विशेष संवाददाता
गाजियाबाद। विधानसभा उप- चुनाव की डेट घोषित करने के साथ ही टिकट के दावेदारों की धड़कनें बढ़ गई हैं। टिकट पक्का करने के लिए दावेदार ने दिल्ली और लखनऊ में संपर्क बढ़ाने की जुगत में लगे हैं। टिकट के दावेदारों की सबसे लंबी लाइन भाजपा में है। सियासी जानकारों का मानना है कि भाजपा सोशल इंजीनियरिंग के हिसाब से दावेदारी पर विचार कर रही है, हालांकि इस सीट पर वैश्य अपना दावा मान रहे हैं, जबकि सोशल इंजीनियरिंग ऐसा नहीं कहती है। अब देखने वाली बात यह होगी कि पार्टी किसके नाम पर सर्वमान्य राह निकालती है।
सदर विधानसभा सीट की सोशल इंजीनियरिंग समझें
2007 में नए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई इस सीट पर सबसे ज्यादा संख्या ब्राहमण और मुस्लिम मतदाताओं की करीब 75- 75 हजार है। दूसरे नंबर पर वैश्य मतदाता आते हैं, जो करीब 65 हजार हैं। इस सीट पर पंजाबी और दलित मतदाता भी करीब 50-50 हजार हैं। अन्य जातियों की संख्या यहां काफी कम है। इसी सोशल इंजीनियरिंग को देखते हुए भाजपा ने 2007 में सबसे पहले ब्राहमण उम्मीदवार के रूप में सुनील शर्मा मैदान में उतारा था और वे पहली बार विधानसभा पहुंचे थे।
2012 में बसपा के सुरेश बंसल ने बाजी अपने नाम कर ली
2012 के विधानसभा चुनाव में सुरेश बंसल ने भाजपा की मानी जा रही सदर सीट को बसपा की झोली में डाल दिया था। सुरेश वैश्य समाज के जमीनी नेता थे और यही उस चुनाव में उनकी जीत का सबसे बड़ा कारण था। वैश्य प्लस दलित की सोशल इंजीनियरिंग ने इस सीट को बसपा की झोली में डालने काम किया था। बड़ी बात यह रही कि उस चुनाव एंटी इनकमबेंसी को झुठलाते हुए गाजियाबाद जिले की चार सीटें बसपा ने हथिया ली थीं।
2017 और 2022 में अतुल गर्ग के सिर बंधा सेहरा
सदर विधानसभा सीट की जनता ने 2017 और 2022 में दो बार लगातार अतुल गर्ग के सिर सेहरा बांधा। कोविड काल में वह सरकार में स्वास्थ्य राज्यमंत्री हुआ करते थे, कुछ आरोप प्रत्यारोप हुए लेकिन चुनाव तक आते- आते सब मैनेज हो गया और 2022 में जनता ने फिर से अतुल गर्ग को विधानसभा भेज दिया, लेकिन इस बार मंत्रालय पाने में कामयाब नहीं रहे तो उन्होंंने मुंह दिल्ली की तरफ कर लिया और अपने चारों साथी विधायकों व संगठन के साथ लामबंदी कर लोकसभा चुनाव में जनरल वीके सिंह का टिकट खुद झटक लाए और चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंच गए। इसके बाद उन्होंने विधायकी से इस्तीफा देते हुए यह सीट खाली कर दी थी।
इस बार उम्मीदवारी में किसके साथ जाएंगे अतुल
बड़े पते की बात यही है। शहर में वैश्य समाज के सिरमौर बने रहने वाला सांसद अतुल गर्ग का परिवार इस चुनाव में उम्मीदवारी के लिए किसकी पैरवी करेगा। क्या अतुल गर्ग लोकसभा चुनाव में के टिकट के लिए हुई लामबंदी का एक बड़ा पिलर रहे ब्राहमण समाज के दावेदार की मदद करेंगे? या वैश्य समाज के किसी दावेदार को उनका आशीर्वाद मिलेगा? सियासत तो यही कहती है कि वे 2024 का हिसाब 2024 में चुकाने का प्रयास करेंगे। वैसे भी गाजियाबाद की मेयर और खुद सांसद वैश्य समाज से आते हैं।
बसपा की घोषणा के बाद वैश्य दावेदारों की चिंता बढ़ी
बसपा पीएन गर्ग के रूप में एक वैश्य को अपना उम्मीदवार घोषित कर चुकी है। बसपा ने पहले रवि गौतम को प्रत्याशी बनाया था लेकिन बाद भी अपना निर्णय बदल दिया। ऐसे में भाजपा इस सीट को वैश्य समाज के खाते से निकाल सकती है, लेकिन उसके बाद (हालांकि मतदाताओं के हिसाब से सबसे ऊपर) ब्राहमण समाज का दावा बनता है तो अगल- बगल वाली सीटों पर ब्राहमण होने के चलते भाजपा को सोशल इंजीनियरिंग गड़बड़ाने का खतरा लग सकता है, उसके बाद भाजपा के सामने पंजाबी समाज से कोई उम्मीदवार मैदान में उतारने का ही विकल्प बचेगा।
भाजपा में ब्राहमण समाज की मजबूत दावेदारी
हालांकि तमाम परिस्थितियों के बाद भी भाजपा के टिकट पर ब्राहमण समाज की दावेदारी सबसे मजबूत नजर आ रही है। कांग्रेस में वैश्य समाज से सुशांत गोयल और जेके गौड़ के नाम पर गंभीरता से विचार होने की खबरे सियासी गलियारों से आ रही हैं। हालांकि बसपा से पीएन गर्ग के नाम की घोषणा होने के बाद भाजपा के मयंक गोयल और कांग्रेस के सुशांत गोयल की दावेदारी कमजोर तो हुई ही है। आजाद समाज पार्टी सत्यपाल चौधरी को पहले ही अपना उम्मीदवार घोषित कर चुकी है।