सरकार के वकील ने अदालत से अंतिम अवसर मांगा, चार सप्ताह का वक्त दिया
गलत ढंग से मुआवजा बांटने वाले अफसरों पर कार्रवाई नहीं करने से कोर्ट खफा
अब समिति 10-15 वर्षों के भूमि अधिग्रहण मामलों का व्यापक विश्लेषण करेगी
विशेष संवाददाता
नोएडा। नोएडा के गेझा तिलपताबाद में हुआ करीब 100 करोड़ रुपये का मुआवजा घोटाला प्राधिकरण और उत्तर प्रदेश सरकार के गले की फांस बन गया है। इस मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की। एक बार फिर नोएडा अथॉरिटी और राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगी है। दरअसल, घोटाले की जांच करने के लिए गठित की गई स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) ने सुप्रीम कोर्ट के सामने केवल इसी मामले की रिपोर्ट पेश की। घोटाले के लिए जिम्मेदार अफसरों के नाम नहीं बताए और न ही कार्रवाई के बारे में जानकारी दी। इस पर अदालत ने नाराजगी जाहिर की। राज्य सरकार के वकील ने कोर्ट से अंतिम अवसर मांगा है। कोर्ट ने चार सप्ताह में मुकम्मल रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है। अब इस मामले पर अगली सुनवाई 17 जनवरी 2024 को होगी।
एसआईटी ने केवल एक मामले की जांच की
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच में जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस उज्जल भुयन शामिल रहे। कोर्ट ने कहा, हमारे 14.09.2023 और 05.10.2023 के आदेश में संदर्भित तथ्यान्वेषी समिति ने कथित तौर पर एक तथ्यान्वेषी रिपोर्ट प्रस्तुत की है। जिसकी एक प्रति स्थानीय भाषा में पढ़ी गई है। इस न्यायालय ने 14.09.2023 के आदेश के पैराग्राफ 3 में स्पष्ट टिप्पणी की थी। उसके बावजूद तथाकथित तथ्यान्वेषी रिपोर्ट अतिरिक्त मुआवजा जारी करने के केवल एक मामले के इर्द-गिर्द घूमती है। रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि वरिष्ठ अधिकारियों की समिति ने इस न्यायालय के आदेशों को समझने की भी परवाह नहीं की है। यह पता लगाने का कोई प्रयास नहीं किया गया कि अन्य भूमि अधिग्रहण मामलों में मुआवजे का भुगतान उचित ढंग से किया गया था या नहीं।
10-15 वर्षों के भूमि अधिग्रहण मामलों का व्यापक विश्लेषण करें
अदालत ने आगे कहा, हम यह कह सकते हैं कि समिति समय-समय पर न्यायालयों द्वारा पारित आदेशों पर बैठी नहीं रह सकती है। वह केवल यह देख सकती है कि जारी की गई मुआवजे की राशि न्यायालय के आदेशों के अनुसार थी या नहीं। जैसा कि ऊपर देखा गया है, एक मामले को छोड़कर समिति ने किसी अन्य फ़ाइल की जांच नहीं की है। राज्य सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता ने समिति को ऐसे अन्य मामलों की जांच करने के लिए अंतिम अवसर मांगा। अदालत ने कहा, न्याय हित में पिछले 10-15 वर्षों के सभी प्रमुख भूमि अधिग्रहण मामलों का व्यापक विश्लेषण करने की जरूरत है। इसके लिए समिति को चार सप्ताह का अतिरिक्त समय दिया जाता है। राज्य सरकार और नोएडा को जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई शुरू की गई? यदि कोई कार्रवाई चल रही है तो उसका विवरण प्रस्तुत करें। कौन से अफसर प्रथम दृष्टया मुआवजा राशि के अनियमित और अवैध भुगतान में शामिल पाए गए हैं? यह जानकारी चार सप्ताह के भीतर एक हलफनामे के माध्यम से रिकॉर्ड पर रखा जाए।अब इस मामलों की अगली सुनवाई 17.01.2024 को होगी।
यूपी सरकार द्वारा बनाई गई कमेटी
नोएडा अथॉरिटी द्वारा पिछले 10 से 15 साल में जितने बड़े जमीन अधिग्रहण को लेकर मुआवजा वितरण किया गया है, उसकी जांच की जाए। कोर्ट ने चार हफ्ते में जांच रिपोर्ट दायर करने को कहा है। कोर्ट ने यूपी सरकार द्वारा बनाई गई कमेटी की रिपोर्ट पर असंतोष जाहिर करते हुए यूपी सरकार को उनके द्वारा बनाई गई कमेटी से मुआवजा वितरण में हुए कथित फर्जीवाड़े की गंभीरता से जांच करने के लिए कहा। कोर्ट ने कमेटी को कहा कि अगर मुआवजा वितरण में कुछ गलत हुआ है या नोएडा अथॉरिटी द्वारा की गयी विभागीय जांच में कोई अधिकारी प्रथम दृष्टया शामिल पाया जाता है तो उसकी भी रिपोर्ट दाखिल की जाए।
क्या है पूरा मामला
नोएडा के गेझा तिलपताबाद गांव में पुराने भूमि अधिग्रहण पर गैरकानूनी ढंग से करोड़ों रुपये मुआवजा देने के मामले में शिकायत हुई थी। तत्कालीन सीईओ ऋतु माहेश्वरी के आदेश पर एफआईआर दर्ज करवाई गई। नोएडा के दो अधिकारियों और एक भूमि मालिक के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। इन लोगों पर 7,26,80,427 रुपये का मुआवजा बिना किसी अधिकार के गलत तरीके से भुगतान करने का आरोप है। इसे आपराधिक साजिश बताया गया है।
प्राधिकरण के सहायक विधि अधिकारी वीरेंद्र सिंह नागर को एफआईआर में नामजद किया गया। नागर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मांगी। हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। इसके बाद वीरेंद्र नागर ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर करके राहत की मांग की। अब इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने पिछली सुनवाई पर कहा था, सुनवाई के दौरान यह पता चला कि रिपोर्ट किया गया मामला एकमात्र उदाहरण नहीं है और ऐसे कई मामले हैं। जिनमें न्यू ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने भूमि के लिए मुआवजे का अवैध भुगतान किया है। कानून में किसी भी अधिकार के बिना मुआवज़ा दिया गया है। हमारे विचार में यह प्राधिकरण के एक या दो अधिकारियों के कहने पर नहीं किया जा सकता है। प्रथमदृष्ट्या संपूर्ण नोएडा सेटअप इसमें शामिल प्रतीत होता है।
यूपी सरकार ने एसआईटी का गठन किया
सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख को देखकर उत्तर प्रदेश सरकार ने स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम (एसआईटी) का गठन किया है। राज्य सरकार ने पिछली सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय में यह जानकारी दी थी। अदालत को सरकार के वक़ील ने बताया कि इस एसआईटी में तीन अफसर होंगे। एक अपर पुलिस महानिदेशक रैंक का अधिकारी भी शामिल किया गया है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि अगले 15 दिनों में यह एसआईटी जांच करेगी और अपनी रिपोर्ट अदालत के सामने पेश करेगी। अदालत ने यह तर्क स्वीकार कर लिया और आदेश में कहा कि रिपोर्ट के आधार पर अदालत स्वतंत्र जांच करवाने का फ़ैसला लेगी। आपको बता दें कि इस मामले में नोएडा प्राधिकरण के क्लर्क वीरेंद्र नागर की जमानत याचिका हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी। वीरेंद्र नागर सुप्रीम कोर्ट से जमानत मांगने पहुंचे थे। क्लर्क की विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में क्या कहा
गुरुवार को हुई सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी किया है। लिखा है कि पिछली सुनवाई दिनांक 14 सितंबर 2023 के आदेश के अनुपालन में उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से उपस्थित विद्वान अतिरिक्त महाधिवक्ता ने कहा कि एक समिति में तीन अधिकारी शामिल हैं। जिसमें मेरठ के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक शामिल हैं। इस एसआईटी का गठन उन मामलों की जांच करने के लिए किया गया है, जहां न्यू ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने मिलीभगत से अवैध रूप से मुआवजे का भुगतान किया है। इस समिति को एसआईटी नाम दिया गया है, लेकिन हमें ऐसा प्रतीत होता है कि यह मूलतः एक तथ्यान्वेषी समिति है। समिति तुरंत नोएडा के रिकॉर्ड की जांच करे और दो सप्ताह के भीतर इस न्यायालय को एक रिपोर्ट सौंपे। कोर्ट ने आगे कहा है, यह स्पष्ट किया जाता है कि उक्त प्रयोजन के लिए कोई अतिरिक्त समय नहीं दिया जाएगा। इस न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जाने वाली रिपोर्ट के अवलोकन के बाद सुनवाई की अगली तारीख पर स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के लिए निर्देश जारी करने की वांछनीयता पर विचार किया जाएगा। अब इन मामलों को 02 नवंबर 2023 को सुनवाई के लिए पेश किया जाएगा। याचिकाकर्ताओं को दी गई अंतरिम राहत जारी रहेगी।पिछली सुनवाई पर
अदालत ने की थी तल्ख टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा अथॉरिटी पर तल्ख टिप्पणी की थी। प्राधिकरण के पूरे सेटअप को भ्रष्ट बताया था। जिस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा अथॉरिटी पर सवाल खड़े किए हैं और उत्तर प्रदेश सरकार को लताड़ लगायी है, वह अपने आप में हैरानी भरा है। जिससे साफ पता चलता है कि अथॉरिटी के अफसर कैसे सरकारी खजाने को लूटने में जुटे हुए हैं। जिम्मेदार अफसरों और कर्मचारियों पर कार्रवाई नहीं होने से मनोबल बढ़ रहा है। यही बात सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के दौरान कही है। उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है। नोएडा अथॉरिटी के लॉ ऑफ़िसर सुशील भाटी ने 20 मई 2021 को शहर के थाना सेक्टर-20 में एफआईआर दर्ज करवाई थी। मुकदमा अपराध संख्या 581/2021 आईपीसी की धारा 420, 467, 468, 471, 120बी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1)(ए) के तहत दर्ज किया गया। गेझा तिलपताबाद गांव के खसरा नंबर 684, 694, 714 में किसान फुनदन सिंह की भूमि 24 नवंबर 1982 को कुल रकबा 10-15-15 बीघे का अधिग्रहण किया गया था। दिनांक 27 दिसंबर 1983 को भूमि अर्जन अधिकारी ने 10.12 प्रति वर्गगज की दर से इस ज़मीन का मुआवजा दिया गया।