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अपराध और मौत की ओर धकेल रही है ऑनलाइन गेमिंग

जसविंदर सिद्धू

नई दिल्ली, 9 अक्तूबर, 2024 । पिछले महीने गाजियाबाद पुलिस ने दीपक, आकाश, संजय और तरुण को गिरफ्तार किया. तीनों की उम्र 20 साल के आस-पास की है. इन तीनों को ऑनलाइन गेमिंग की लत थी. काफी पैसा हार चुके थे. लिहाजा उन्होंने 18 साल के आकाश झा की किडनैपिंग कर ली. फिरौती मांगी गई सिर्फ सवा लाख रुपए. तीनों आरोपी आकाश से सोशल मीडिया साइट टेलीग्राम पर मिले थे. यह कोई इकलौता मामला नहीं है. पिछले दो-तीन साल से ऑनलाइन गेमिंग और बैटिंग साइटों ने युवाओं को ना केवल अपराध की तरफ धकेला है बल्कि इसके कारण कर्जाई हो जाने के बाद कई ने अपनी जान भी दे दी.

घटना इसी फरवरी की है. ऑनलाइन गेमिंग की लत के कारण यूपी के फतेहपुर में रहने वाले हिमांशु ने अपनी मां प्रभा को गला घोंट कर मार डाला. लाश को यमुना नदी के किनारे दबा दिया. मकसद था, ऑनलाइन गेंमिग के कारण चार लाख रुपये का कर्जा चुकाने के लिए मां की 50 लाख रुपये की इंश्योरेंस पॉलिसी को भुनाना. हिमांशु अब जेल में है.

गुगल पर सर्च करने के बाद पता लगता है कि पिछले तीन सालों में 100 से भी अधिक ऐसी धटनाएं हो चुकी हैं. पिछले साल अक्तूबर में आंध्र प्रदेश में 21 वर्षीय इंजीनियरिंग छात्र मोहन ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली, क्योंकि वह ऑनलाइन गेमिंग की लत के कारण 80,000 रुपये के कर्ज को चुकाने में नाकाम रहा था. इस घटना से पहले तमिलनाडु में ऑनलाइन गेमिंग की लत के कारण जमा हुए कर्ज के कारण 30 आत्महत्याएँ हुईं. सभी मामलों में, आत्महत्या करने वाले युवा थे. इस भयावह स्थिति को देखते हुए, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने एक अध्यादेश जारी किया, जिसमें राज्य में सभी प्रकार के ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफ़ॉर्म पर प्रतिबंध लगा दिया गया.

केंद्र सरकार से लोकसभा में गेमिंग को लेकर जब लोकसभा में सवाल किया गया तो उसका उत्तर था कि, “ भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची में निर्दिष्ट सट्टेबाजी और जुआ राज्य के विषय हैं. विभिन्न राज्य सरकारों ने पहले ही कानून और नियम बनाए हैं. साथ ही भारत के संविधान के अनुसार ‘पुलिस’ और ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ राज्य के विषय हैं और राज्य अपने कानून प्रवर्तन तंत्र के माध्यम से रोकथाम, पता लगाने और जांच के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं. कानून प्रवर्तन एजेंसियां लागू कानूनों के प्रावधानों के अनुसार साइबर अपराध करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करती हैं.”

रोचक पहलू यह है कि केंद्र सरकार ने 2022-23 के बजट में एनीमेशन, विजुअल इफेक्ट्स, गेमिंग और कॉमिक सेक्टर (AVGC) को बढ़ावा देने के लिए एक टास्क फोर्स के गठन की घोषणा की थी. इस टास्क फोर्स को भारतीय और वैश्विक, दोनों बाजारों में सेवा के लिए क्षमता निर्माण के माध्यम से युवाओं को रोजगार देने के तरीकों की सिफारिश करनी थी. सूचना और प्रसारण मंत्रालय (MIB) ने गेमिफिकेशन और एनीमेशन को बढ़ावा देने के लिए विशेषज्ञों की एक AVGC समिति के गठन की भी घोषणा की थी.

इसके अलावा इस तरह के सभी प्लेटफॉर्म पर होने वाले लेन-देन पर 28 फीसदी का जीएसटी लगता है जो कि केंद्र सरकार का टेक्स है. बेशक वह उसका राज्य सरकारों के साथ सांझा करती है. पिछले साल केंद्र सरकार ने संसद मे पूछे गए सवाल पर कहा था कि “ऑनलाइन गेमिंग तेजी से बढ़ते हुए स्टार्ट-अप हैं. आज भारत में लगभग 70,000 स्टार्ट-अप हैं, जिनमें से 93 यूनिकॉर्न बन गए हैं. अनुमान है कि भारत में लगभग 1000 गेमिंग स्टार्ट-अप हैं और उनमें से कई निवेश आकर्षित कर रहे हैं और सरकार स्टार्ट-अप का समर्थन जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध है.”

केंद्र सरकार से अनुसार भारतीय गेमिंग उद्योग में 1.5 बिलियन डॉलर का राजस्व उत्पन्न करने की क्षमता है, जिसके अगले तीन वर्षों में 5 बिलियन डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद है. ई-गेमिंग फेडरेशन के एक अध्ययन के अनुसार, इस दशक के अंत तक कम से कम 60 करोड़ लोग ऑनलाइन गेम खेलेंगे.

यह आंकड़े डरा देने वाले है क्योंकि अभी से इसके परिणाम काफी परेशान कर देने वाले आ रहे हैं. इस अप्रैल में बंगलूरू पुलिस से चार आरोपियों को पकड़ा. इस सभी पर आरोप था कि उन्होंने शहर के एक बिल्डर के बेटे से 40 लाख की उगाही की. बेटे के ऑनलाइन गेमिंग की तल थी. इऩ चारों ने 16 साल के इस छात्र को यह कह कर ब्लैकमेल करना शुरु कर दिया कि वह उसके पिता को उसकी लत के बारे में बता देंगे.

( लेखक एक इंडिपेडेंट इन्वेसटिगेटिव जर्नलिस्ट हैं.)

 

 

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