विशेष संवाददाता
गाजियाबाद । अपने रूखे व्यवहार और विवादित बयानों के कारण सुर्ख़ियों में रहने वाली गाज़ियाबाद की मेयर सुनीता दयाल एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार गाजियाबाद नगर निगम में विवाद भी ऐसा हुआ है कि मेयर सुनीता दयाल और नगर आयुक्त विक्रमादित्य मलिक के बीच तल्खी बढ़ गई है। नगर आयुक्त की ओर से सभी विभागाध्यक्षों को जारी किए गए एक पत्र ने इस कड़वाहट को उजागर कर दिया है। पत्र में नगर आयुक्त ने कहा है कि शासकीय कार्य की पत्रावलियां नगर आयुक्त की स्वीकृति के बिना ही मेयर के पति के सामने रखी जा रही हैं। जबकि, यह कार्य ऑफिशल सीक्रेट एक्ट 1923 के तहत प्रतिबंधित है। उन्होंने पत्र के माध्यम से आदेश जारी किया है कि किसी भी निर्वाचित मेयर और पार्षद के सगे-संबंधियों को फाइल और फाइल की फोटो कॉपी न दी जाए। यदि स्टाफ इस तरह का काम करते हुए पाया जाता है तो एक्शन लिया जाएगा। इस पत्र के बाद अब मेयर और निर्वाचित महिला पार्षदों के सगे – संबंधी नगर निगम के स्टाफ से किसी भी प्रकरण से जुड़ी फाइल की फोटो कॉपी हासिल नहीं कर पाएंगे।
नगर आयुक्त ने पत्र में लिखा है कि निगम अधिनियम 1959 के अनुसार, मेयर को बैठक में शामिल होने का अधिकार है। लेकिन, शासकीय कार्य की पत्रावलियां नगर आयुक्त की स्वीकृति के बिना ही मेयर के पति के सामने रखी जा रही हैं। पत्रावलियों और अभिलेखों को देखने के लिए पहले आवेदन करना होगा। इसके बाद नगर आयुक्त की लिखित परमिशन पर ही उन्हें सरकारी दस्तावेज और अभिलेख को देखने का अधिकार है। पत्र में लिखा गया है कि मेयर के पति की ओर से नगर निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों को फोन कर बिना उचित माध्यम के शासकीय पत्रावलियों को मांगा जाता है।
नगर आयुक्त ने पत्र में लिखा है कि पत्रावलियों और अभिलेखों की फोटोकॉपी और स्कैनिंग कर सरकारी कार्य में हस्तक्षेप किया जाता है। सरकारी पत्रावली/अभिलेखों की फोटो कॉपी और स्कैनिंग करना, अभिलेख जुटाना सीक्रेट एक्ट 1923 के तहत अपराध है। इसके बाद भी मेयर के पति निगम के स्टाफ की मदद से ऐसा कर रहे हैं।
नगर आयुक्त ने उत्तर प्रदेश नगरपालिका अधिनियम 1916 के नियमों का हवाला देते हुए कहा है कि मेयर और पार्षद के अलावा कोई भी शख्स किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं कर सकता और न ही बैठकों में शामिल हो सकता है। निर्वाचित महिला पदाधिकारी निकायों के प्रशासनिक कार्यों और बैठक में अपने साथ या अपने स्थान पर किसी और को नहीं बैठा सकती हैं। नगर निगम, नगरपालिका परिषदों और नगर पंचायतों की बैठकों में निर्वाचित या पदेन पदाधिकारियों के अलावा कोई और शामिल नहीं हो सकता है।
शासनादेश में यह भी साफ किया गया है कि महिला पदाधिकारियों के किसी भी रिश्तेदार को नगर निगम, नगरपालिका परिषद या नगरपंचायत के अभिलेखों को देखने की परमिशन तब तक नहीं दी जाएगी, जब तक वह नियम के तहत आवेदन नहीं करता है। आवेदन के बाद ही नगर आयुक्त और अधिशासी अधिकारी लिखित में परमिशन देंगे।
मेयर की सफाई
मेयर सुनीता दयाल ने कहा कि महिलाओं की योग्यता और क्षमता को कम आंकना असंवैधानिक है। मेरे पति की ओर से पत्रावली मांगने समेत सभी आरोप निराधार हैं। उन्होंने आज तक नगर निगम के दफ्तर में प्रवेश तक नहीं किया है। कई मामलों की नगर आयुक्त को जानकारी नहीं थी। मेरे बताने पर उन्होंने कमी मानी और कई कार्य निरस्त कराए। कुछ अधिकारी और कर्मचारी नहीं चाहते कि नगर निगम की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता आए। जनता और नगर निगम के प्रति अधिकारियों से अधिक जिम्मेदारी मेयर की है।
मेयर ने कहा कि नगर आयुक्त ने जिस शासनादेश का जिक्र किया है, वह सभी पर लागू होता है। नगर आयुक्त की ओर से जारी पत्र पहले ठेकेदारों तक पहुंच गया। अखबारों में पत्र की मूल प्रतिलिपि नगर आयुक्त प्रकाशित करवा रहे हैं। क्या यह प्रोटोकॉल और अधिनियम का उल्लंघन नहीं है?
माना जा रहा है कि इस नए विवाद के बाद मेयर और नगर आयुक्त के बीच तल्खी और विवाद आने वाले दिनों में और बढ़ सकता है। माना जा रहा है की मेयर आयुक्त के पत्र को लेकर शासन से शिकायत करने का मन बना रही हैं।