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कर्पूरी ठाकुर के बाद अब आडवाणी को भारत रत्न, लोकसभा चुनाव से पहले मोदी ने अपने दांव से किस-किस को साध लिया

संवाददाता

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार ने महज 10 दिन के भीतर ही बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर और बीजेपी के दिग्गजन नेता लाल कृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देने की घोषणा कर दी है। लोकसभा चुनाव की दृष्टि से पीएम मोदी की घोषणा को सियासी रणभूमि में मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। मोदी ने कर्पूरी को भारत रत्न देकर विपक्षी दलों को चौंका दिया था। पीएम मोदी के इस कदम को मंडल की राजनीति में सेंध बताया जा रहा था। अब आडवाणी को भारत रत्न की घोषणा के बाद मोदी ने उन लोगों को भी साध लिया है जो मोदी पर आडवाणी को दरकिनार करने का आरोप लगाते रहे हैं।

आलोचकों का बंद हो जाएगा मुंह

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि लाल कृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का निर्णय बीजेपी के लाखों कार्यकर्ताओं को नया उत्साह और ऊर्जा देगा। कार्यकर्ताओं के मन में आडवाणी जी की भूमिका और उनके सम्मान को लेकर पिछले कुछ वर्षों से सवाल रहे हैं। इस कदम से कार्यकर्ताओं में यह संदेश जाएगा कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के सम्मान की परंपरा को आगे बढ़ाता है। इसके साथ ही यह उन लोगों का मुंह भी बंद करेगा जो आडवाणी जी को लेकर बीजेपी के वर्तमान नेतृत्व की आलोचना करते हैं।

मंडल की राजनीति का जवाब

इससे पहले समाजिक न्याय के पुरोधा महान जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न से सम्मानित करने का फैसले पर राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा रहे थे। कर्पूरी ठाकुर के जन्म-शताब्दी के अवसर पर यह निर्णय देशवासियों को गौरवान्वित करने वाला था। पिछड़ों और वंचितों के उत्थान के लिए कर्पूरी ठाकुर की अटूट प्रतिबद्धता और दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर अमिट छाप छोड़ी थी। बीजेपी के इस कदम को विपक्ष के मंडल राजनीति में सेंध बताया जा रहा था। कर्पूरी के मुद्दे पर ही जदयू और राजद में सियासी मतभेद भी सामने आए गए थे। मोदी ने अपने इस दांव से दलितों, वंचितों और उपेक्षित तबकों के बीच सकारात्मक भाव पैदा करने की कोशिश की।

पिछड़े वोटों पर नजर

मोदी के इस कदम को विपक्ष की जातिगत जनगणना का जवाब माना जा रहा था। इसके साथ ही राजनीतिक विश्लेषकों का मानना था कि बीजेपी विपक्ष को कोई मौका ही नहीं देना चाह रही थी। कर्पूरी को भारत रत्न की मांग जेडीयू के एजेंडे में शामिल था। बीजेपी को पता था कि राजद के मुस्लिम और यादव समीकरण की काट के लिए उसे अति पिछड़ों का समर्थन जरूरी है। हालांकि, अब तो नीतीश कुमार तो खुद एनडीए के पाले में हैं। ऐसे में अब बीजेपी के लिए दोहरा फायदा मिलने का अनुमान है।

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