
विशेष संवाददाता
नई दिल्ली। साल 2025 का इंडिया जस्टिस रिपोर्ट आ गया है. ये भारत में न्याय तक लोगों की पहुंच और प्रशासन से लेकर न्यायापालिका तक में जैसे अहम महकमे में अलग-अलग समुदाय विशेष के प्रतिनिधित्व की बात करता है. ये रिपोर्ट पहली बार साल 2019 में आई थी. इसके बाद ये रिपोर्ट 2021, 2023 में आई. इस रिपोर्ट को टाटा ग्रुप की मदद से तैयार किया जाता है.
इस साल की रिपोर्ट में पुलिस विभाग में पिछड़े समुदाय के प्रतिनिधित्व से लेकर ओवरऑल भारत में पुलिस की मौजूदा स्थिति पर भी सवाल उठाया गया है. सबसे दिलचस्प बात ये है कि भारत में ऑफिसर स्तर पर 28 फीसदी पद खाली हैं. जबकि कॉनस्टेबल स्तर पर 21 फीसदी पद रिक्त हैं. अगर एक लाख लोगों पर भारत में पुलिस बल की तादाद देखें तो एक अलग कहानी मालूम चलती है.
प्रति 1 लाख लोगों पर 120 पुलिस
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक 1 लाख की आबादी पर कम से कम 222 पुलिस होने चाहिए. लेकिन भारत में पुलिस बल की तादाद इस पैमाने पर काफी कम है. भारत में प्रति एक लाख आबादी पर केवल 120 पुलिसवाले हैं. अगर पुलिस विभाग में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की बात की जाए तो स्थिति और भी चिंताजनक है.
वरिष्ठ पदों पर महिलाएं न के बराबर!
भारत में करीब 20 लाख पुलिसवाले हैं. इनमें महिला पुलिस कर्मचारियों की संख्या 2 लाख 42 हजार 835 है. पर वरिष्ठ पदों पर महिलाओं की भागीदारी नगण्य है. आईपीएस अधिकारियों की संख्या महज 960 है. जबकि डीआईजी, डीजी, आईजी, एडिशनल एसपी और डिप्टी कमिश्नर तक के पदों पर तैनात महिलाओं की संख्या को जोड़ दिया जाए तो ये 4 हजार 940 तक पहुंचता है. इंडिया जस्टिस रिपोर्ट तैयार करने वालों को कोई भी ऐसा राज्य नहीं दिखा जहां महिलाओं के लिए आरक्षित पुलिस महकमे में सभी पद भरे हुए हों.
SC, ST, OBC की भागीदारी कितनी
रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस विभाग में एससी, एसटी और ओबीसी समुदाय का प्रतिनिधित्व करीब 59 फीसदी रहा है.पुलिस विभाग में अनुसूचित जाति के लोगों की संख्या 17 फीसदी जबकि अनुसूचित जनजाति की तादाद 12 प्रतिशत है. हालांकि, रैंकिंग में काफी ज्यादा गैरबराबरी है. मसलन – कॉन्स्टेबल स्तर के 61 फीसदी पदों पर एससी, एसटी और ओबीसी समुदाय के लोग तैनात हैं. जबकि डिप्टी एसपी वरिष्ठ पदों पर इनकी तैनाती महज 16 फीसदी है.