विशेष संवाददाता
दुनियाभर में वहाबीवाद (वहाबिज्म) की बीते कुछ वर्षों में लगातार चर्चा रही है। वहाबी इस्लाम कैसे दुनिया में तेजी से फैला और इसके पीछे सऊदी अरब के साथ-साथ सोवियत रूस और अमेरिका की कितनी भूमिका रही, ये जानना भी दिलचस्प है। वहाबीवाद इस्लाम के शुद्धिकरण की वकालत करता है और पैगंबर मुहम्मद की मौत के बाद विकसित इस्लामी धर्मशास्त्र और दर्शन को अस्वीकार करता है। 18वीं सदी में वहाबी आंदोलन हुआ लेकिन इसका उभार बीते पांच-छह दशकों खासतौर से शीतयुद्ध के समय से देखा गया। वहाबी इस्लाम और इसके प्रसार पर बात करते हुए कुछ समय पहले सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने बताया था कि सऊदी की फंडिंग और पश्चिमी देशों की मदद से शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ का मुकाबला करने के लिए वहाबीवाद का प्रसार हुआ।
क्राउन प्रिंस ने बताया था कि सोवियत संघ के मुस्लिम देशों में प्रभाव को रोकने के प्रयास में शीत युद्ध के दौरान सऊदी अरब से उसके पश्चिमी सहयोगियों ने विदेशों में मस्जिदों और मदरसों में निवेश करने का आग्रह किया। वहाबीवाद सुन्नी शाखा के भीतर एक रूढ़िवादी आंदोलन है। इसका नाम इसके संस्थापक मोहम्मद इब्न अब्दुल वहाब के नाम पर रखा गया है, जिनका जन्म 18वीं शताब्दी में सऊदी अरब में हुआ था। इस शाखा के साथ विवाद भी लगातार जुड़ते रहे हैं। इस्लाम के ‘शुद्ध’ स्वरूप की ओर वापसी की बात कहने वाली इस विचारधारा से ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकियों का प्रभावित होना भी विवाद की वजह रही है।
वहाबीवाद का गढ़ रहा सऊदी अरब
द वीक की रिपोर्ट कहती है कि सउदी अरब में वहाबीवाद बड़े पैमाने पर प्रचलित हुआ और फिर दुनियाभर में फैला। इसकी वजह ये थी कि वहाबीवाद को बड़े पैमाने पर सऊदी शाही परिवार का समर्थन मिला। खासतौर से 20वीं सदी में वहाबीवाद को नया जीवन मिला जब 1932 से 1953 तक सऊदी पर शासन करने वाले अब्दुल अजीज इब्न सऊद जनजातियों को एकजुट करने के लिए इसका इस्तेमाल किया। 1979 में परिवार ने अफगानिस्तान में सोवियत विरोधी अभियान के हिस्से के तौर पर इसका इस्तेमाल करते हुए युवा मुस्लिम पुरुषों को रूसियों के खिलाफ लड़ने के लिए वहां जाने के लिए प्रोत्साहित किया। सउदी ने इस पंथ के प्रसार के लिए मस्जिदों, प्रचार और शिक्षण पर भारी खर्च करना शुरू कर दिया।
अमेरिकी विदेश विभाग का अनुमान है कि पिछले 40 वर्षों में रियाद ने मुख्यधारा की सुन्नी प्रथाओं को अधिक चरमपंथी ब्रांड के साथ बदलने के कार्यक्रम के हिस्से के रूप में 10 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश किया है। इसका नतीजा ये हुआ कि पश्चिम में वहाबीवाद को इस्लाम के असहिष्णु और आक्रामक रूप के रूप में जाना जाने लगा है। 2013 में स्ट्रासबर्ग की यूरोपीय संसद ने वहाबीवाद को वैश्विक आतंकवाद का मुख्य स्रोत घोषित किया, एक रिपोर्ट में इसे अन्य अत्याचारों के बीच बेंगाजी हमलों और सीरिया में युद्ध से जोड़ा गया।
इस्लामी दुनिया के लिए भी बना टेंशन की वजह
न्यू स्टेट्समैन के अनुसार, इस्लामिक स्टेट की विचारधारा की जड़ बनने के लिए वहाबीवाद को भी दोषी ठहराया गया है। यही कारण है कि यह पश्चिमी और इस्लामी नेताओं के लिए समान रूप से सिरदर्द बन गया है। हेनरी जैक्सन सोसाइटी की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि वहाबवादी सऊदी फंडिंग ब्रिटेन में चरमपंथ को प्रायोजित कर रही थी। द गार्जियन के अनुसार, ब्रिटेन के कई सबसे गंभीर इस्लामवादी नफरत फैलाने वाले उपदेशक सलाफी-वहाबी विचारधारा के भीतर बैठते हैं और विदेशों से प्रायोजित चरमपंथ से जुड़े हुए हैं।