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गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देने पर विवाद: जयराम रमेश गोडसे को सम्मान देने जैसा बताया, भाजपा का पलटवार

नई दिल्‍ली। केंद्र सरकार ने 2021 का गांधी शांति पुरस्कार गीता प्रेस (गोरखपुर) को देने की घोषणा की है। इस पर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सोमवार को ट्वीट कर कहा- केंद्र सरकार का यह फैसला सावरकर और नाथूराम गोडसे को सम्मान देने जैसा है।

जयराम रमेश के बयान पर भाजपा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा- ये राहुल गांधी के सलाहकार का बयान है। इनसे उम्मीद भी क्या कर सकते हैं। इन लोगों ने राम मंदिर निर्माण में रोड़े अटकाए। तीन तलाक कानून का विरोध किया। इससे ज्यादा शर्मनाक और क्या हो सकता है। पूरे देश को इनका विरोध करना चाहिए।

गीता प्रेस एक करोड़ की सम्मान राशि नहीं लेगी
गीता प्रेस गांधी शांति पुरस्कार को तो स्वीकार करेगी, लेकिन एक करोड़ की सम्मान राशि नहीं लेगी। गीता प्रेस के बोर्ड ने इसका ऐलान सोमवार को किया। केंद्र सरकार ने 18 जून को गीता प्रेस को 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार देने की घोषणा की थी।

गीता प्रेस के प्रबंधक लाल मणि तिवारी ने सोमवार को पीएम मोदी और सीएम योगी का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यह सम्मान हमारे लिए हर्ष की बात है। गीता प्रेस ने 100 सालों में कभी कोई आर्थिक मदद या चंदा नहीं लिया। सम्मान के साथ मिलने वाली धनराशि को स्वीकार नहीं की। ऐसे में बोर्ड ने फैसला लिया है कि सम्मान के साथ मिलने वाली धनराशि स्वीकार नहीं की जाएगी।

पीएम ने गीता प्रेस की सराहना की
पीएम मोदी ने रविवार को इस पुरस्कार के लिए गीता प्रेस को बधाई दी थी। उन्होंने कहा कि गीता प्रेस को अपनी स्थापना के 100 साल पूरे होने पर गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जाना सामुदायिक सेवा में किए गए कार्यों की सराहना करना है। गांधी शांति पुरस्कार 2021, मानवता के सामूहिक उत्थान में योगदान देने के लिए गीता प्रेस के महत्वपूर्ण और अद्वितीय योगदान को मान्यता देता है, जो सच्चे अर्थों में गांधीवादी जीवन शैली का प्रतीक है।

गीता से प्रेरित होकर सेठ गोयंदका ने 1923 में खोला था प्रेस
श्रीमद्भगवद्गीता और रामचरितमानस को घर-घर में पहुंचाने का श्रेय भी गीता प्रेस को जाता है। गीता प्रेस के शुरू होने की कहानी बड़ी ही दिलचस्प है। बात 1920 के दशक की है। कलकत्ता के एक मारवाड़ी सेठ जयदयाल गोयंदका रोज गीता पढ़ते थे। 18वें अध्याय में गीता सार के रूप में लिखी एक बात उनके दिल को छू गई। ये बात यह थी, ‘जो इस परम रहस्य युक्त गीताशास्त्र को मेरे भक्तों में कहेगा, वह मुझको प्राप्त होगा।’

इसी के बाद लोगों के कहने पर गोयंदका ने अपनी व्याख्या को एक प्रेस से छपवाया, लेकिन उसमें भयंकर गलतियां देखकर वे दुखी हो गए। उसी दिन उन्हें प्रेस का ख्याल आया। फिर गोरखपुर के अपने एक श्रद्धालु घनश्यामदास जालान के सुझाव पर इसी शहर में 10 रुपए के किराए के मकान में 1923 में गीता प्रेस की शुरुआत की गई।

आइए गीता प्रेस को जानते हैं…

शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा
गीता प्रेस…इस वक्त शताब्दी वर्ष (100वीं वर्षगांठ) मना रहा है। समापन समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल होंगे। उनके कार्यक्रम की स्वीकृति मिल चुकी है, लेकिन तारीख अभी फाइनल नहीं हुई है।

कर्मचारी जूते-चप्पल उतारकर छपाई का काम करते हैं
पूरा गीता प्रेस एक मंदिर नुमा दफ्तर है, जहां रूटीन का कामकाज भी पूजा-पाठ से कम नहीं है। यहां की दीवारों पर चौपाइयों के साथ गुटका, पान-मसाला और धूम्रपान का इस्तेमाल नहीं करने की सख्त हिदायत दी गई है।

छपाई में लगे कर्मचारी किताब की फाइनल बाइंडिंग के वक्त जूते-चप्पल उतारकर काम करते हैं। ताकि पाठकों की श्रद्धा और विश्वास से धोखा न हो। अंदर कैंपस में प्रेस मशीनों के साथ भव्य आर्ट गैलरी भी है। जिसका अनावरण देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने किया था।

गीता प्रेस में फिलहाल 15 भाषाओं में 1848 प्रकार की किताबें प्रकाशित हो रही हैं। देशभर में प्रेस की 20 ब्रांच हैं। गीता प्रेस में रोजाना 70 हजार किताबें प्रकाशित हो रही हैं, जबकि डिमांड करीब 1 लाख किताब की है।

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