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कांग्रेस का दोगलापन: मनमोहन सरकार की नीति पर मोदी सरकार ने किया अमल तो राहुल करने लगे राजनीति

विशेष संवाददाता

नई दिल्ली। आप इसे कांग्रेस का दोगलापन नहीं तो और क्या कहेंगे! लेटरल एंट्री को लेकर कांग्रेस आजकल काफी बवाल करने में लगी है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि लेटरल एंट्री स्कीम कांग्रेस ही लेकर आई थी। मनमोहन सरकार के दौरान कांग्रेस के सीनियर लीडर वीरप्पा मोइली इसे लाए थे। अब जब नरेन्द्र मोदी सरकार इसे लागू कर रही है, तो कांग्रेस हो-हल्ला करने लगी है। कांग्रेस के इस रुख पर बीजेपी नेता और रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कड़ी फटकार लगाई है। कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि ‘लेटरल एंट्री मामले पर कांग्रेस का पाखंड जगजाहिर है। इसे यूपीए सरकार ही लेकर आई थी। सेकंड एडमिनिस्ट्रेटिव रिफार्म कमीशन (एआरसी) 2005 में यूपीए सरकार के तहत स्थापित किया गया था। इसकी अध्यक्षता वीरप्पा मोइली ने की थी। यूपीए काल में बने एआरसी ने उन पदों को भरने के लिए विशेषज्ञों की भर्ती की सिफारिश की, जिनके लिए विशेष ज्ञान की जरूरत होती है। एनडीए सरकार ने इस सिफारिश को लागू करने के लिए एक पारदर्शी तरीका बनाया है। यूपीएससी के माध्यम से पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से भर्तियां की जाएंगी।’

कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के बेटे राहुल गांधी इस पर राजनीति कर रहे हैं। राहुल गांधी ने कहा है कि नरेन्द्र मोदी संघ लोक सेवा आयोग की जगह ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ के जरिए लोकसेवकों की भर्ती कर संविधान पर हमला कर रहे हैं। केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में महत्वपूर्ण पदों पर लेटरल एंट्री के झरिए भर्ती कर खुलेआम एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग का आरक्षण छीना जा रहा है।

दरअसल में संघ लोक सेवा आयोग (UPSC- यूपीएससी) ने हाल ही में लेटरल एंट्री के जरिए 45 संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों की भर्ती के लिए एक अधिसूचना जारी की है। लेटरल एंट्री में सरकारी क्षेत्र में निजी क्षेत्र के उन विशेषज्ञों को रखा जाता है जिनका ट्रेक रिकॉर्ड बेहतर होता है। और लगता है कि उनके आने से सरकारी संस्थान भी प्राइवेट की तरह बेहतर काम कर सकेंगे और बेहतर नतीजे दे सकेंगे। एक्सपर्ट लोगों के आने से सरकार किसी योजना को तेजी से लागू कर सकती है। इससे लोगों की ये धारणा बदलने की भी कोशिश होती है कि सरकारी अफसर काम नहीं करते क्योंकि उन्हें नौकरी जाने का डर नहीं होता। लेटरल एंट्री में अफसरों को तीन साल के कॉन्ट्रेक्ट पर रखा जाता है। बेहतर नतीजे देने पर उसे बढ़ाया भी जा सकता है।

कांग्रेसी नेता अब इसको लेकर हंगामा कर रहे हैं। लेकिन आप यह जानकर हैरत में पड़ जाएंगे कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी 1971 में लेटरल एंट्री के जरिए ही आर्थिक सलाहकार बनाए गए थे। बाद में वे वित्त मंत्री और पीएम भी बने थे। इतना ही नहीं कांग्रेस शासनकाल में तकनीकी विशेषज्ञ सैम पित्रोदा, अर्थशास्त्री बिमल जालान, कौशिक बसु, अरविंद विरमानी, मोंटेक सिंह अहलूवालिया, नंदन नीलेकणि को लेटरल एंट्री के जरिए ही प्रशासन में बड़े पद दिए गए थे।

बिमल जालान मुख्य आर्थिक सलाहकार के बाद रिजर्व बैंक के गवर्नर बने। कौशिक बसु और अरविंद विरमानी मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाए गए। रघुराम राजन मुख्य आर्थिक सलाहकार के बाद रिजर्व बैंक के गवर्नर बने। पूर्व आर्थिक सलाहकार मोंटेक सिंह अहलूवालिया योजना आयोग के उपाध्यक्ष भी बनाए गए। इसके साथ ही इंफोसिस के नंदन नीलेकणि भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण-आधार कार्ड के प्रमुख बनाए गए।

सोशल मीडिया के अनुसार पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के समय भी संतोष सोढ़ी और वी कृष्णमूर्ति को लेटरल एंट्री के जरिए सचिव बनाया गया था। उन्हीं के समय में डीवी कपूर की भी लेटरल एंट्री हुई थी और आईजी पटेल को पहले सचिव फिर रिजर्व बैंक का गवर्नर बनाया गया था। इंदिरा गांधी के समय मनमोहन सिंह आर्थिक सलाहकार बनाए गए थे। राजीव गांधी के समय केपी नांबियार को सचिव बनाया गया था। सैम पित्रोदा भी राजीव गांधी के समय लेटरल एंट्री से आए थे। ऐसे में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के सवाल उठाने पर लोग सोशल मीडिया पर उन्हें फटकार लगा रहे हैं।

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