जसविंदर सिद्धू
नई दिल्ली, 20 जुलाई 2024 । हैदराबाद साइबर क्राइम पुलिस ने बुधबार को अंबरपेट में रहने वाले एक व्यक्ति से पार्सल स्कैम के जरिए ठगे गए 18 लाख रुपये 20 दिन के भीतर वापस दिलवाने में कामयाबी पाई है. लेकिन इस तरह की किस्मत हर किसी की नहीं है. हर दिन करोड़ों रुपये साइबर स्कैम के जरिए आम आदमी से लूटे जा रहे हैं और सरकार इस पर लगाम लगाने में पूरी तरह से नाकाम नजर आ रही है. ऐसे में अगर अगली बार आपका पैसा कोई सेल फोन डकैत लूट ले तो ज्यादा उम्मीद मत रखिए.
होम मिनिस्ट्री की देखरेख में चलने वाले शिकायत पोर्टल, नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल, के डाटा के अनुसार इस साल जनवरी से अप्रैल के बीच पोर्टल को साइबर फॉर्ड की 740000 शिकायते मिलीं जिसमें पीड़ितों के बैंक खातों से 1750 करोड़ रुपये निकाल लिए गए. 2022 और 2023 में इसी अवधि की तुलना इस तरह के साइबर जालसाजी में 60.9 फीसदी का इजाफा हुआ है.
खतरनाक पहलू यह है कि करोडों भारतीयों के बैंक, सेलफोन, आधारकार्ड, पैनकार्ड, गैस-बिजली कनैक्शन और मंहगी खरीददारी से जुड़ा डाटा खुलेआम साइबर फ्रॉड के लिए इस्तेमाल हो रहा है.
साइबर फ्रॉड हर दिन नए तरह के हथकंडे अपना रहे हैं लोगों का पैसा लूटने के लिए। उदहारण के तौर पर लोगों को लिंक भेजा जाता है कि फलां तारिख तक अगर बिजली का बिल ना भरा गया तो कनेक्शन काट दिया जाएगा. उस लिंक पर क्लिक करने के साथ ही फोन या कंप्यूटर पर साइबर अपराधी घुसपैठिए सॉफ्टवेयर के जरिए कब्जा करके शिकार के बैंक खाते में घुस कर पैसा निकाल रहे हैं। ज्यादातर मामलों में पीड़ितों किसी ना किसी लालच में फंस कर पैसा गंवाया है. मसलन, फोन आएगा कि गैस या बिजली का कुछ महीनों का बिल एकसाथ भरने पर कुछ हजार की बचत होगी. इस लालच में लोग आ रहे हैं और साइबर जालसाजों को पैसा भेज रहे हैं.
हैदराबाद में जो रिकवरी हुई है वह बिलकुल नए तरीके का साइबर फ्रॉड है. इसमें अपराधी शिकार को फोन करके बताते हैं कि उनके नाम से भेजा गया पार्सल पुलिस, कस्टम या एंटी टेरोरिस्ट सेल ने पकड़ा है जिसमें अवैध और प्रतिबंधित सामान भेजा गया है. आरोप को पुख्ता करने के लिए पीड़ित को उसका आधार नबंर भी बताया जाता है. पूरी जालसाजी को अमलीजामा पहनाने के लिए पुलिस के सीनियर अधिकारी की वर्दी में एक शख्स भी वाट्सएप चैट पर आता है और पीड़ित के खिलाफ तमाम धाराओं के तहत केस दर्ज करने की धमकी देता है. डर के कारण कई पीड़ित पैसा दे चुके हैं. हैदराबाद में पकड़ा गया मामला एकमात्र नहीं है. ऐसे कई फ्रॉड सामने आ चुके हैं. पैसा वसूल करने का बावजूद हैदराबाद पुलिस असली अपराधियों तक पहुंचने की कोशिश कर रही है.
“ साइबर जालसाजी जिस तेजी से होती है, वही पुलिस के लिए एक चुनौती है,” डीसीपी, इंटेलिजेंस फ्यूजन एंड स्ट्रेजिक ऑपरेशंस (आईएफएसओ) रहे प्रशांत गौतम ने इस संवाददाता को हाल ही में बताया था. उन्होंने कहा, “ अपराध होने के बाद डाटा समय पर ना मिल पाना हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती है. कई बार शिकायतों के संबंध में डाटा मिलता है लेकिन समय निकलने के साथ वह किसी काम का नहीं रहता. हम दो पक्षों के डाटा की मांग करते हैं. एक तो टेलीफोन और इंटरनेट सर्विस देने वाली कंपनियां हैं और दूसरा है सोशल मीडिया साइट्स और गुगल. सभी के बीच पुख्ता तालमेल ना होने के कारण भी इन अपराधों पर रोक लगा पाना मुश्किल हो रहा है.”
आईएफएसओ दिल्ली पुलिस का साइबर क्राइम पर लगाम लगाने के लिए बनाया गया आधुनिक तकनीक से लैस सेल है.
हैदराबाद का शख्स हर मायने में खुशकिस्मत था लेकिन 98 फिसदी मामलों में साइबर फ्रॉड ने लूटा गया पैसा वापिस नहीं मिल रहा है. सरकार और बैकों जैसी संस्थाओं ने लोगों साइबर फ्रॉड के बारे में जागरुक बनाने के लिए करोड़ों रुपये विज्ञापनों पर खर्च कर दिए हैं. इन विज्ञापनों में बताया जाता है कि अपना वन टाइम पासवर्ड यानि ओटीपी सांझा ना करें और किसी भी संदिग्ध लिंक को क्लिक ना करें. लेकिन सरकार के पास साइबर क्राइम कर रहे अपराधियों की धरपकड़ के लिए कोई ठोस कानून नहीं है.
रोचक पहलू यह है कि साइबर फ्रॉड का सारा पैसा बैंकिंग सिस्टम के जरिए ही इधर से उधर जा रहा है. इसके बावजूद बैंक भी नकैल नहीं लगा पा रहे हैं.
“ साइबर फ्रॉड को रोकने के लिए कानूनी ढांचा किसी भी तरह से असरदार नहीं है,” साइबर क्राइम लॉ के जानकार और सुप्रीम कोर्ट के वकील पवन दुग्गल कहते हैं. “ सही मायनों में भारत में साइबर क्राइम को रोकने के लिए मजबूत कानून नहीं हैं. यकीनन 2000 का रिस्क एंड टेक्नोलॉजी एक्ट है लेकिन यह अपना असर नहीं दिखा पा रहा है.”
कुछ समय पहले तक झारखंड को जामतारा साइबर जालसाजों की राजधानी हुआ करता था लेकिन अब हरियाणा का मेवात उसकी जगह लेने की होड़ में है. पिछले साल हरियाणा पुलिस ने साइबर क्राइम पर लगाम लगाने के लिए 50 हजार के ज्यादा सिम ब्लॉक किए थे, लेकिन साइबर जालसाजी का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा.
(लेखक इंडिपेडेंट इन्वेसटिगेटिव जर्नलिस्ट हैं.)