुस्तफाबाद, चांदनी चौक, मटिया महल, बाबरपुर और किराड़ी विधानसभा की सीटें शामिल हैं. इन विधानसभा सीटों में 35 से 60 फीसद तक मुस्लिम मतदाता है. इनमें से सीलमपुर विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक मुस्लिम मतदाता है. यहां उनकी आबादी करीब 60 फीसद है. इससे कुछ कम करीब 55 फीसद मुस्लिम मतदाता पटिया महल सीट पर हैं. इस सीट से शोएब इकबाल लगातार विधानसभा चुनाव जीतते आए हैं. मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों में शामिल बाबरपुर और चांदनी चौक दो ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां पर से करीब 30 से 35 फीसद मुस्लिम मतदाता हैं और यहां से गोपाल राय व प्रहलाद सिंह साहनी विधायक निर्वाचित हैं.

मुस्लिम मतदाता किस तरफ

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक अरशद फरीदी ने बताया कि दिल्ली में मुस्लिम मतदाता 12 फीसद के करीब हैं. आम आदमी पार्टी के बनने से पहले मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों से कांग्रेस के प्रत्याशी जीतते रहे हैं. जब आम आदमी पार्टी अस्तित्व में आई तो वर्तमान में सभी सीटें आम आदमी पार्टी के ही पास हैं. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को छोड़ दें तो बीजेपी भी इस कोशिश में रहती है कि इन मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी ही उतारें. तभी बीजेपी ने सितंबर महीने में जो सदस्यता अभियान शुरू किया था, पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं को दिल्ली में कम से कम दो लाख मुसलमानों को अपने साथ जोड़ने का लक्ष्य दिया था. पार्टी ने मुस्लिम बहुल इलाके में जाकर सदस्यता अभियान के लिए शिविर भी लगाए. आम आदमी पार्टी गत कुछ महीनो से हिंदूवादी छवि को लेकर आगे बढ़ रही है उसी का नतीजा है कि जून में संपन्न हुए लोकसभा में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने गठबंधन कर चुनाव लड़ा तब मुस्लिम बहुल इलाके वाले लोकसभा सीटें पार्टी ने कांग्रेस को दे दी.

मुस्लिम मतदाता पर राजनीति

वहीं, आम आदमी पार्टी के विधायक अब्दुल रहमान कहते हैं कि दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाकों में बिजली की आपूर्ति में सुधार, सड़क और पानी जैसे मुद्दे अहम हैं. इसमें स्थानीय विधायकों की भूमिका क्या रही है, यह मतदाता जानते हैं. दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ता प्रवीण शंकर कपूर का कहना है कि दिल्ली के लोगों खास कर साधारण मुस्लिम समाज ने कांग्रेस की न्याय यात्रा से दूरी बनाई हुई है और वह चाहते हैं कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष देवेंद्र यादव पहले स्पष्ट करें कि वह जो केजरीवाल सरकार की निंदा कर रहे हैं, कल उसी से गठबंधन तो नहीं करेंगे? ऐसे में अब देखना है कि आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाता की पहली पसंद कौन सी राजनीतिक पार्टी बनती है.

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