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जहरीली हवा, गंदा पानी और ट्रैफिक जाम में फंसी जिंदगानी… दिल्ली वालों का ये दुख काहे खत्म नहीं होता भाई !

क्या देश की राजधानी को कहीं दूसरी जगह शिफ्ट कर देना चाहिए

विशेष संवाददाता

नई दिल्ली। क्या भारत को अब अपनी राजधानी दिल्ली से बदलकर कुछ और कर लेनी चाहिए? ये सवाल कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने उठाया है. वो इसलिए क्योंकि दिल्ली इस वक्त प्रदूषण की भयंकर चपेट में है. लगातार दूसरे दिन एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) का स्तर 500 के पार चला गया है. इसे गंभीर माना जाता है. यानी, दिल्ली की हवा इतनी खराब है कि बीमारों को तो छोड़िए, अच्छे-खासे तंदरुस्त लोगों को भी कई सारी परेशानियां हो सकती हैं.

लेकिन ये सिर्फ इसी साल की कहानी नहीं है. दिल्ली में हर साल की यही कहानी है. अब तो ऐसा लगने लगा है कि प्रदूषण में जीना दिल्ली वालों के लिए ‘न्यू नॉर्मल’ बन गया है. शायद यही कारण है कि दिल्ली को दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी में पहले नंबर पर रखा गया है.

लेकिन सिर्फ प्रदूषण ही यहां की एकमात्र समस्या नहीं है. वैसे तो दिल्ली में ढेरों समस्याएं हैं, लेकिन कुछ परेशानियां ऐसी हैं, जिनसे यहां रहने वाले लोगों को दो-चार होना पड़ता ही है.

हवा में जहर या जहर में हवा!

दिल्ली वालों की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक प्रदूषित हवा है. एक वक्त तो ऐसा आता है कि समझ नहीं आता कि हवा में जहर है या जहर में हवा है. सितंबर के बाद से हवा की क्वालिटी बिगड़नी शुरू हो जाती है. और फिर जब सर्दियां शुरू होती हैं तब तो सांस लेना भी मुश्किल होता है. आंकड़ों के मुताबिक, 2023 में सिर्फ एक दिन ही ऐसा था, जब AQI का स्तर 50 से कम था. जबकि, AQI का स्तर 60 दिन ‘संतोषजनक’, 145 दिन ‘मध्यम’, 77 दिन ‘खराब’, 67 दिन ‘बहुत खराब’ और 15 दिन ‘गंभीर’ की श्रेणी में था.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के मुताबिक, इस साल ही 1 जनवरी से 17 नवंबर तक 322 दिन हो गए हैं और एक भी दिन ऐसा नहीं रहा, जब AQI का स्तर ‘अच्छा’ रहा है. 322 दिनों में से 54 दिन ‘बहुत खराब’ और 60 दिन ‘खराब’ हवा रही है. जबकि, सात दिन AQI ‘बहुत गंभीर’ की श्रेणी में रहा है.

Delhis air quality plummets to very poor category; Smog engulfs national capital

सर्दी तोड़ती रिकॉर्ड!

दिल्ली में नवंबर के आखिरी से सर्दियों की शुरुआत हो जाती है और फरवरी के दूसरे हफ्ते तक खत्म हो जाती है. दिसंबर और जनवरी में सबसे ज्यादा सर्दी पड़ती है और सारे रिकॉर्ड टूट जाते हैं. हालांकि, अब दिल्ली में सर्दियों के दिन कम होते जा रहे हैं.

पिछले साल दिसंबर में तापमान सामान्य से ज्यादा ही रहा था. 2017 के बाद 2023 का दिसंबर सबसे गर्म रहा था. पिछली दिसंबर औसतन अधिकतम तापमान 24.1 डिग्री सेल्सियस था, जो सामान्य (22.8 डिग्री) से ज्यादा था. जबकि, औसतन न्यूनतम तापमान 8.6 डिग्री रहा था, जो सामान्य (8.4 डिग्री) से ज्यादा रहा था.

हालांकि, दिसंबर भले ही थोड़ा गर्म रहा हो, लेकिन जनवरी में सारे रिकॉर्ड टूट गए थे. 2024 की जनवरी 13 साल में सबसे ज्यादा ठंडी रही थी.

जनवरी में औसतन अधिकतम तापमान 17.7 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम तापमान 6.2 डिग्री सेल्सियस रहा था, जो 13 साल में सबसे कम था. इसी साल 14 जनवरी को दिल्ली में तापमान 3.5 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया था. बीती सर्दियों में दिसंबर में एक भी दिन कोल्ड वेव नहीं चली थी, लेकिन जनवरी में 5 दिन कोल्ड वेव चली थी और 5 दिन सबसे ठंडे रहे थे.

झुलसा देने वाली गर्मी

सर्दी जाने के बाद जब गर्मी पड़ती है तो वो भी झुलसा देती है. दिल्ली में कुछ सालों से गर्मियों में पारा 45 डिग्री के पार चला जाता है. जबकि, गर्मियों में औसतन तापमान 39 से 40 डिग्री सेल्सियस रहता है. मौसम विभाग के मुताबिक, मार्च से ही दिल्ली में पारा 30 डिग्री के ऊपर पहुंच जाता है और अक्टूबर तक इतना ही रहता है.

इस साल मई और जून में गर्मी ने 74 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया था. मई में औसतन अधिकतम तापमान 41.4 डिग्री सेल्सियस और जून में 41.9 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था. इससे पहले 1951 की मई और जून में औसतन अधिकतम तापमान 41 डिग्री के पार गया था.

जुलाई में भी दिल्ली में औसतन अधिकतम तापमान 27.7 डिग्री सेल्सियस रहा था, जो 10 साल में सबसे ज्यादा था. कुछ सालों पहले तक नवंबर में तापमान गिरने लगता था और सर्दियां आ जाती थीं. लेकिन मौसम विभाग के मुताबिक, इस साल 1 से 15 नवंबर के बीच न्यूनतम तापमान सामान्य से ऊपर ही रहा है. 7 से 14 नवंबर तक लगातार आठ दिन तक तापमान सामान्य से 3 डिग्री या उससे ज्यादा रहा है.

पानी की किल्लत भी बड़ी परेशानी

दिल्ली वाले हर साल पानी की किल्लत से भी जूझते हैं. पानी की ये समस्या आमतौर पर गर्मी के मौसम में ज्यादा होती है. गर्मियों में दिल्ली के कई इलाकों में कई-कई दिनों तक पानी नहीं आता है.

दिल्ली सरकार के 2024-25 के आर्थिक सर्वे के मुताबिक, दिल्ली वालों को हर दिन 129 करोड़ गैलन पानी की जरूरत है, मगर गर्मियों में दिल्ली जल बोर्ड हर दिन 95 करोड़ गैलन पानी की सप्लाई भी नहीं कर पाता. आलम ये हो जाता है कि ज्यादातर इलाकों में कई दिनों तक पानी आता ही नहीं और अगर आता भी है तो इतना नहीं कि जरूरतें पूरी हो सकें.

ऐसा इसलिए क्योंकि दिल्ली का अपना कोई पानी का बहुत बड़ा जरिया नहीं है. उसे पानी के लिए उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब पर निर्भर होना पड़ता है. इसमें भी सबसे बड़ा हिस्सा हरियाणा का है.

दिल्ली को हरियाणा सरकार यमुना नदी से, उत्तर प्रदेश सरकार गंगा नदी से और पंजाब सरकार भाखरा नांगल से पानी की सप्लाई करती है. दिल्ली सरकार के आर्थिक सर्वे के मुताबिक, हर दिन यमुना से 38.9 करोड़ गैलन, गंगा नदी से 25.3 करोड़ गैलन और भाखरा-नांगल से रावि-व्यास नदी से 22.1 करोड़ गैलन पानी मिलता है. इसके अलावा कुंए, ट्यूबवेल और ग्राउंड वाटर से 9 करोड़ गैलन पानी आता है. कुल मिलाकर दिल्ली को हर दिन 95.3 करोड़ गैलन पानी मिलता है.

इतना ही नहीं, दिल्ली वालों के लिए गंदा पानी भी बड़ी समस्या है. कई इलाकों में गंदे पानी की शिकायत बनी रहती है.

कूड़े का पहाड़ भी बड़ी समस्या

Delhi Kuda Ka Pahad

दिल्ली वालों के लिए सिर्फ सर्दी, गर्मी या प्रदूषण ही बड़ी समस्या नहीं है, बल्कि ‘कूड़े का पहाड़’ भी बड़ी परेशानियों में से एक है. राजधानी दिल्ली में तीन लैंडफिल साइट हैं. ये वो जगह होती है, जहां शहर भर का कूड़ा-कचरा इकट्ठा किया जाता है. दिल्ली के ओखला, गाजीपुर और भलस्वा में लैंडफिल साइट हैं.

तीनों साइट में कूड़े का पहाड़ बना हुआ है. दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक, 31 अक्टूबर 2023 तक ओखला साइट पर 36.62 लाख टन कचरा जमा हुआ था. भलस्वा साइट पर 61.25 लाख टन का कूड़ा इकट्ठा था. सबसे ज्यादा 81.33 लाख टन कूड़ा गाजीपुर लैंड साइट पर था.

दिल्ली में सबसे बड़ा कूड़े का पहाड़ गाजीपुर लैंडफिल साइट में ही है. जुलाई 2019 में इसकी ऊंचाई 65 मीटर तक पहुंच गई थी. यानी, यहां कूड़े का पहाड़ इतना ऊंचा हो गया था कि वो कुतुब मीनार से बस 8 मीटर छोटा रह गया था.

दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल कमेटी की 2022-23 की रिपोर्ट के मुताबिक, राजधानी के घरों से हर दिन 11,352 टन कचरा निकलता है. इसमें से 7,352 टन कूड़े को या तो रिसाइकिल कर लिया जाता है या फिर उससे बिजली बना ली जाती है. लेकिन बाकी का बचा 4 हजार टन कूड़ा लैंडफिल साइट में डम्प कर दिया जाता है. यानी, हर दिन जितना कचरा निकलता है, उसका 35 फीसदी लैंडफिल साइट में डाल दिया जाता है. नतीजा ये होता है कि हर दिन इतना कचरा डम्प होने के कारण कूड़े का पहाड़ बनता जाता है.

साइंस जर्नल लैंसेट की स्टडी बताती है कि लैंडफिल साइट के पास पांच किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लोगों को अस्थमा, टीबी, डायबिटीज और डिप्रेशन की परेशानी होने का खतरा ज्यादा रहता है.

जाम की समस्या भी आम

Delhi pollution

दिल्ली सरकार के 2023-24 के आर्थिक सर्वे से पता चलता है कि राजधानी में 85 लाख से ज्यादा गाड़ियां रजिस्टर्ड हैं. हर साल औसतन 6 लाख से ज्यादा नई गाड़ियां यहां रजिस्टर होती हैं. इसके अलावा, हर दिन दिल्ली में 11 लाख से ज्यादा गाड़ियां आती और जाती हैं. हर साल टू-व्हीलर और फोर-व्हीलर 15 फीसदी की दर से बढ़ रहीं हैं.

इन सबके कारण दिल्ली वालों के लिए ट्रैफिक जाम की समस्या भी आम होती जा रही है. नीदरलैंड्स की एक संस्था TomTom हर साल ट्रैफिक इंडेक्स जारी करती है. इसके मुताबिक, राजधानी दिल्ली दुनिया का 44वां सबसे कंजेस्टेड शहर है. यहां का कंजेशन लेवल 48 फीसदी था. यानी, यहां पर आपका ट्रैवल टाइम 48 फीसदी ज्यादा है.

इसे ऐसे समझिए कि आप किसी जगह पर पहुंचने में आपको 30 मिनट का समय लग रहा है. लेकिन दिल्ली में यही समय 30 मिनट की बजाय 44 मिनट में पूरा होगा. यानी, यहां इतना ट्रैफिक है कि जो रास्ता आधे घंटे में पूरा हो सकता है, उसी रास्ते को तय करने में दिल्ली में पौन घंटे से ज्यादा समय लगता है.

दिल्ली में 10 किलोमीटर का सफर तय करने में औसतन 21 मिनट 40 सेकंड का समय लगता है. सुबह के समय गाड़ियों की औसत रफ्तार 26 किमी प्रति घंटा होती है, जबकि शाम के वक्त ये 22 किमी प्रति घंटा हो जाती है. दिल्ली वाले हर साल औसतन 81 घंटे यानी 3 दिन 9 घंटा ट्रैफिक बिता देते हैं.

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