दिल्ली। रामजन्मभूमि में विराजमान रामलला के भव्य मंदिर निर्माण के लिए 5 अगस्त, 2020 का दिन काफी महत्वपूर्ण है। इस दिन मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया जाएगा, जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी शामिल होंगे। वर्षों के संघर्ष और अनेक बाधाओं को पार करते हुए आखिर मोदी सरकार में भगवान राम के भव्य मंदिर का सपना हकीकत बनने जा रहा है। लेकिन देश में कुछ ऐसे तत्व है, जो साधु-संत के छद्म भेष में मंदिर निर्माण आंदोलन में रूकावटें खड़ी कर रहे थें। उनका मंदिर निर्माण से कोई लेना-देना नहीं था, लेकिन मंदिर के नाम पर प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार पर हमला करने के लिए कांग्रेस का मोहरा बनते रहे। इन संतों ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी मंदिर का निर्माण नहीं करा पाएंगे। जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, तो अपनी नाखुशी जाहिर की। अब अशुभ मुहूर्त में मंदिर निर्माण का कार्य शुरू करने का आरोप लगा रहे हैं। आइए जानते हैं, उन साधु-संतों को, जो धर्म की आड़ में सियासत का खेल खेलते हैं।
स्वरूपानंद सरस्वती ने भूमि पूजन के वक्त को बताया अशुभ घड़ी
स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती द्वारिकापीठ के शंकराचार्य हैं। कांग्रेस की भाषा बोलने के कारण स्वामी स्वरूपानंद को ‘कांग्रेस स्वामी’ भी कहा जाता है। उन्होंने भूमि पूजन की तारीख और मुहूर्त को लेकर विवाद खड़ा कर दिया। भूमि पूजन के लिए तय वक्त को अशुभ घडी बताते हुए कहा कि 5 अगस्त को दक्षिणायन भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि है। शास्त्रों में भाद्रपद मास में गृह, मंदिरारंभ कार्य निषिद्ध है। उन्होंने इसके लिए विष्णु धर्म शास्त्र और नैवज्ञ बल्लभ ग्रंथ का हवाला दिया। हालांकि, काशी विद्वत परिषद ने शंकराचार्य के तर्कों को निराधार बताते हुए कहा कि ब्रह्मांड नायक राम के खुद के मंदिर पर कैसे सवाल उठाया जा सकता है।
इससे पहले अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसला आने के बाद स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती ने फैसले पर नाखुशी जाहिर की। उन्होंने कहा कि हम इस फैसले से बिल्कुल खुश नहीं हैं। शंकराचार्य ने कहा कि ‘इससे झगड़े होंगे।’ 23 जुलाई, 2018 को वृंदावन में शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा था कि बीजेपी राम मंदिर बनवाना नहीं चाहती है, बल्कि उसका उद्देश्य राम मंदिर के नाम पर सत्ता हासिल करना है। वहीं संसद में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को झप्पी दिए जाने की उन्होंने सराहना की। उन्होंने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि सरकार राम मंदिर के मुद्दे पर गुमराह कर रही है। मोदी सरकार गोहत्या रोकने, धारा 370 और समान सिविल कोड जैसे कानून नहीं बना सकी है।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार से नाराजगी प्रकट करते हुए द्वारका-शारदापीठ के शंकराचार्य ने कहा कि संत समाज का प्रतिनिधि होने के चलते योगी आदित्यनाथ से बहुत आशाएं थीं कि वह तो संत समाज की आस्थाओं के अनुसार कार्य करेंगे ही, लेकिन अफसोस है कि वह भी इसके बिल्कुल उलट कार्य कर रहे हैं। वह स्वयं मंदिर और प्राचीन विग्रहों को तोड़ने जैसा कार्य करा रहे हैं।
महामंडलेश्वर स्वामी मार्तंड पुरी
महानिर्वाणी अखाड़े से जुड़े महामंडलेश्वर स्वामी मार्तंड पुरी ने जनवरी 2019 में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद द्वारा विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के दो दिवसीय “धर्म संसद” का बहिष्कार करने के फैसले का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि अखाड़ा परिषद ने अपने अधिकार का दायरा बढ़ाना शुरू कर दिया है। साधुओं के मामले में संघ परिवार के बढ़ते हस्तक्षेप से परिषद काफी नाराज है। परिषद के अध्यक्ष नरेन्द्र गिरि ने कहा था कि विहिप बीजेपी के लिए काम करती है और साधुओं को राजनीति से दूर रहना चाहिए। यही कारण है कि अखाड़ा परिषद ने धर्म संसद का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है।
अविमुक्तेश्वरानंद ने पीएम मोदी पर बोला हमला
नवंबर 2018 में काशी धर्म संसद में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोलते हुए कहा था कि माता कभी कुमाता नहीं होती, लेकिन पुत्र कभी कभी कुपुत्र हो जाता है। तो पुत्र तो हैं वो (पीएम मोदी) क्योंकि वो खुद को कहते हैं कि मैं गंगा मां का पुत्र हूं तो हम इसे कैसे खारिज कर दें कि वो पुत्र नहीं हैं। लेकिन उनके आचरण से ये सिद्ध हो जाता है कि वो गंगा माता के सुपुत्र नहीं बल्कि कुपुत्र हैं। क्योंकि उन्होंने गंगा मां के नाम पर सत्ता हासिल की और गंगा माता की कोई सुध नहीं ली।
अविमुक्तेश्वरानंद ने सिर्फ गंगा मां का मुद्दा ही नहीं बल्कि राम मंदिर का मुद्दा भी उठाकर मोदी सरकार पर हमला किया। उन्होंने कहा कि राम मंदिर को लेकर लगातार प्रधानमंत्री मोदी सिर्फ राजनीति कर रहे हैं और उनका मंदिर निर्माण का कोई इरादा नहीं है।
महंत से राजनीतिज्ञ बने आचार्य प्रमोद कृष्णम
पश्चिमी यूपी के संभल जिले के कल्कि धाम के महंत आचार्य प्रमोद कृष्णम अब पूरी तरह कांग्रेस के रंग में रंग चुके हैं। आचार्य ने 2019 का लोकसभा चुनाव लखनऊ से मौजूदा रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के खिलाफ कांग्रेस से लड़ा। कांग्रेस अब उनको अहमियत दे रही है। टीवी चैनलों पर होने वाली बहस में प्रमोद कृष्णम कांग्रेस का पक्ष रखते और मोदी सरकार पर हमला करते नजर आते हैं। इससे पहले यूपी में समाजवादी पार्टी के सरकार रहते वह शिवपाल यादव के भी करीबी थे।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने सीएम योगी पर भगवा रंग को लेकर हमला किया था, जिसे बीजेपी ने साधु-संतों का अपमान करार दिया। इसके बाद कांग्रेस ने आचार्य प्रमोद कृष्णम को मैदान में उतारा। कांग्रेस के सूत्रों के मुताबिक प्रियंका वाड्रा कांग्रेस को मजबूत करने की मुहिम में आचार्य प्रमोद संग साधु संतों को जोड़ने की कोशिश में लगी है। आचार्य की मुस्लिमों में भी पैठ मानी जाती हैं। जनवरी 2018 में मुजफ्फरनगर में आचार्य प्रमोद कृष्णम ने कहा कि भाजपा ने अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण का वादा किया था, लेकिन वह अपना वादा पूरा नहीं कर सकी।
आचार्य प्रमोद कृष्णम की सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल हुई। जिसमें वह साधु संतों के साथ चिलम पीते हुए नजर आ रहे हैं। आचार्य प्रमोद की सोशल मीडिया पर लोगों ने तरह-तरह की टिप्पणियां करनी शुरू कर दी। अब लोग उन्हें चिलमबाज पीठाधीश्वर कहने लगे हैं। जब इसके बारे में उनसे सवाल किया गया, तो उन्होंने चुप्पी साध ली।
सत्ता के करीब रहने वाले कंप्यूटर बाबा
इंदौर के दिगंबर अखाड़े से ताल्लुक रखने वाले कंप्यूटर बाबा का असली नाम नामदेव त्यागी है। वह हमेशा सत्ता के करीब रहना चाहते हैं। 2018 में तत्कालनी शिवराज सिंह चौहान की सरकार में राज्यमंत्री का दर्जा पाने वाले कंप्यूटर बाबा ने छह महीने में ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया। नर्मदा में अवैध खनन का आरोप लगाते हुए उन्होंने शिवराज सरकार को निशाने पर लिया।
विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ काफी प्रचार किया। बाबा ने बुधनी विधानसभा क्षेत्र में खासतौर पर शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ भी प्रचार किया था। भाजपा पर लगातार हमले के लिए कांग्रेस की तरफ से उन्हें इनाम भी मिला। तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कंप्यूटर बाबा को ‘नर्मदा, क्षिप्रा एवं मंदाकिनी नदी न्यास’ के अध्यक्ष के तौर पर नियुक्त किया।
फरवरी 2019 में पाकिस्तान के बालाकोट में आतंकी ठिकानों पर हुए एयर स्ट्राइक के मामले में भी कंप्यूटर बाबा कांग्रेस के साथ खड़े नज़र आए। उन्होंने एयर स्ट्राइक पर सवाल किए और प्रधानमंत्री मोदी पर हमला करते हुए पूछा कि उनके मंत्री और अध्यक्ष सेना की कार्रवाई में मारे गए चरमपंथियों की संख्या अलग-अलग क्यों बता रहे हैं।