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कनाडा की नई सरकार भारत से बनायेगी अच्छे संबंध !

अजय कुमार

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे के बाद हिंदुस्तान में उम्मीद जताई जा रही है कि कनाडा की नई सरकार का भारत के प्रति रूख लचीला होगा। ट्रूडो सरकार जिस तरह से खालिस्तानियों का पक्ष ले रहे थे,उस पर भी लगाम लग सकती है और यदि कनाडा का नया प्रधानमंत्री भारतीय मूल का हुआ तो इसका भी फायदा देश को मिल सकता है।बहरहाल,ट्रूडो के इस्तीफे के बाद भी कनाडा देशवासियों की समस्या का समाधान नहीं हुआ है।

अब सबसे बड़ी मुसीबत यह है कि आखिर किसे कनाडा का नया प्रधानमंत्री बनाया जाये जो अमेरिका की ट्रंप सरकार के साथ तालमेल रख पाए और भारत जैसे विकासशील देश के भी उससे संबंध अच्छे रहें। भावी प्रधानमंत्री के रूप में कई नाम सामने आ रहे हैं, जिसमें दो भारतीय मूल के भी हैं. इन सब में कंजर्वेटिव नेता पियरे पोलीवरे सबसे आगे हैं। पूर्व वित्त मंत्री और उप प्रधानमंत्री हाल ही में कैबिनेट से इस्तीफा देने से पहले ट्रूडो के सबसे मजबूत सहयोगियों में से एक थे. विदेश मामलों की कमान संभालते हुए उन्होंने देश को “अमेरिका और मैक्सिको के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर फिर से बातचीत करने” में मदद की. वह ब्व्टप्क्-19 महामारी के लिए कनाडा की वित्तीय प्रतिक्रिया की भी प्रभारी थीं. खबरों के अनुसार जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे के बाद भारतीय मूल के दो हिन्दू सांसद चंद्र आये और अनीता आनंद भी पीएम पद के मजबूत दावेदार नजर आ रहे हैं। अनीता आनंद की पहचान एक विद्वान, वकील और शोधकर्ता की रही है। वह टोरंटो यूनिवर्सिटी में कानून की प्रोफेसर रही हैं जहां उन्होंने इनवेस्ट प्रोटेक्शन और कॉर्पोरेट गवर्नेंस में जेआर किंबर चेयर का पद संभाला था। वर्तमान में वह कनाडा की जस्टिन ट्रूडो सरकार में परिवहन और आंतरिक व्यापार मंत्री हैं।

अनीता आनंद ने क्वीन्स यूनिवर्सिटी से राजनीतिक अध्ययन में बैचलर ऑफ आर्ट्स (ऑनर्स), ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से न्यायशास्त्र में बैचलर ऑफ आर्ट्स (ऑनर्स), डलहौजी यूनिवर्सिटी से बैचलर ऑफ लॉ और टोरंटो यूनिवर्सिटी से मास्टर ऑफ लॉ की डिग्री हासिल की है। कनाडा की मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अनीता आनंद, पियरे पोलीवरे, क्रिस्टिया फ्रीलैंड और मार्क कार्नी जैसे प्रमुख नामों के साथ नेतृत्व की दौड़ अब तेज हो गई है। भारतीय मूल की अनीता आनंद अपने प्रभावशाली शासन और सार्वजनिक सेवा के अच्छे रिकॉर्ड के कारण सबसे मजबूत दावेदारों में एक माना जा रही हैं। बात कनाडा में भारतीय मूल के सांसद चंद्र आर्य की कि जाये तो प्रधानमंत्री चुनाव के लिए आर्य ने भी ताल ठोक दी है.एक वीडियो क्लीप में आर्य ने कहा कि यदि कनाडा की जनता उन्हें निर्वाचित करती है तो तो वे एक कुशल और छोटी सरकार का नेतृत्व करेंगे, जो देश के पुनर्निर्माण और भविष्य की पीढ़ियों के लिए समृद्धि सुनिश्चित करेगी। उन्होंने कहा कि मैंने हमेशा कनाडाई लोगों के लिए सबसे अच्छा काम किया है।

हमें ऐसे साहसिक निर्णय लेने होंगे जो हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए उपयोगी होंगी। चंद्र आर्य ने घोषणा की है कि वह लिबरल पार्टी के नेतृत्व के लिए चुनाव लड़ेंगे। साथ ही उन्होंने कनाडा को संप्रभु गणराज्य बनाने, सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने, नागरिकता – आधारित कर प्रणाली लागू करने और फलस्तीन राज्य को मान्यता देने का वादा किया। बात कनाडा की नई सरकार के भारत के साथ सबंध कैसे होंगे इसकी चर्चा हो तो विद्वानों की राय भारत में पक्ष में नजर आ रही है।
प्रोफ़ेसर हर्ष वी. पंत का, जो नई दिल्ली स्थित ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के अध्ययन और विदेश नीति विभाग के उपाध्यक्ष हैं.उन्होंने कहा, कि ट्रूडो ने भारत से निजी कारणों से संबंध बिगाड़े थे, भारत से संबंध सुधारने के लिये जिस तरह की संजीदगी ट्रूडो के इस मुद्दे पर दिखाना चाहिए थी, वो नहीं दिखा रहे थे. उससे दोनों देशों के बीच के संबंधों में काफ़ी नुक़सान हुआ. गौतरलब हो, जस्टिन ट्रूडो पिछले कुछ समय से भारत विरोधी बयानबाज़ी कर रहे थे. इस बीच, कनाडा ने स्टूडेंट वीज़ा से जुड़ा एक फ़ैसला लिया था, जिससे भारतीय स्टूडेंट्स की दिक्कतें बढ़ गई थीं. यही वजह है कि भारत और कनाडा के बीच तनाव देखने को मिल रहा है. पंत कहते हैं कुछ समय से मुझे लगता है कि ये बिलकुल स्पष्ट था कि जब तक ट्रूडो कनाडा के प्रधानमंत्री बने रहेंगे, तब तक भारत-कनाडा के संबंधों में नया मोड़ जिसकी ज़रूरत है, वो नहीं आ पाएगा।
उधर, वॉशिंगटन डीसी के विल्सन सेंटर थिंक टैंक में साउथ एशिया इंस्टीट्यूट के निदेशक माइकल कुगेलमैन भी भारत और कनाडा के संबंधों को लेकर यही राय रखते हैं.उन्होंने एक्स पर लिखा, कि ट्रूडो का इस्तीफ़ा भारत-कनाडा के बिगड़ते संबंधों को स्थिर करने का मौका दे सकता है।विल्सन ने नई दिल्ली ने द्विपक्षीय संबंधों में गहराई तक फैली समस्याओं के लिए सीधे तौर पर ट्रूडो को ज़िम्मेदार ठहराया है.हाल के वर्षों में कनाडा एकमात्र पश्चिमी देश है, जिसके भारत के साथ संबंध लगातार खराब हुए हैं।

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