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वाह री..कमिश्‍नरेट पुलिस: अफसरों की फौज, तमाम संसाधन पर सरकारी नौकरी के नाम पर ठगी करने वाले को पकड़ना तो दूर एफआईआर तक दर्ज नहीं

सरकार नौकरी के नाम पर ठगी के शिकार पीडित अब गाजियाबाद पुलिस से निराश होकर मुख्‍यमंत्री के जनता दरबार में पेश होंने का मन बना रहे

विशेष संवाददाता

गाजियाबाद। गाजियाबाद को पुलिस कमिश्नरेट बने करीब 9 माह पूरे हो चुके हैं। लेकिन जिस मकसद को लेकर पुलिस को कमिश्नरेट सिस्टम के तहत लाया गया था उसका फायदा होता नहीं दिख रहा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का लक्ष्य था कमिश्नरेट बनने के बाद पुलिस की मानवीय क्षमता और संसाधनों में इजाफा होगा जिससे लोगों को त्वरित न्याय मिल सकेगा और अपराधों पर लगाम लगेगी। लेकिन करोड़ों का बजट खर्च करने और आईपीएस अफसरों की फौज मिलने के बावजूद गाजियाबाद पुलिस न तो अपराधों पर नियंत्रण लगा पाई है और ना ही लोगों को पुलिस से त्‍वरित न्‍याय मिल रहा है। 

ऐसा ही एक मामला सामने आया है जिसमें सरकारी नौकरी दिलाने के नाम पर 4 लोगों के साथ हुई ठगी के पीड़ितों को इंसाफ पाने के लिए दर दर भटकना पड़ रहा है। पुलिस ने आरोपियों को पकड़ना तो दूर अभी तक मुकदमा तक दर्ज नहीं किया जबकि पीड़ितों ने जालसाजी के तमाम सुबूत पुलिस को उपलब्ध करा दिए है। 

आरोपी जीवन लाल व उसकी बेटियों को निलाया ग्रींन्‍स सोसाइटी में दर्ज रिकार्ड

मामला बापूधाम थाना क्षेत्र का है, जहां सदरपुर रोड पर बालाजी एनक्लेव में रहने वाले दयाशंकर जो नंदग्राम क्षेत्र में मोरटा रोड़ पर एच ब्लॉक की निलाया ग्रीन्स सोसाइटी में सुरक्षा गार्ड की नौकरी करते हैं। पुलिस में दी गई शिकायत के मुताबिक दयाशंकर की मुलाकात यहीं पर फ्लैट संख्या 1402 में रहने वाले जीवन लाल से हो गई। सोसाइटी के गेट पर आने जाने के दौरान हुई मुलाकात में जीवन लाल ने दयाशंकर को बताया था कि वह दिल्‍ली नगर निगम में सेनेट्री इंसपेक्‍टर के पद पर तैनात है उसने अपना परिचय पत्र भी दयाशंकर को दिखाया था। जीवनलाल से उसकी घनिष्‍ठता बढ़ गई और दयाशंकर उन्‍हें अपने बेटे व बेटी की नौकरी किसी अच्‍छी जगह लगवाने के लिए कहने लगा।

आरटीजीएस व नैटबैंकिंग से आरोपी के खातेे में ट्रांसफर की गई रकम के साक्ष्‍य

एक दिन जीवन लाल ने दयाशंकर को बताया कि दिल्‍ली एमसीडी में नौकरी निकली हुई है। अगर वह चाहे तो उसके बच्‍चों की नौकरी लगवाने का काम कर सकता है क्‍योंकि उच्‍चाधिकारियों से उसकी अच्‍छी जान पहचान है। साथ ही उसने दयाशंकर के पूछने पर बताया कि नौकरी लगवाने के लिए प्रति कैंडीडेट 8 लाख रूपए देने होंगे। हांलाकि रकम बहुत बडी थी लेकिन बच्‍चों के उज्‍जवल भविष्‍य के लिए दयाशंकर ने हामी भर दी और बरेली में अपना प्‍लॉट 16  लाख रूपए में बेच दिया। उन्‍होंने जीवन लाल को दोनों बच्‍चों की नौकरी के लिए  सात लाख पचहत्‍तर हजार रूपया आरटीजीएस के जरिए और बाकी साढे आठ लाख की रकम 6 मई को नकद दिए थे। ये रकम जीवन लाल ने दयाशंकर के घर पर अपनी दोनों बेटियों  सोनिका और वंशिका के साथ उन्‍हीें के घर से आकर ली थी । जब दयाशंकर के साले गोविन्‍द् कुमार को अपने बहनोई के बेटे बेटी की एमसीडी में पैसा देकर नौकरी लगने की बात पता चली तो उन्‍होंने भी अपने बेटे की नौकरी के लिए जीवन लाल को उन्‍हीें के घर पर 8 लाख रूपए दे दिए। दयाशंकर के पुत्र के दोस्‍त तुषार गौतम जो नंदग्राम इलाके में रहता हैं उसने भी अपनी नौकरी के लिए जीवन लाल को  नेट बैंकिंग के जरिए पहले ढाई लाख रूपए उसके बाद अलग-अलग तिथियों में क्रमश: एक लाख व पचास हजार रूपए अकाउंट में ट्रांसफर कर दिए। जीवन लाल ने दयाशंकर व अन्‍य पीडितों को डोक्‍यूमेंट वैरीफिकेशन, मैडीकल टेस्‍ट और इंटरव्‍यू के बाद जल्‍द ही नौकरी का नियुक्ति पत्र दिलाने का वायदा किया था। लेकिन वक्‍त गुजरता गया लेकिन न तो दिल्‍ली नगर निगम की तरफ से पीडितों को मैडीकल कराने का कोई डॉक्‍यूमेंट दिया गया ना ही कोई अप्‍वाइंटमेंट लेटर मिला।

पुलिस को जीवन लाल की कार का दिया गया साक्ष्‍य

जीवनलाल द्वारा लगातार की जा रही टालमटौल के बाद दयाशंकर व अन्‍य  पीडितों को उस पर शक होंने लगा। अचानक एक दिन जीवन लाल निलाया ग्रींस सोसाइटी से अपने किराए का मकान छोड़कर बे‍टियों व घर के सामान समेत चंपत हो गया। जैसे ही दयाशंकर व अन्‍य दो पीडित परिवारों को इस बात की खबर लगी तब साफ हो गया कि वे सभी सरकारी नौकरी के नाम पर साढे छब्‍बीस लाख रूपए की ठगी के शिकार हो गए हैं। इसके बाद पीडितों ने निलाया ग्रींस सोसाइटी से जीवनलाल के किराए के मकान का रेंट एग्रीमेंट, उसका आधार कार्ड, उसकी हुंडई वेन्‍यू कार का नंबर डीएल 5सीटी-4644 हासिल किया और सरकारी नौकरी के नाम पर ठगी किए जाने की पुलिस आयुक्‍त से शिकायत की। पुलिस मुख्‍यालय से पहले एसीपी ऑफिस उसके बाद बापूधाम थाने से होते हुए जांच व कार्रवाई के लिए शिकायत गोविन्‍द्पुरम चौकी इंचार्ज अशोक कुमार के पास पहुंच गई । दयाशंकर ने शिकायत के साथ आरोपी जीवन लाल का मोबाइल नंबर, उसकी गाडी का नंबर, उसका आधार कार्ड व उन सभी बैंको की डिटेल जिनमें रकम ट्रांसफर की गई पुलिस को उपलब्‍ध करा दिए है। 

हैरानी की बात देखिए कि करीब एक पखवारा गुजर जाने के बादवजूद ठगी को अंजाम देने वाले जीवन लाल व उसकी दोनों बेटियों का पकडा जाना तो दूर आरोपी दयाशंकर की शिकायत भी तक एफआईआर में भी तब्‍दील नहीं हुई है। पुलिस के पास आरोपी तक पहुंचने के लिए उसकी बैंक डिटेल, गाडी का नंबर और उसका मोबाइल नंबर तक है जिसके सहारे वह टैक्‍नीकल सर्विलांस से आरोपी को आसानी से पकड सकती है। लेकिन जांच अधिकारी हर बार पीडित को टरका देते है‍ कि इतने बडे देश में वे जीवन लाल को कहां तलाश करे और कैसे पकडे। 

दुखद बात है कि दिल्‍ली से सटे जिस हाईटेक सिटी को केवल इसीलिए कमिश्‍नरेट पुलिस का दर्जा दिया गया कि वहां दिल्‍ली पुलिस की तरह पुलिसिंग हो, उस शहर में लोगों को आज भी अपनी शिकायतों का निपटारा कराने, न्‍याय पाने के लिए पुलिस की चौखट पर नाक रगडनी पड रही है। झूठी शिकायतों पर लोगों का उत्‍पीडन और ट्रैफिक कंट्रोल के नाम पर सिर्फ चालान वसूली करके राजस्‍व बढाने में मशगूल गाजियाबाद कमिश्‍नरेट के पुलिस कर्मियों की पहले भी कई शिकायते सामने आ चुकी है। अपने जीवन भर की पूंजी सरकारी नौकरी के नाम पर ठगी करने वाले जीवन लाल के हाथों गंवाने के बाद दयाशंकर गाजियाबाद कमिश्‍नरेट पुलिस के रवैय्ये से बेहद हताश है और इंसाफ की आस में मुख्‍यमंत्री के जनता दरबार में पेश होंने का मन बना रहा है।

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