सुनील वर्मा
गाजियाबाद। गाजियाबाद नगर निगम चुनाव में इस बार निर्वतमान मेयर आशा शर्मा का टिकट काटकर ब्राह़मणों की उपेक्षा का दांव भाजपा को भारी न पड़ जाए। जिस जातीय समीकरण को साधकर पिछली बार भाजपा ने भारी मतों से मेयर चुनाव जीता था ठीक उलट इस बार वे जातीय समीकरण एकदम गडबडा गए है। भाजपा में टिकट न मिलने से नाराज लोगों की बगावत को देखकर व जातीय समीकरणों को साधने में हुई चूक को देखकर अभी से लग रहा है कि भाजपा को अपनी परंपरागत मेयर सीट इस बार गवांनी न पड जाए लेकिन अगर पार्टी के परंपरागत वोट ने साथ भी दे दिया तो भाजपा की जीत का अंतर वैसा नहीं होगा जैसा पिछली बार आशा शर्मा का था।
बता दें कि गाजियाबाद निगम क्षेत्र में 1.90 लाख वैश्य, 1.75 लाख ब्राह्मण, 1.82 लाख एससी, 1.80 लाख मुस्लिम, 2.35 लाख ओबीसी, 1.45 लाख पंजाबी वोटर हैं। इसके अलावा जाट, गुर्जर, त्यागी, ठाकुर एवं यादव वर्ग को मिलाकर करीब चार लाख वोटर हैं।
2017 के चुनाव में वैश्य, पंजाबी, ब्राह्मण और ओबीसी वोट बैंक पर कब्जा कर भाजपा की मेयर प्रत्याशी आशा शर्मा ने 2,82,7932 वोट हासिल और प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस प्रत्याशी डॉली शर्मा को 1,63,675 मतों से करारी शिकस्त दी।
पिछले निकाय चुनाव में 5.67 लाख मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। सभी प्रमुख राजनीतिक दलों को मिलाकर कुल 13 प्रत्याशी मेयर पद के लिए चुनाव मैदान में थे। इनमें से अकेले भाजपा प्रत्याशी आशा शर्मा को ही करीब 50 प्रतिशत वोट मिले। इससे साफ होता है कि अपने जातीय आंकड़ों के समीकरण में जहां भाजपा पास हुई, वहीं अन्य सभी दल फेल हो गए।
पिछले चुनाव में भाजपा की नजर विशेष रूप से अपने परंपरागत वैश्य, पंजाबी और ब्राह्मण वोटों पर थी। इस बार भी उसका यहीं प्रयास होगा । लेकिन इस बार कामयाबी मिलना इतना आसान नहीं है। क्योंकि निर्वतमान मेयर आशा शर्मा ही नहीं भाजपा से मेयर का टिकट मांग रही करीब पांच ब्राह्मण मेयर दावेदारों को टिकट में दरकिनार कर दिया गया। ब्राह्मण समाज से ही जुड़े त्यागी समाज को भी टिकट में अनदेखा किया गया है। मेयर टिकट के लिए शशि अरोडा व दूसरे पंजाबी उम्मीदवारों को जिस तरह अनदेखा किया गया है वो नाराजगी भी भाजपा को भारी पड़ सकती है। पंजाबी कोटे से तो पार्षदों को दिए गए टिकटों की संख्या भी अंगुलियों पर गिनी जा सकती है।
ब्राह्मण व त्यागी समाज का भाजपा में जबरदस्त असर है। भाजपा को लोकसभा से लेकर पांचों विधानसभा सीटों पर प्रचंड जीत दिलाने में ब्राह्मण व त्यागी समाज ने अग्रणी भूमिका निभाई थी लेकिन जिस तरह इस बार उन्हें अनदेखा किया गया और उसके बाद पार्टी में जो रहा मची है। उसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। इधर वैश्य समाज में ही सुनीता दयाल को लेकर तीन गुट बन चुके है। पूर्व मेयर दमयंती गोयल की पुत्रवधु डा. रूचि गर्ग को टिकट न मिलने के बाद उनके सर्मथक नाराज है तो वरष्ठि नेता लज्जा रानी गर्ग के सर्मथकों में पार्टी के प्रति निराशा है। ब्राह्मण व त्यागी समाज के कई संगठनों ने आशा शर्मा के काम की उपलब्धियों को आधार मानकर पार्टी से उन्हें दोबारा टिकट देने की मांग की थी। लेकिन पार्टी ने इसे अनसुना कर दिया। जबकि हकीकत ये है कि विधानसभा चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव में पार्टी इन दोनों समुदायों से प्रबुद्ध वर्ग के सम्मेलन करवाकर अगडी जातियों को अपने पक्ष में करने का अभियान चलाती है। लेकिन इस बार टिकट में जिस तरह ब्राह्मणों की अनदेखी हुई उसे लेकर ब्राह्मण समाज काफी आहत है।