विशेष संवाददाता
अजमेर। अजमेर के बहुचर्चित ब्लैकमेल-रेप मामले में पोक्सो कोर्ट संख्या 2 ने अपना फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने सभी 6 आरोपियों को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। अजमेर के बहुचर्चित ब्लैकमेल-रेप मामले में आज पोक्सो कोर्ट संख्या 2 ने अपना फैसला सुनाया। अदालत ने सभी छह आरोपियों नफीस चिश्ती, नसीम उर्फ टार्जन, इकबाल भाटी, सलीम चिश्ती, सोहेल गनी और सैयद जमीर हुसैन को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास और पांच हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। 30 लाख का जुर्माना लगाया गया। आपको बता दें कि इन सभी आरोपियों ने 1992 में लड़कियों को अश्लील फोटो से ब्लैकमेल कर उनके साथ रेप किया था। इस मामले में कोर्ट ने नौ आरोपियों को सजा सुनाई है।
1992 में 100 से अधिक कॉलेज लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उनकी नग्न तस्वीरें प्रसारित की गईं। इस मामले में 18 आरोपी थे। 9 लोगों को सजा हुई है। एक ने आत्महत्या कर ली। एक पर बाल उत्पीड़न के आरोप में अलग से मुकदमा चलाया गया और एक फरार है, जिसे अदालत ने भगोड़ा घोषित कर दिया है। ये घटना साल 1992 की है। इस अपराध के मास्टरमाइंड अजमेर युवा कांग्रेस अध्यक्ष (तत्कालीन) फारूक चिश्ती, नफीस चिश्ती (तत्कालीन युवा कांग्रेस संयुक्त सचिव) और अनवर चिश्ती (तत्कालीन युवा कांग्रेस उपाध्यक्ष) और अन्य आरोपी एक व्यापारी के बेटे के दोस्त थे। उसके साथ बलात्कार किया गया और तस्वीरें खींची गईं।
ब्लैकमेल करने के बाद वे उसकी प्रेमिका को पोल्ट्री फार्म में ले आए और उसके साथ बलात्कार किया। एक रील कैमरे ने उनकी नग्न तस्वीरें ले लीं. उसे अपने दोस्तों को भी उनके पास लाने के लिए मजबूर किया गया। इसके बाद उसने एक के बाद एक कई लड़कियों से बलात्कार किया और नग्न तस्वीरें खींचीं। इसके बाद वह लोगों को अलग-अलग जगहों पर बुलाकर ब्लैकमेल करने लगा।
बेशर्मी की हद पार, कोर्ट में चेहरे पर मुस्कान
कॉलेज की सौ से ज्यादा लड़कियों के साथ दरिंदगी करने वाले ये दोषी जब कोर्ट पहुंचे तो बेशर्मी की सारी हदें पार कर दी। दोषी करार दिए जाने से पहले वो एक दूसरे के साथ मुस्कुराते हुए नजर आए। हालांकि उम्रकैद की सजा सुनाए जाने के बाद उनकी गर्दन झुकी थी। कोर्ट से सजा सुनाए जाने के बाद सभी दोषियों को अजमेर जेल भेज दिया गया।
18 आरोपी थे, 9 को पहले ही मिली सजा
इस मामले में कुल 18 लोग आरोपी थे। इनमें से 9 को पहले ही सज़ा हो चुकी है, जबकि एक आरोपी ने आत्महत्या कर ली थी। एक अन्य आरोपी पर एक बिजनेसमैन के बेटे से कुकर्म के आरोप में अलग से केस चल रहा है। एक आरोपी अभी भी फरार है, जिसे कोर्ट ने भगोड़ा घोषित कर दिया है। इस मामले में 6 आरोपियों की ट्रायल इसी साल जुलाई में पूरी हुई थी और 8 अगस्त को फैसला आना था। लेकिन अब जाकर कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। फैसले के बाद सभी की निगाहें अब सज़ा की अवधि पर टिकी थी।
आइए अजमेर के बहुचर्चित सैक्स स्कैंडल की कहानी को समझते हैं।
दरअसल, दुनिया में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह का स्थान और जगत पिता ब्रह्मा जी के पवित्र स्थल तीर्थराज पुष्कर के कारण धार्मिक पर्यटन नक्शे पर राजस्थान का अजमेर अपनी एक अलग ही पहचान रखता है। अजमेर को गंगा- जमुनी संस्कृति के रूप में आज भी जाना और पहचाना जाता है।
मगर यहां की आबोहवा में साल 1990 से 1992 तक कुछ ऐसा घट-गुजर रहा था जो ना सिर्फ गंगा-जमुनी संस्कृति को कलंकित करने वाला था, बल्कि अजमेर के सामाजिक ताने-बाने पर बदनुमा दाग बन उभर रहा था।
युवा पीढ़ी पाश्चात्य जगत के आकर्षण में ढल रही थी. शिक्षा-संस्कार और मर्यादाएं कहीं गुम हो रहे थे. समाजकंटकों और अवसरवादियों में पुलिस का भय और कानून का खौफ तो रहा ही नहीं था। शासन- प्रशासन से जुड़े लोग हों या समाज कंटक सब हम प्याला-हम निवाला बन बैठे थे। पद-प्रतिष्ठा के साथ न्याय की कुर्सियों पर बैठने वाले हों या समाज को जागरूक करने और उचित दिशा दिखाने वाले, उनकी जवाबदेही और दायित्वों का बोध सुर-सुरा और सुंदरियों के आगे नतमस्तक था. जुआ-सट्टा खिलाने वाले, शराब-ड्रग्स का धंधा वाले पुलिस संरक्षण में फल-फूल रहे थे।
दैनिक नवज्योति अखबार में छपी खबरों से मचा गया था हंगामा
तब यहां के स्थानीय दैनिक नवज्योति अखबार में युवा पत्रकार संतोष गुप्ता की छापी एक खबर ने लोगों को झकझोर कर रख दिया। खबर में स्कूली छात्राओं को उनके नग्न फोटो क्लिक करके ब्लैकमेल करते हुए उनका यौन शौषण किए जाने का पर्दाफाश किया गया था।
बड़े लोगों की पुत्रियां ‘ब्लैकमेल का शिकार’ शीर्षक से प्रकाशित खबर ने पाठकों के हाथों में अखबार पहुंचने के साथ ही भूचाल ला दिया
क्या नेता, क्या पुलिस, क्या प्रशासन, क्या सरकार, क्या सामाजिक धार्मिक नगर सेवा संगठन से जुड़े लोग सब के सब सहम गए। यह कैसे हो गया? कौन हैं? किसके साथ हुआ? अब क्या करें? कैसे करें? वो जमाना भले ही सोशल मीडिया का नहीं था, लेकिन कानों-कान हुई खुसुर-पुसुर ने खबर को आग की तरह फैलने में जरा सा भी वक्त नहीं लगा।
दरअसल, अजमेर के विभिन्न स्कूलों में पढ़ने वालीं 17 से 20 साल की 100 से भी ज्यादा लड़कियों को छ्दम बहाने से जाल में फंसा कर उनकी न्यूड फोटो खींचकर ब्लैकमेल कर उनका यौन शोषण करने वाले गिरोह का भांडा जो फूट चुका था। खबर में गिरोह के लोग धार्मिक—राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक सभी तरह से प्रभावशाली बताए गए थे. लिहाजा शासन-शासन में मानों भूकंपआ गया।
समाजकंटक अपने कुकर्मों के साक्ष्य मिटाने में लग गए तो ओहदेदार अपने उच्च रसुकातों से खुद को बचाने में। पीड़िताओं के परिवारजन अपने इज्जत के खातिर नगर से अपना नाता तोड़कर दबे पांव अन्यत्र कूच करने की जुगत-जुगाड़ में जुट गए। वहीं प्रशासन के लोग शासन के आदेश की पालना में तो उधर शासन अपने सिंहासन और कुर्सी बचाने में व्यस्त हो गया।
अजमेर दरगाह के खुद्दाम-ए-ख्वाजा के परिवार के कई युवा थे शामिल
यहां बताते चले कि अजमेर की शान और पहचान में बदनुमा दाग के अखबारों के जरिए जाहिर होने से पहले अजमेर जिला पुलिस प्रशासन ने गोपनीय जांच में ही यह खुलासा पा लिया था कि गिरोह में अजमेर के सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के खुद्दाम-ए-ख्वाजा यानी खादिम परिवारों के कई युवा रईसजादे शामिल हैं। इतना ही नहीं पुलिस ने यह भी जान लिया था कि राजनीतिक रूप से वे युवा कांग्रेस के पदाधिकारी भी हैं और आर्थिक रूप से संपन्न भी।
पुलिस हो गई थी बेबस !
जिला पुलिस प्रशासन को यह अच्छी तरह पता चल गया था कि पीड़िताओं के सामने आए बिना यदि किसी पर भी हाथ डाला जाएगा तो नगर की शांति और कानून व्यवस्था को सामान्य बनाए रखने का बड़ा जोखिम होगा और यदि शांति और कानून व्यवस्था संभाल भी लेंगे तो क्या पता इसमें अजमेर के किन-किन प्रभावशाली और प्रतिष्ठत परिवारों की बच्चियां प्रभावित हों। नगर के कौन-कौन पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी या उच्च पदस्थ राजनीति जनप्रतिनिधि तक इसके तार जुड़े हैं लिहाजा बहुत ही सोच विचार के बाद स्थानीय जिला पुलिस प्रशासन ने तत्कालीन राजस्थान सरकार के मुख्यमंत्री भाजपा के भैरोंसिंह शेखावत को स्थिति से अवगत कराया।
सीएम भैरोसिंह शेखावत ने एक्शन लेने को कहा
बताते हैं कि भैरोसिंह शेखावत ने शांति और कानून व्यवस्था बिगड़ने नहीं देने और अपराधियों को नहीं छोड़ने के स्पष्ट संकेत देते हुए इस मामले में समुचित एक्शन लेने को कहा। बावजूद इसके जिला पुलिस प्रशासन किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सका उलटा यह कि इस दरमियान संभावित आरोपितों को अपने खिलाफ इस्तेमाल होने वाले साक्ष्य मिटाने और अजमेर से भाग जाने का अवसर मिल गया।
अखबार में स्कूली छात्राओं को अश्लील फोटो के जरिए ब्लैकमेल करने के कांड की पहली खबर प्रकाशित होने के लगभग एक पखवाड़े बाद भी जिला पुलिस और प्रशासन ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। इसके बाद युवा पत्रकार संतोष गुप्ता ने दूसरी खबर ‘छात्राओं को ब्लैकमेल करने वाले आजाद कैसे रहे गए?’ शीर्षक से प्रकाशित किया।
इस बार के साथ वह फोटो भी प्रकाशित किए। जिससे अजमेर में छात्राओं के साथ हो रहे यौन शोषण को खुली आंखों से देखा जा सकता था। फोटो के प्रकाशन के बाद तो समूचे राजस्थान में जैसे कोई तूफान आ गया। तीसरी खबर ”सीआईडी ने पांच माह पहले ही दे दी थी सूचना!” शीर्षक से प्रकाशित हुई।
चौथी खबर में प्रदेश के गृहमंत्री भाजपा के दिग्विजय सिंह का बयान आया ”उन्होंने डेढ़ माह पहले ही देख लिए थे अश्लील छाया चित्र।
इसके बाद क्या थाए जनता ने सड़कों पर उतर कर अजमेर बंद का ऐलान कर दिया। शासन और प्रशासन पर भारी दवाब पड़ा। नगर के जागरूक संगठन गुनाहगारों को सजा दिलाने के लिए सक्रिय हो गए। स्कूल छात्राओं के साथ यौन शोषण का सारा खेल शहर में सुनियोजित तरीके से मुस्लिम समुदाय के प्रभावशाली युवाओं के द्वारा हिन्दू लड़कियों के साथ किया जा रहा था। इसे लेकर विश्वहिन्दू परिषद, शिवसेना, बजरंग दल जैसे संगठनों ने मुट्ठियां भींच लीं।
अजमेर जिला बार एसोसिएशन ने मीटिंग कर शहर के बिगड़ते हाल और हालात को लेकर आपस में चर्चा शुरू कर दी और पीड़िताओं के अभाव में अपराधियों को सजा दिलाने के लिए उचित मार्ग खोजना शुरू कर दिया। वकीलों के शिष्टामण्डल ने तत्कालीन जिला कलक्टर अदिति मेहता से मुलाकात की। पुलिस अधीक्षक एम.एन धवन की मौजूदगी में हुई वार्ता में रास्ता निकाला गया कि जिन भी आरोपितों को पहचाना जा चुका है, उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत जेल में डाला जाए, जिससे जनता का गुस्सा शांत हो और माहौल साम्प्रदायिक न बने।
इसी बैठक में यह भी खुलासा हुआ कि जिला पुलिस प्रशासन को सबसे पहले अजमेर के युवा भाजपा नेता और पेशे से वकील वीर कुमार और विश्व हिन्दू परिषद के पदाधिकारी ने फोटो उपलब्ध कराकर षडयंत्र पूर्व हिन्दू लड़कियों का मुस्लिम युवकों द्वारा यौन शोषण किए जाने की सूचना दी थी। साथ ही यह भी मंशा दर्शाई थी कि यदि कानूनन अपराधियों को नहीं पकड़ा गया तो हिन्दू संगठन कानून अपने हाथ में लेने से नहीं चूकेगा।
जिला पुलिस प्रशासन ने भाजपा और हिन्दूवादी संगठनों की इस चेतावनी से ही थोड़ी सक्रियता तो दिखाई, लेकिन तत्कालीन उप-अधीक्षक हरिप्रसाद शर्मा को पहले मौखिक आदेश देकर मामले की गोपनीय जांच करने को कहा। गोपनीय जांच में हुए खुलासे के बाद तो जिला प्रशासन के हाथ पैर ही फूल गए। जिला पुलिस प्रशासन ने मामले का खुलासा किए जाने और अपराधियों को जेल की सलाखों के पीछे धकेले जाने के बजाय पूरा प्रकरण ही ठंडे बस्ते में डालने कवायद कर डाली।
तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक ओमेन्द्र भारद्वाज ने वाकायदा प्रेस कांफ्रेस कर खुलासा किया कि मामला वैसा नहीं है ,जैसा प्रचारित किया जा रहा है अजमेर कि स्कूली छात्राओं के साथ किसी तरह का षडयंत्र पूर्वक ब्लैकमेल कर यौन शोषण नहीं किया गया है। मामले में जिन चार लड़कियों के साथ यौन शोषण होने के फोटो मिले हैं, पुलिस ने उनकी तहकीकात में पाया कि उनका चरित्र ही संदिग्ध है।
अजमेर कांड पर राजस्थान भर में आंदोलन शुरू
पुलिस महानिरीक्षक के बयान अखबारों में सुर्खियां बनने के बाद अजमेर ही नहीं राजस्थान भर में आंदोलन शुरू हो गए। जगह-जगह मुलजिमों को गिरफ्तार किए जाने की मांग उठने लगी और पीड़िताओं को न्याय देने की आवाज बुलंद होने लगी। कस्बे बंद होने की खबरें आने लगीं। राजस्थान की भाजपा सरकार पर प्रकरण को लेकर भारी दवाब बना। तत्कालीन कांग्रेस नेताओं जिनमें वर्तमान राजस्थान की कांग्रेस सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, कांग्रेस के दिग्गज नेता पूर्व चिकित्सा मंत्री डॉ.रघु शर्मा सहित अनेक कांग्रेस नेताओं ने ही अजमेर में स्कूली छात्राओं के साथ हुए यौन शोषण अपराध की निंदा करते हुए अपराधियों को सजा दिए जाने की मांग उठानी शुरू कर दी। कांग्रेस नेताओं ने प्रकरण की जांच सीआईडी से कराए जाने का भी भाजपा सरकार पर दवाब बनाया।
30 मई 1992- मामला सीआईडी सीबी के हाथों में सौंपा
आखिर 30 मई 1992 को तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत ने मामला सीआईडी सीबी के हाथों में सौंप कर जांच कराए जाने का ऐलान कर दिया। इसकी सूचना अजमेर जिला पुलिस प्रशासन को मिली तो अजमेर जिला पुलिस प्रशासन ने सीआईडी सीबी के हाथों जांच शुरू होने से पहले तत्कालीन उपअधीक्षक हरिप्रसाद शर्मा के हाथों एक सादा पेपर पर प्राथमिकी लेकर उसे दर्ज कर लिया। इससे जिला पुलिस की भद्द पिटने से बच गई।
पहली रिपोर्ट में गोपनीय अनुसंधान अधिकारी होने के नाते हरि प्रसाद शर्मा ने उन चारों अश्लील फोटो का विश्लेषण करते हुए रिपोर्ट दी. जिसमें लिखा था ”अजमेर में स्कूली छात्राओं को किसी तरह अपने जाल में फंसाकर उनके अश्लील फोटो खींचे गए। इसके बाद उन्हें ब्लैकमेल किया गया साथ ही उनका यौन शोषण हुआ. साथ ही उनपर अन्य लड़कियों को लेकर आने का दबाव गिरोह द्वारा बनाए जाने की जानकारी मिली है !”
रिपोर्ट में यह भी लिखा था कि गिरोह में सामाजिक, राजनीतिक व धार्मिक रूप से प्रभावशाली युवा शामिल हैं। फोटो के आधार पर अनुसंधान अधिकारी ने दो-तीन पीड़िताओं की पहचान होने का भी पुलिस केस में जिक्र किया और मामले की आगे जांच होने पर अन्य अपराधियों के नाम भी सामने आने की संभावना दर्शाई।
खादिम चिश्ती के परिवार के लोगों के नाम आए सामने
अजमेर जिला पुलिस द्वारा रिपोर्ट दर्ज होने के अगले ही दिन सीनियर आईपीएस अधिकारी एन.के पाटनी अपनी पूरी टीम के साथ अजमेर पहुंच गए और 31 मई 1992 से जांच अपने हाथों में लेकर अनुसंधान शुरू कर दिया। जांच शुरू हुई तो गिरोह में युवा कांग्रेस के शहर अध्यक्ष और दरगाह के खादिम चिश्ती परिवार के फारूक चिश्ती, उपाध्यक्ष नफीस चिश्ती, संयुक्त सचिव अनवर चिश्ती, पूर्व कांग्रेस विधायक के नजदीकी रिश्तेदार अलमास महाराज, इशरत अली, इकबाल खान, सलीम, जमीर, सोहेल गनी, पुत्तन इलाहाबादी, नसीम अहमद उर्फ टार्जन, परवेज अंसारी, मोहिबुल्लाह उर्फ मेराडोना, कैलाश सोनी , महेश लुधानी, पुरुषोत्तम उर्फ जॉन वेसली उर्फ बबना एवं हरीश तोलानी नामक अपराधियों के नाम सामने आए।
इनमें शामिल हरीश तोलानी अजमेर कलर लैब का मैनेजर हुआ करता था। जहां अपराधी युवक कांग्रेस के उपाध्यक्ष नफीस चिश्ती और अपराधी सोहेलगनी छात्राओं के साथ यौन शोषण की नग्न रील धुलवाने और प्रिंट बनवाने के लिए लाते थे। फोटो प्रिंट के लिए कलर लैब का मालिक घनश्याम भूरानी के माध्यम से लैब पर आती थी।
रील प्रिंट करने वाले से खुला मामला
जानकारी के अनुसार, पुरुषोत्तम उर्फ बबना रील से प्रिंट बनाया करता था. यही वह व्यक्ति है जिसके जरिए सबसे पहले स्कूली छात्राओं की नग्न अश्लील फोटो अपराधियों को सबक सिखाने और मुस्लिम युवकों द्वारा छात्राओं का यौनाचार बंद कराए जाने के उद्देश्य से कलर लैब से बाहर निकलकर पहले एक आर्किटेक्ट के पास पहुंचे, फिर वकील के माध्यम से भाजपा नेता वीर कुमार के पास पहुंचे। इससे अपराधी सजग हो गए और उन्होंने साक्ष्य लीक करने वाली कलर लैब के मालिक धनश्याम भूरानी का गला पकड़ लिया। फिर क्या था, मामला प्याज के छिलकों की तरह खुलने लगा।
केस से जुड़े कई लोगों ने की आत्महत्या
कहते हैं कि सीआईडी सीबी ने अनुसंधान करते हुए सियासी दबाव में काम किया। यही वजह रही कि जिस फोटो लैब के मालिक, टेक्निशियन, मैनेजर को सरकारी गवाह बनाया जा सकता था, उनमें से मालिक को तो छोड़ ही दिया और मैनेजर व टेक्निशियन को अपराधी बना दिया। आखिर अच्छी मंशा रखने के बाद भी मुलजिम बन जाने तथा अपराधियों द्वारा निरंतर प्रताड़ित किए जाने से निराश एवं हताश, पीड़ित होकर पुरुषोषत्तम ने जमानत पर रिहा होने के कुछ दिन बाद ही पत्नी के साथ मिलकर आत्महत्या कर ली।
स्कैंडल में जिन लड़कियों की फोटोज खींची गईं, उनमें से कई लड़कियों ने आत्महत्या कर अपनी जीवन लीला समाप्त करनी शुरू कर दी। उन दिनों में अचानक एक के बाद एक करीब एक दर्जन लड़कियों ने सुसाइड कर लिया. इस घटना में सबसे दर्दनाक बात यह रही कि इन लड़कियों के लिए न समाज और न ही घरवाले आगे आए, मामले के खुलासे में यह एक दुखद कड़ी साबित हुआ।
फोटोज और वीडियोज के जरिए लड़कियों की पहचान
आरोपियों के सियासी रसूख के चलते कोई भी आगे नहीं आया। हालांकि, बाद में फोटोज और वीडियोज के आधार पर लड़कियों की पहचान की गई। इनसे बात करने की कोशिश की गई, लेकिन समाज में बदनामी के डर से कोई आगे आने को तैयार नहीं हुआ। समझाइश के बाद लड़कियों ने मामला दर्ज करवाया, लेकिन धमकियां मिलने के बाद सिर्फ कुछ ही लड़कियां डटी रहीं। इनके बयानों के आधार पर 16-17 आरोपियों की पहचान की गई, जिसमें से एक अलमास महाराज को छोड़ कर वर्तमान में सभी आरोपियों को पकड़ा जा चुका है।
ये आरोपी थे शामिल
पीड़ित लडकियों के आधार पर करीब 16-17 आरोपियों की पहचान हुई। इनमें से अलमास महाराज विदेश में अमेरिका न्यूजर्सी में होना बताया जाता है। मामले में वर्तमान में पांच आरोपियों सोहेल गनी, इकबाल, जमीर, सलीम को छोड़ कर सभी की सजाएं पूरी हो गई हैं. जिनकी सजाएं पूरी नहीं हुई है वे जमानत पर हैं।
अजमेर ब्लैकमेल कांड जिला अदालत से हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, फास्ट ट्रैक कोर्ट और पॉक्सो कोर्ट के बीच घूमता रहा। शुरुआत में 17 लड़कियों ने अपने बयान दर्ज करवाए, लेकिन बाद में ज्यादातर गवाही देने से मुकर गईं। 1998 में अजमेर की एक कोर्ट ने 8 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई, लेकिन राजस्थान हाईकोर्ट ने 2001 में उनमें से चार को बरी कर दिया।
साल 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने बाकी चारों दोषियों की सजा घटाकर 10 साल कर दिया। इनमें मोइजुल्ला उर्फ पुत्तन इलाहाबादी, इशरत, अनवर चिश्ती और शम्शुद्दीन उर्फ माराडोना शामिल था। 2007 में अजमेर की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने फारूक चिश्ती को भी दोषी ठहराया, जिसने खुद को दिमागी तौर पर पागल घोषित करवा लिया था।
2013 में राजस्थान हाईकोर्ट ने फारूक चिश्ती की आजीवन कारावास की सजा घटाते हुए कहा कि वो जेल में पर्याप्त समय सजा काट चुका है। साल 2012 में सरेंडर करने वाला सलीम चिश्ती 2018 तक जेल में रहा और जमानत पर रिहा हो गया। अन्य आरोपियों को भी जमानत मिल गई थी।
वहीं, एक आरोपी अलमास महाराज जो पूर्व कांग्रेस विधायक का करीबी रिश्तेदार है, वह पकड़ा ही नहीं जा सका। आखिरी में पकड़े गए सोहेल गनी, नफीश चिश्ती, जमीर हुसैन, सलीम चिश्ती, इकबाल भाटी, नसीम उर्फ टार्जन को कोर्ट ने दोषी ठहराया है।
3 दशक बाद मामला फिर आया सुर्खियों में
ब्लैकमेल कांड के 3 दशक पूरे होने के बाद एक बार पिछले साल जुलाई में मामला सुर्खियों में आया था। दरअसल, पिछले साल रिलीज हुई एक फिल्म ‘Ajmer 92’ को लेकर दावा किया गया कि यह 1992 में अजमेर में हुए इसी ब्लैकमेल कांड की सच्ची घटना पर आधारित है। इसे लेकर अब खादिम समुदाय के साथ मुस्लिम समाज की अन्य संस्थाओं ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया था।