विशेष संवाददाता
नई दिल्ली । बांग्लादेश में हिंदू धार्मिक संगठन इस्कॉन (इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस) के प्रमुख नेताओं में से एक चिन्मय कृष्ण दास प्रभु की गिरफ्तारी ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के बीच गहरा आक्रोश और असुरक्षा की भावना पैदा कर दी है। चिन्मय कृष्ण दास प्रभु को सोमवार (25 नवंबर 2024) को ढाका के हजरत शाह जलाल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया गया। उन पर देशद्रोह और सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का आरोप लगाया गया है। उनकी गिरफ्तारी के बाद से कई जिलों में विरोध प्रदर्शन तेज हो गए हैं।
स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चिन्मय कृष्ण दास प्रभु को ढाका से चटगांव जाने के दौरान डिटेक्टिव ब्रांच (डीबी) ने हिरासत में लिया। इस गिरफ्तारी की पुष्टि करते हुए ढाका मेट्रोपॉलिटन पुलिस के जासूसी शाखा के अतिरिक्त आयुक्त रेजाउल करीम मल्लिक ने बताया कि उन्हें पुलिस के अनुरोध पर गिरफ्तार किया गया है।
गिरफ्तारी का मुख्य आधार 25 अक्टूबर को चटगांव के लालदीघी मैदान में आयोजित एक रैली है, जिसमें उन्होंने भाषण दिया था। इस रैली में कुछ प्रदर्शनकारियों ने ‘आमी सनातनी’ लिखे भगवा ध्वज को चटगाँव के न्यू मार्केट चौक स्थित ‘आजादी स्तंभ’ पर फहराया। इसे राष्ट्रीय ध्वज का अपमान मानते हुए बीएनपी (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) नेता फिरोज खान ने उनके खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज कराया।
प्रदर्शन कर रहे हिंदुओं पर ढाका में हमला
चिन्मय प्रभु की गिरफ्तारी के तुरंत बाद ढाका के सहबाग में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारियों ने मुख्य सड़कों को जाम कर दिया और ‘हम न्याय के लिए मरेंगे, हम इसके लिए लड़ेंगे’ जैसे नारे लगाए। इस दौरान ढाका यूनिवर्सिटी के जगन्नाथ हॉल में प्रदर्शन कर रहे हिंदुओं पर कुछ अज्ञात लोगों ने लाठी-डंडों से हमला किया। यह हमला शाहबाग पुलिस स्टेशन से मात्र 30 मीटर की दूरी पर हुआ। इस घटना में 20 से अधिक प्रदर्शनकारी घायल हुए। वहीं, दिनाजपुर और चटगाँव में भी सड़कों पर विरोध प्रदर्शन देखने को मिले। प्रदर्शनकारियों का मुख्य उद्देश्य चिन्मय कृष्ण दास की तुरंत रिहाई की माँग करना था।
इस्कॉन का बयान और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
इस्कॉन बांग्लादेश ने चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी को ‘अत्याचार’ बताते हुए उनकी रिहाई की माँग की है। इस्कॉन, इंक. ने अपने बयान में कहा, “हम एक शांतिप्रिय भक्ति आंदोलन हैं। किसी भी प्रकार के आतंकवाद से हमारा कोई लेना-देना नहीं है। बांग्लादेश सरकार से हम अपील करते हैं कि चिन्मय प्रभु को तुरंत रिहा किया जाए।”
इस्कॉन के प्रवक्ता राधारमण दास ने सोशल मीडिया पर लिखा, “चिन्मय कृष्ण दास, जो बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, को ढाका पुलिस ने गिरफ्तार कर अज्ञात स्थान पर भेज दिया है। हम भारत सरकार और विदेश मंत्री एस. जयशंकर से आग्रह करते हैं कि वे इस मामले में हस्तक्षेप करें।”
भारत में भी इस गिरफ्तारी पर तीखी प्रतिक्रिया हुई है। बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी ने इसे ‘बांग्लादेशी हिंदुओं के खिलाफ दमन की कार्रवाई’ बताते हुए भारत सरकार से हस्तक्षेप की माँग की।
हिंदू अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमलों के बीच गिरफ्तारी
चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी ऐसे समय में हुई है जब बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमलों की घटनाएँ लगातार बढ़ रही हैं। अगस्त में सत्ता परिवर्तन के बाद से हिंदू समुदाय के 205 से अधिक हमले दर्ज किए गए हैं। इनमें मंदिरों, व्यापारिक प्रतिष्ठानों और निजी संपत्तियों को निशाना बनाया गया। खुलना जिले में इस्कॉन मंदिर पर हमला कर भगवान जगन्नाथ की मूर्ति जला दी गई थी। इसके अलावा, 52 जिलों में हिंदुओं पर अत्याचार की खबरें आईं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, नई सरकार बनने के बाद अल्पसंख्यक समुदाय के 49 शिक्षकों से जबरन इस्तीफा ले लिया गया।
कौन हैं चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी?
चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी उर्फ चिन्मय प्रभु बांग्लादेश के प्रसिद्ध हिंदू धार्मिक नेता और इस्कॉन के प्रवक्ता हैं। वे लंबे समय से हिंदू समुदाय के अधिकारों और उनकी सुरक्षा की वकालत कर रहे हैं। उन्होंने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमलों के खिलाफ कई विरोध रैलियों का नेतृत्व किया। सनातन जागरण मंच द्वारा आयोजित चटगांव की रैली में उन्होंने 8 सूत्रीय माँगें रखी थीं, जिनमें हिंदू मंदिरों की सुरक्षा और अल्पसंख्यक अधिकारों के लिए एक विशेष मंत्रालय की स्थापना की माँग प्रमुख थी।
बता दें कि बांग्लादेश में इस्कॉन के 77 से अधिक मंदिर हैं, जो देश के लगभग हर जिले में स्थित हैं। लगभग 50,000 लोग इस्कॉन से जुड़े हुए हैं। बांग्लादेश के हिंदू समुदाय के लिए इस्कॉन धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है।
चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी ने बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों और सुरक्षा पर एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं। उनकी रिहाई के लिए उठ रही आवाजें न केवल बांग्लादेश में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी गूँज रही हैं। यह घटना उस देश की राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता को भी उजागर करती है, जो अल्पसंख्यक समुदायों के लिए चिंता का विषय है।