भगवान राम के ओरछा में विराजमान होने के बाद राजघराना ओरछा से टीकमगढ़ आ गया था ओरछा में आज भी भगवान राम का शासन चलता है
विशेष संवाददाता
गाजियाबाद। ऐतिहासिक श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर में सावन मास में भगवान दूधेश्वर की पूजा-अर्चना करने के लिए देश भर से बडी-बडी हस्तियां भी आ रही हैं। बुधवार को टीकमगढ़ मध्य प्रदेश बुंदेलखंड के राजकुमार अजय देव सिंह ने मंदिर में पूजा-अर्चनाकी और श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर, श्री पंच दशनाम जूना अखाडा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता, दिल्ली संत महामंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व हिंदू यूनाइटिड फ्रंट के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज का आशीर्वाद लिया।
टीकमगढ़ मध्य प्रदेश बुंदेलखंड के राजकुमार अजय दूधेश्वर देव सिंह बुधवार को प्रातः 5 बजे मंदिर पहुंचे और विधि-विधान से भगवान दूधेश्वर की पूजा-अर्चना की व पाठ किया। उन्होंने भगवान का जलाभिषेक किया और मंदिर में विराजमान अन्य देवी-देवताओं व सिद्ध गुरू मूर्तियों की पूजा-अर्चना की। इसके बाद उन्होंने महाराजश्री से भेंटकर उनका आशीर्वाद लिया। श्रीमहंत नारायण गिरी महाराज ने दूधेश्वर भगवान का इतिहास, रूद्राक्ष की माला भेंटकर व पटका पहनाकर सम्मानित किया। श्रीमहंत नारायण गिरी महाराज ने बताया कि टीकमगढ का ओरछा यानि राजा राम से बहुत प्राचीन सम्बंध है।
टीकमगढ राजघराने के राजा मधुकर शाह जूदेव, प्रथम की पत्नी रानी गणेश कंवर अवध से भगवान श्रीराम की मूर्ति लेकर आईं और ओरछा में उनकी स्थापना की। महारानी गणेश कंवर को स्वप्न में भगवान श्रीराम नेे यहां राजा के रूप में राज करने की बात कही। इसके बाद राज परिवार ओरछा से टीकमगढ़ आ गया, लेकिन ओरछा से टीकमगढ़ का संबंध अनवरत रूप से बना रहा। भगवान राम आज भी ओरछा में राज कर रहे हैं और राजा राम का यह मंदिर पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यहां पर उनका ही शासन चलता है।
टीकमगढ़ राजघराने का सम्बंध कनक भवन से भी है। वर्तमान में महल का जो स्वरूप है वह 1891 में ओरछा के राजा सवाई महेंद्र प्रताप सिंह की पत्नी महारानी वृषभानु का निर्मित कराया हुआ है। कनक भवन माता कैकयी ने माता जानकी को मुंह दिखाई में दिया था। द्वापर युग में भी श्रीकृष्ण अपनी पत्नी रुक्मिणी के साथ अयोध्या आए थे। अयोध्या दर्शन के दौरान जब श्रीकृष्ण कनक भवन पहुँचे तो उन्होंने भवन की जर्जर हालत देखी। अपनी दिव्य दृष्टि से श्रीकृष्ण ने यह क्षणभर में जान लिया कि यह स्थान कनक भवन है और उन्होंने अपने योगबल से श्रीसीताराम की मूर्तियों को प्रकट कर उसी स्थान पर स्थापित किया।