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भारतीय मुसलमानों को भारतीय कानून मंजूर नहीं !

क्या राहुल गांधी बताएँगे - हिंदुस्तान संविधान से चलेगा या शरिया से ?

विशेष संवाददाता

नई दिल्ली । हिंदुस्तान संविधान से चलेगा या शरिया से? यह एक बड़ा सवाल भारतीय समाज के सामने उठ खड़ा हुआ है। तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ते के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एतराज जताया है। बोर्ड ने सर्वोच्च अदालत के फैसले पर कहा कि यह ‘शरिया’ (इस्लामी कानून) के खिलाफ है। सर्वोच्च अदालत ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को इद्दत की अवधि के बाद गुजारा भत्ता मांगने की अनुमति दी है। लेकिन भारतीय मुसलमान इसे मानने के लिए तैयार नहीं है। वे अपनी सुविधा के अनुसार कभी संविधान तो कभी शरिया मानना चाहते हैं। वे शरिया के अनुसार चार शादियां करना चाहते हैं, वे तलाक के बाद महिलाओं को गुजारा भत्ता नहीं देना चाहते। शरिया में पत्थर मारकर मौत की सजा देना भी शामिल है, लेकिन वे इसकी चर्चा तक नहीं करते। इन दिनों संविधान की किताब हमेशा साथ लेकर चलने वाले कांग्रेस नेता राहुल गांधी को अब अपना पक्ष स्पष्ट करना चाहिए कि भारतीय मुसलमान जो संविधान को नहीं मानना चाहते तो उनसे क्या कहेंगे।

तलाकशुदा मुस्लिम महिला को भी भरण-पोषण पाने का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने एक फैसले में कहा है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला भी अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 (अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144) के अनुसार पति से भरण-पोषण पाने का अधिकार रखती हैं। इसके लिए वह याचिका दायर कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला मोहम्मद अब्दुल समद नामक मुस्लिम युवक की याचिका को खारिज करते हुए सुनाया। सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा है कि उसका यह निर्णय हर धर्म की महिला पर लागू होगा। इसी को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड शरीयत के खिलाफ बता रहा है।

AIMPLB ने कहा-सुप्रीम कोर्ट का फैसला शाहबानो केस जैसा

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) की रविवार (14 जुलाई) को हुई कार्यसमिति की बैठक में आठ प्रस्तावों को मंजूरी दी गई। यह जानकारी बोर्ड के प्रवक्ता सैयद कासिम रसूल इलियास ने दी। बैठक के बाद AIMPLB ने बयान जारी कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को शाहबानो केस जैसा बताया और कहा कि ये फैसला शरीयत कानून में मतभेद पैदा करने वाला है। उन्होंने कहा कि मुस्लिमों को मजहब के मुताबिक ज़िंदगी जीने का अधिकार है। इसके साथ ही AIMPLB ने उत्तराखंड के UCC को धार्मिक आजादी के खिलाफ बताते हुए उसे भी चुनौती देने का ऐलान किया। बोर्ड ने कहा कि यह संविधान द्वारा दिए गए धार्मिक स्वतंत्रता का भी हनन करता है। बोर्ड का कहना कहा कि गुजारा भत्ता वास्तव में मुस्लिम महिलाओं के लिए भीख है। जब पति ने महिला से रिश्ता ही खत्म कर लिया, तो वह उससे गुजारा-भत्ता के रूप में भीख क्यों मांगे।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला मुस्लिम महिलाओं के हित में नहींः AIMPLB

AIMPLB के प्रवक्ता डॉ क़ासिम रसूल इलियास ने बताया कि बोर्ड की वर्किंग कमेटी में 5 महिलाओं समेत 51 मेंबर हैं। इसकी मीटिंग में पहला resolution सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट पर पास किया गया। इसमें कहा गया है कि निकाह एक पवित्र बंधन होता है लेकिन हम अपने मज़हब के मुताबिक ज़िन्दगी गुज़ारे ये हमारा पर्सनल राइट है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ये आदेश महिलाओं के हित में है लेकिन हमें लगता है कि ये महिलाओं के हित में नहीं है।

पुरुष को गुजारा भत्ता देना है तो वह तलाक क्यों देगाः AIMPLB

इलियास ने बताया कि इस्लाम तलाक को रोकने के लिए हर संभव प्रयास करता है। अगर तलाक के बाद भी पुरुष को गुजारा भत्ता देना है तो वह तलाक क्यों देगा? और अगर रिश्ते में कड़वाहट आ गई है तो इसका खामियाजा किसे भुगतना पड़ेगा? हम कानूनी समिति से सलाह-मशविरा करके इस फैसले को वापस लेने के बारे में विचार विमर्श करेंगे। हम अपनी लीगल कमेटी से कंसल्ट करके इसे रोलबैक कराने पर विचार करेंगे।

उत्तराखंड में यूसीसी को देंगे चुनौती

सैयद कासिम इलियास ने कहा कि उत्तराखंड के यूसीसी कानून को चुनौती दी जाएगी। उन्होंने कहा कि विविधता हमारे देश की पहचान है, जिसे हमारे संविधान ने संरक्षित रखा है। यूसीसी इस विविधता को खत्म करने का प्रयास है। यूसीसी न केवल संविधान के खिलाफ है, बल्कि हमारी धार्मिक स्वतंत्रता के भी खिलाफ है। उत्तराखंड में पारित यूसीसी सभी के लिए परेशानी का कारण बन रही है। हमने उत्तराखंड में यूसीसी को चुनौती देने का फैसला किया है। हमारी कानूनी समिति तैयारी में जुटी है।

शरिया नहीं, मुस्लिम पर्सनल लॉ एक्ट को मानते हैं भारतीय मुसलमान

दिलचस्प बात यह है कि भारतीय मुसलमान खुद शरिया को नहीं मानते हैं। वे अंग्रेजों द्वारा बनाए मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अप्लीकेशन एक्ट 1937 को मानते हैं। यह मुसलमानों के बीच विवाह, गोद लेने, विरासत, तलाक और उत्तराधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने के लिए इस्लामी कानून को मान्यता देता है। मुस्लिमों में निकाह (विवाह) को एक अनुबंध माना जाता है, जो संतानोत्पतत्ति और बच्चों को वैध बनाने के लिए होता है। इसीलिए मुस्लिम शादियों में निकाहनामा (विवाह अनुबंध) की व्यवस्था है। इसमें महर का जिक्र भी होता है। महर वह धनराशि है जो विवाह के समय वर या वर का पिता, कन्या को देता है। एक महर तत्काल होती है, जो महिला को विवाह के वक्त ही मिल जाती है। दूसरी महर निकाह के वक्त तय कर दी जाती है, जो तलाक या पति की मृत्यु के वक्त मिलती है।

शरीयत में तलाक के बाद भरण-पोषण का अधिकार नहीं

आमतौर पर शरीयत में तलाक के बाद महिलाओं को इद्दत तक गुजारा-भत्ता पाने और महर (मेहर) के अलावा गुजारा-भत्ता पाने का सामान्य अधिकार नहीं है। इद्दत सामान्यतौर पर तलाक या पति की मृत्यु के बाद तीन माह तक की अवधि होती है। हालांकि, तलाक के वक्त अगर कोई महिला गर्भवती है तो बच्चे के पैदा होने तक का खर्च पति उठाएगा। इसके बाद अगर मां बच्चे को दूध पिलाती है तो केवल बच्चे का खर्च पिता देगा। बाकी तलाकशुदा लड़की के लिए केवल पिता और भाई जिम्मेदार होते हैं।

सीआरपीसी की धारा 125 के तहत मांग सकती थीं अधिकार

हालांकि, साल 1986 के पहले तक सीआरपीसी की धारा 125 के तहत मुस्लिम महिला भरण-पोषण का अधिकार मांग सकती थी. सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण मांगने का अधिकार सभी धर्मों की महिलाओं के पास था और मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम, 1985 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में इसकी पुष्टि भी की थी।

शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला बना नजीर

शाहबानो इंदौर की रहने वाली एक महिला थी। साल 1975 में शाह बानो के पति मोहम्मद अहमद खान ने उसे तलाक दे दिया। शाहबानो और उसके 5 बच्चों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया। उस समय शाहबानो की उम्र 59 साल की थी। शाहबानो ने अदालत से न्याय की मांग की । हालांकि उसके पति मोहम्मद अहमद खान ने दलील दी कि तीन तलाक के बाद इद्दत की मुद्दत तक ही तलाकशुदा महिला की देखरेख की जिम्मेदारी उसके पति की होती है। तलाक के बाद गुजारा भत्ता देने का कोई प्रावधान नहीं है। मामला मुस्लिम पर्सनल लॉ से जुड़ा था। लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची। पांच जजों की संविधान पीठ ने 23 अप्रैल 1985 को मुस्लिम पर्सनल लॉ बॉर्ड के आदेश के खिलाफ जाते हुए शाहबानो के पति को आदेश दिया कि वो अपने बच्चों को गुजारा भत्ता दे।

मुस्लिम कट्टरपंथियों के आगे राजीव गांधी सरकार ने थे टेके घुटने

सुप्रीम कोर्ट का शाहबानो मामले में फैसला आने के बाद भारतीय मुसलमानों ने विरोध करना शुरू कर दिया। मुस्लिम कट्टरपंथियों के विरोध के आगे राजीव गांधी सरकार ने घुटने टेक दिए थे। मुस्लिम तुष्टिकरण में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था। राजीव गांधी की सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक में संरक्षण का अधिकार) कानून 1986 सदन में पेश किया। शाहबानो मामले में राजीव गांधी की सरकार के द्वारा उठाए गए कदम को लेकर देश भर में सरकार के खिलाफ एक माहौल देखने को मिला।

कांग्रेस ने 39 साल पहले शरिया के लिए रौंदा था संविधान

तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को भी गुजारा भत्ता का अधिकार दिए जाने के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को बड़ी राहत और मानवीय संवेदनाओं वाला बताते हुए भाजपा ने कांग्रेस को भी आड़े हाथों लिया है। भाजपा सांसद व राष्ट्रीय प्रवक्ता डा. सुधांशु त्रिवेदी ने शाह बानो केस याद दिलाते हुए कहा कि 39 साल पहले राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने शरिया के लिए संविधान को रौंदा था। उन्होंने कहा कि 1985 में संविधान पर बहुत बड़ा खतरा आया था, जब शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय एक गरीब मुस्लिम महिला को भत्ता देने के लिए आया था। तब उसे शरिया के विरुद्ध मानकर राजीव गांधी के नेतृत्व में चल रही तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को रौंदकर संविधान के ऊपर शरिया को कर दिया था। तब संविधान खतरे में था। यह हमें फिर याद दिलाता है कि जब-जब यह सत्ता में आए, अनेक बार संविधान को खतरे में डाला।

क्या कहता है मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम-2019

इसके बाद मोदी सरकार ने साल 2019 में मुस्लिम महिलाओं के हक की रक्षा के लिए मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम-2019 लाया। इसके तहत अगर किसी मुस्लिम महिला को पति ने तलाक कहकर तलाक दे दिया है, तो वह भरण-पोषण भत्ता मांग सकती है। यही नहीं, इस अधिनियम के तहत अगर कोई मुस्लिम पति अपनी पत्नी को मौखिक, लिखित अथवा इलेक्ट्रॉनिक रूप में या किसी भी दूसरे तरीके से तलाक की घोषणा करता है तो वह शून्य और अवैध माना जाएगा। हालांकि, तलाकशुदा मुस्लिम महिला के पास यह अधिकार है कि वह इस अधिनियम को माने या फिर किसी अन्य कानून या परंपरा में उपलब्ध दूसरे विकल्प का चुनाव करे।

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