
विशेष संवाददाता
नई दिल्ली। दिल्ली में आवश्यकता की तुलना में कम बसें हैं। पुरानी बसें सड़कों से हट रही हैं और उस अनुपात नई बसें नहीं आ रही है। ऐसे में भाजपा सरकार के सामने पर्याप्त बसें उपलब्ध कराने की चुनौती बढ़ रही है। वर्ष 2025 में ही सड़कों से डीटीसी की 2000 से अधिक पुरानी बसें हट जाएंगी।
बसों की कमी से लोगों को बहुत देर तक बस का इंतजार करना पड़ता है। बसों की कमी को दूर करने के लिए पुरानी बसें भी चलाई जा रही हैं जो रास्ते में अक्सर खड़ी हो जाती हैं।
निजी वाहनों से सड़कों पर लगता है जाम
बसों की कमी का असर शहर की यातायात व्यवस्था पर भी पड़ रहा है। बसें कम होने के चलते लोग निजी वाहनों का सहारा ले रहे हैं , इससे सड़कों पर जाम लगता है और लाेग इससे भी परेशान होते हैं।
दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन ढांचा कमजोर होने से शहर को कई तरीके के नुकसान उठाने पड़ रहे हैं। बसों की संख्या कम होने से एक तरह लोग निजी वाहनों का सहारा ले रहे हैं और अपने वाहनों से अपने गंतव्य तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं।
40 फीसदी वाहनों से होने वाला प्रदूषण शामिल
इससे समस्या यह खड़ी हो रही है कि दिल्ली में निजी वाहनों की संख्या लगातार बढ़ रही है और सड़कों पर भी इसका असर देखा जा रहा है। जगह-जगह जाम लग रहा है जो रास्ता आधे घंटे का होना चाहिए वह एक से डेढ़ घंटे तक का भी हो जा रहा है।
दूसरा निजी वाहनों की संख्या बढ़ने से दिल्ली में प्रदूषण प्रदूषण का स्तर भी लगातार बढ़ रहा है। विशेषज्ञों की मानें तो दिल्ली में होने वाले कुल प्रदूषण में 40% वाहनों से होने वाला प्रदूषण शामिल है। उधर निजी वाहनों के सड़कों पर निकलने से लोगों को बसों की अपेक्षा ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है।
दिल्ली में कुल 11 हजार बसों की जरूरत
बसों को लेकर प्रयासों की बात की जाए तो पिछली सरकार इस बारे में कुछ खास नहीं कर पाई। यहां तक कि सरकार सत्ता में आने के बाद 2015 से ही लगातार इस बात को दोहराती रही की 2025 तक बसों का बेड़ा 10000 से ऊपर कर दिया जाएगा मगर ऐसा नहीं हो सका।
पिछली सरकार कुल मिलाकर नई बसों में 2500 के करीब ही बढ़ोतरी कर सकी जबकि इससे कहीं ज्यादा बसें पुरानी होकर सड़कों से हट गईं। दिल्ली में कुल 11 हजार बसों की जरूरत है मगर उपलब्ध 7500 के करीब ही हैं।