धर्मेन्द्र पांडे
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को ईडी के भरपूर विरोध के बावजूद दिल्ली के मुख्यमंत्री एवं आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल को 1 जून तक अंतरिम जमानत दे दी। अरविंद केजरीवाल को यह जमानत लोकसभा चुनावों में उनकी पार्टी के प्रचार के लिए दिया गया है। प्रवर्तन निदेशालय ने केजरीवाल की अंतरिम जमानत का विरोध करते हुए कहा था कि इससे गलत परंपरा होगी।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने अंतरिम बेल से संबंधित सुनवाई करते हुए कहा कि शराब नीति मामले में केस अगस्त 2022 में दर्ज किया गया था और अरविंद केजरीवाल को लगभग डेढ़ साल बाद मार्च 2024 में गिरफ्तार किया गया। शीर्ष अदालत ने पूछा कि आखिर डेढ़ साल तक ईडी कहाँ थी।
हालाँकि, ईडी के विरोध के बावजूद अरविंद केजरीवाल को न्यायालय से अंतरिम जमानत मिल गई है, लेकिन इसको लेकर सोशल मीडिया पर कई लोग सवाल उठा रहे हैं। वैसे भारत में न्यायपालिका पर सवाल उठाने के रिवाज नहीं है, लेकिन जमानत का विरोध करते हुए ईडी ने जो तर्क दिया था वो उचित था। ईडी का संदेह भी सच साबित होता दिख रहा है।
सुप्रीम कोर्ट में दर्ज अपने हलफनामे में प्रवर्तन निदेशालय ने तर्क दिया था कि अगर चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत दी जाती है तो यह एक मिसाल कायम करेगा, जो सभी बेईमान राजनेताओं को अपराध करने और फिर चुनाव की आड़ में जाँच से बचने की अनुमति देगा। केंद्रीय एजेंसी ने कहा कि चुनाव प्रचार का अधिकार न तो मौलिक अधिकार है और ना ही कानूनी या संवैधानिक अधिकार है।
ईडी की आशंका आखिरकार सच साबित होती दिख रही है। अब राष्ट्रद्रोह में जेल में बंद खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह ने चुनाव में नामांकन दाखिल करने के लिए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट से सात दिनों के लिए अंतरिम जमानत की माँग की है। वह खडूर साहिब लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहता है। हालाँकि, हाई कोर्ट ने असम के डिब्रूगढ़ जेल में बंद अमृतपाल की याचिका खारिज कर दी है।
एनएसए के तहत जेल में बंद ‘वारिस पंजाब दे’ नाम के खालिस्तान समर्थक अमृतपाल की याचिका भले खारिज हो गई हो, लेकिन इससे एक नया रिवाज पैदा होने का खतरा पैदा हो गया है। इस देश में ऐसे दर्जनों नेता हैं, जिन पर विभिन्न मामलों में केस दर्ज है और कुछ नेता पुलिस एवं न्यायिक हिरासत में हैं। ऐसे में वे भी अपने लिए छूट की माँग कर सकते हैं। इनमें से प्रमुख नाम झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का नाम प्रमुख है।
अपने हलफनामे में ईडी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कहा था, ‘अभिसाक्षी की जानकारी में अभी तक किसी भी राजनीतिक नेता को चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत नहीं दी गई है। ये (अरविंद केजरीवाल) तो चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार भी नहीं हैं। यहाँ तक कि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार को भी चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत नहीं दी जाती है, अगर वह हिरासत में है।’
जाहिर सी बात है कि जब उम्मीदवार नहीं होने के बावजूद सिर्फ चुनाव प्रचार के लिए अरविंद केजरीवाल अंतरिम जमानत की माँग कर सकते हैं तो कई ऐसे नेता हैं तो खुद उम्मीदवार हैं। ऐसे में वे अरविंद केजरीवाल की जमानत को प्रमुखता से उदाहरण के रूप में पेश करके अपने लिए भी ऐसी माँग कर सकते हैं। ऐसी में न्यायालय के सामने एक अलग तरह का धर्मसंकट खड़ा हो सकता है।
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ भी जमीन घोटाले और मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जाँच चल रही है। ईडी ने उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में 31 जनवरी 2024 को ईडी ने गिरफ्तार किया था। अरविंद केजरीवाल का हवाला देखकर सोरेन भी सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं।
इसी तरह मनीष सिसोदिया भी न्याय में समानता के सिद्धांत का तर्क देकर अपने लिए अंतरिम जमानत की माँग कर सकते हैं। दरअसल, जमानत देना न्यायालय का विशेषाधिकार है और वह कई मामलों को ध्यान में रखते हुए किसी आरोपित को जमानत देता है।
अरविंद केजरीवाल को प्रचार के नमाा पर मिली जमानत के बाद अदालत में ऐसी याचिकाओं की लंबी लाइन लग सकती है, क्योंकि भारत में लगभग हर साल कहीं ना कहीं चुनाव होते ही रहते हैं। इनमें पंचायत से लेकर लोकसभा के चुनाव तक शामिल हैं।
कोर्ट में ईडी ने भी तर्क दिया था, ‘पिछले 5 वर्षों में लगभग 123 चुनाव हुए हैं। यदि चुनावी प्रचार के उद्देश्य से अंतरिम वैधानिकता है तो किसी भी राजनेता को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है और ना ही किसी राजनेता को अनुमति नहीं दी जा सकती है, क्योंकि चुनाव पूरे साल होता है।’ ईडी ने तर्क दिया था कि संघीय ढाँचे में हर चुनाव महत्वपूर्ण है। किसी को कम या अधिक महत्वपूर्ण नहीं कहा जा सकता।
एजेंसी ने यह भी तर्क दिया था कि अगर चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत दी जाती है तो यह एक मिसाल कायम करेगा, जो सभी बेईमान राजनेताओं को अपराध करने और फिर चुनाव की आड़ में जाँच से बचने की अनुमति देगा। केजरीवाल को मिली जमानत के बाद अब न्यायिक सुधार की मांग उठ सकती है।