
विशेष संवाददाता
नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा के बजट सत्र में मंगलवार को मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता द्वारा पेश की गई ‘दिल्ली में वाहनों से होने वाले वायु प्रदूषण’ पर रिपोर्ट में राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण की स्थिति बिगड़ने के पीछे प्रमुख कारणों के रूप में प्रमुख नीतिगत कमियों और कमजोर क्रियान्वयन तथा एजेंसियों के बीच खराब समन्वय को उजागर किया गया है। भोजन अवकाश के बाद सीएजी की रिपोर्ट पर जैसे ही मनजिंदर सिंह सिरसा ने चर्चा शुरू की विपक्ष के सदस्यों ने गतिरोध शुरू कर दिया। स्पीकर ने इसे गैर जिम्मेदार बताया। गतिरोध बढ़ता देख सदन की बैठक दस मिनट के लिए स्थगित कर दी गई। सदन शुरू हुआ तो विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि जब सीएजी रिपोर्ट आती है तभी विपक्ष का रवैया ऐसा होता है, शोरगुल करते हैं, कार्यवाही को बाधित किया गया। मैं विपक्ष से अनुरोध करूंगा कि वे सदन में आकर चर्चा करें। हांलाकि इस दौरान विपक्ष के सदस्य सदन में नहीं आए। इस कैग की रिपोर्ट पर चर्चा में भाग लेते हुए पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि पिछली सरकार ने पर्यावरण नियमों को दरकिनार कर जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया।
सिरसा ने बताया कि डीटीसी बसों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई। कुल उपलब्ध बसों में से 14 प्रतिशत से 16 प्रतिशत बसें लगातार रिपेयर और मेंटेनेंस के चलते चल नहीं पाईं। पिछली सरकार ने रूट रेशनलाइजेशन अध्ययन के लिए 3 करोड़ रुपये आवंटित किए, लेकिन पैसा खर्च होने के बाद यह योजना अधूरी छोड़ दी गई। वहीं मंत्री ने कहा कि सार्वजनिक परिवहन में कमी के कारण दिल्ली में निजी वाहनों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई। इस दौरान दो पहिया वाहनों की संख्या मार्च 2021 तक 81 लाख हो गई एवं कुल पंजीकृत वाहनों की संख्या 69 लाख से बढ़कर 1.30 करोड़ हो गई। निजी वाहनों की संख्या बढ़ने के कारण दिल्ली में प्रदूषण में इजाफा हुआ। इस चर्चा में मंत्री से पहले सत्तापक्ष के सदस्य हरीश खुराना और सतीश उपाध्याय ने भी भाग लिया। हालांकि इस कैग की रिपोर्ट पर चर्चा आज बुधवार को भी जारी रहेगी।
ऑड-ईवन पर 53 करोड़ खर्च के बाद भी वाहन प्रदूषण में कोई खास कमी नहीं आई
मंत्री सिरसा ने बताया कि ऑड-ईवन स्कीम के प्रचार पर 53 करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए, लेकिन इस योजना से वाहन प्रदूषण में कोई ठोस कमी नहीं आई। कैग रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि स्मोक टावर परियोजना पर 22 करोड़ रुपये खर्च किए गए, लेकिन यह योजना प्रभावी साबित नहीं हुई। वहीं वायु प्रदूषण के अध्ययन के एक करार हुआ, लेकिन बाद में यह योजना बंद कर दी गई फिर भी 87.60 लाख रुपये का भुगतान किया गया।