
विशेष संवाददाता
नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अब पंजाब की राजनीति में पूरी ताकत झोंकते नजर आ रहे हैं. दिल्ली में जहां उनकी टीम स्थानीय मुद्दों पर भाजपा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है, वहीं दूसरी ओर केजरीवाल खुद पंजाब में नशे के खिलाफ अभियान की अगुवाई कर रहे हैं. यह बदलाव केवल राजनीतिक रणनीति है या फिर एक बड़ी लड़ाई की तैयारी? वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक एनके सिंह इसे केजरीवाल की “अस्तित्व की लड़ाई” बताते हैं.
दिल्ली की हार ने आम आदमी पार्टी की रणनीतिक दिशा बदल दी है. पार्टी के नेता संजय सिंह वक्फ बोर्ड संशोधन बिल को लेकर मुखर हैं, आतिशी बिजली संकट पर सरकार को घेर रही है. वहीं, सौरभ भारद्वाज कपिल मिश्रा के मामले पर आक्रामक रुख अपनाए हुए हैं. पार्टी के सभी नेता अब निजी स्कूलों द्वारा फीस बढ़ाने के मुद्दे पर भाजपा को घेर रहे है. इन सब के बीच अरविंद केजरीवाल की दिल्ली में अनुपस्थिति साफ नजर आ रही है. केजरीवाल अब पंजाब को अपना नया राजनीतिक केंद्र बना चुके हैं.
नशे के खिलाफ मुहिम में केजरीवाल के सख्त तेवर: पंजाब में अरविंद केजरीवाल लगातार नशा तस्करों के खिलाफ सख्त कार्रवाई को प्रचारित कर रहे हैं. उनका दावा है कि बीते एक महीने में हजारों नशा तस्करों को गिरफ्तार किया गया है. कई प्रभावशाली लोगों के घरों तक बुलडोजर पहुंच चुका है. चेतावनी देते हुए केजरीवाल ने कहा है कि “या तो पंजाब में नशा बेचना बंद करो, या फिर पंजाब छोड़ दो.” इस मुहिम को जनता से भी समर्थन मिलता दिख रहा है. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि ये केवल एक प्रशासनिक पहल नहीं, बल्कि एक सोची-समझी राजनीतिक रणनीति है.
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक एनके सिंह ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा “अरविंद केजरीवाल दिल्ली में हार के बाद एक नई रणनीति पर काम कर रहे हैं. यह उनके लिए केवल चुनावी हार नहीं, बल्कि अस्तित्व के संकट की लड़ाई है. अगर पंजाब भी हाथ से चला गया, तो ‘आप’ का राष्ट्रीय स्तर पर टिके रहना मुश्किल हो जाएगा. बीजेपी की केंद्र सरकार पहले ही उन्हें कानूनी मोर्चों पर घेरने की कोशिश कर रही है. ऐसे में केजरीवाल के पास पंजाब को मजबूत करना अब सिर्फ एक विकल्प है”
एनके सिंह ने कहा कि दिल्ली में फिलहाल करने के लिए कुछ नहीं है. विधानसभा चुनाव अभी दूर हैं. सरकार के पास कोई बड़ा काम नहीं बचा है. इसके उलट पंजाब में 2027 के चुनावों के लिए अभी दो साल हैं और वहां जनता में गवर्नेंस को लेकर नाराजगी भी दिख रही है. केजरीवाल वहां खुद की मौजूदगी से इस असंतोष को अवसर में बदलना चाहते हैं.
एनके सिंह का मानना है कि केजरीवाल अपनी पुरानी छवि एक क्रांति लाने वाले भ्रष्टाचार-विरोधी योद्धा को अब ड्रग्स के मुद्दे से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि पंजाब में ड्रग्स एक बड़ा और संवेदनशील मुद्दा है. यह ऐसा विषय है जिस पर किसी धर्म, जाति या वर्ग की भावना आहत नहीं होती. यही वजह है कि यह एक सुरक्षित और प्रभावी राजनीतिक मुद्दा है. किसान आंदोलन या धर्म आधारित राजनीति की तुलना में यह ज्यादा कारगर हो सकता है. एनके सिंह ने यह भी कहा कि अकाली दल के कई नेता भी ड्रग्स के मामलों में संलिप्त पाए गए हैं, जिससे आप को हमले का सीधा मौका भी मिला है.
अभी यह सवाल उठ रहा है कि क्या अरविंद केजरीवाल की दिल्ली से दूरी पार्टी के लिए नुकसानदेह होगी? राजनीतिक विश्लेषक एनके सिंह का मानना है कि फिलहाल दिल्ली में कुछ करने के लिए बचा नहीं है, इसलिए पंजाब में ध्यान केंद्रित करना एक व्यावहारिक रणनीति है. अगर अरविंद केजरीवाल पंजाब में 2027 के विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन कर लेते हैं, तो इससे ‘आप’ को न केवल पंजाब में स्थिरता मिलेगी, बल्कि दिल्ली, गुजरात, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी मजबूती मिलेगी.
अरविंद केजरीवाल की ये नई रणनीति उन्हें दिल्ली की हार से उबार पाएगी या नहीं, ये तो वक्त बताएगा. फिलहाल इतना जरूर है कि वे खुद को एक ऐसे नेता के रूप में पेश करना चाहते हैं जो केवल सत्ता की राजनीति नहीं करता, बल्कि जनता के असली मुद्दों के साथ खड़ा रहता है. पंजाब में उनका डेरा और नशे के खिलाफ अभियान इसी दिशा में एक बड़ा संकेत है.