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प्रदूषण से हर साल 21 लाख लोगों की मौत, पर किसी की प्राथमिकता में शामिल नहीं प्रदूषण

विशेष संवाददाता

नई दिल्ली । विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि वायु प्रदूषण से हर वर्ष सात से आठ मिलियन यानी 70 से 80 लाख लोगों की मौत होती है। इसमें 42 लाख के करीब लोग बाहर के वायु प्रदूषण से तो 38 लाख लोग घरों में लकड़ी और कोयले जैसी चीजों के जलाने से होने वाले इनडोर वायु प्रदूषण से मरते हैं। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर (State Of Global Air) 2024 के आंकड़ों के अनुसार, वायु प्रदूषण से संबंधित कारकों के कारण भारत में प्रतिदिन 464 बच्चों की मौत हो जाती है। रिपोर्ट में वायु प्रदूषण के कारण वर्ष 2021 में 21 लाख लोगों की मौत होने का अनुमान लगाया गया है।

वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों का ये आंकड़ा किसी भी देश-राज्य की सरकार के लिए डराने वाला होना चाहिए। पूरी सरकार, देश और स्वास्थ्य विभाग की प्राथमिकता में आ जाना चाहिए, लेकिन स्वास्थ्य और प्रदूषण संबंधी मामलों में लोगों में जागरूकता की कमी होने के कारण यह न तो चर्चा का विषय बनता है और न ही चुनावी मुद्दा बन पाता है। जबकि अमेरिकी-यूरोपीय देशों में स्वास्थ्य संबंधी नीतियां राजनीतिक दलों और आम जनता की सबसे बड़ी प्राथमिकता में शामिल होती हैं।

शिक्षा-स्वास्थ्य सबसे पहला मुद्दा क्यों नहीं

आम जनता में शिक्षा में कमी, धार्मिक-जातिगत-सामाजिक आधारों में विभाजित होने के कारण शिक्षा-स्वास्थ्य यहां लोगों की प्राथमिकता में नहीं हो पाता। राजनीतिक दल लोगों को मुफ्त के वादों पर लुभाने की अधिक कोशिश करते हैं। जातिगत आधार पर आरक्षण और किसी क्षेत्र विशेष को प्राथमिकता देने के आधार पर भारत में राजनीतिक दल लोगों के वोट लेने की कोशिश करते हैं। राजनीतिक दल स्वास्थ्य-अस्पताल जैसी घोषणाएं करते अवश्य हैं, लेकिन मुफ्त की चीजों की पॉपुलैरिटी में यह चर्चा के केंद्र में नहीं आ पाता है।

मोदी के लिए स्वास्थ्य अहम मुद्दा, केजरीवाल ने जनता को दिया धोखा- भाजपा

भाजपा नेता खेमचंद शर्मा ने अमर उजाला से कहा कि यह बात पूरी तरह सही नहीं है कि यहां स्वास्थ्य राजनीतिक दलों की प्राथमिकता में नहीं आता। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने तीनों राष्ट्रीय चुनावों में लोगों के स्वास्थ्य को सबसे महत्त्वपूर्ण विषयों में रखा। इसी का परिणाम है कि आज 16 नए एम्स अस्पतालों की स्थापना की जा चुकी है, अब इनकी संख्या 23 हो चुकी है, जबकि आजादी के 70 साल में पूरे देश में केवल सात एम्स ही थे। यह केंद्र सरकार की स्वास्थ्य की प्राथमिकता दिखाता है।

अब तक हर साल केवल 51 हजार के करीब एमबीबीएस डॉक्टर हर साल तैयार होते थे, जबकि केंद्र सरकार ने एमबीबीएस सीटों की संख्या बढ़ाकर 1.07 लाख कर दी है। हर परिवार को आयुष्मान योजना के अंतर्गत पांच लाख रुपये तक का इलाज मुफ्त करने की सुविधा देने नागरिकों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता में रखने के कारण ही हुआ है।

दिल्ली सरकार असफल

भाजपा नेता का आरोप है कि, दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने नए अस्पताल बनाने की घोषणा की थी, लेकिन दिल्ली में कोई नया अस्पताल नहीं बनाया गया है। उलटे अस्पतालों में डॉक्टरों-नर्सों की कमी है जिसके कारण लोगों को इलाज नहीं मिल पा रहा है। मोहल्ला क्लीनिकों की खूब चर्चा की गई थी, लेकिन कोरोना काल में स्पष्ट हो गया है कि मोहल्ला क्लीनिक केवल भ्रष्टाचार के अड्डे बनकर रह गए हैं। फ्री टेस्ट के नाम पर एक ही मोबाइल नंबर से हजारों टेस्ट कराने से ही साफ हो गया है कि फ्री टेस्ट में भी घोटाला किया जा रहा है।

खेमचंद शर्मा ने कहा कि केंद्र सरकार यमुना की सफाई के लिए दिल्ली सरकार को अब तक 7000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि दे चुकी है, लेकिन यमुना की स्थिति बताती है कि इसमें से एक भी रुपया यमुना की सफाई में खर्च नहीं किया गया है। यही कारण है कि आज भी यमुना की स्थिति बेहद नाजुक है। भाजपा नेता ने कहा कि लोगों में शिक्षा की स्थिति बेहतर होने के बाद स्वास्थ्य लोगों की प्राथमिकता बनेगा।

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