विशेष संवाददाता
नई दिल्ली । शनिवार को सात राज्यों की तेरह विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे आए. इनमें जहां इंडिया गठबंधन के दलों ने 10 और बीजेपी ने सिर्फ़ दो सीटों पर जीत हासिल की. एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार ने जीती.
यूं तो ये कोई बड़ा चुनाव नहीं था, लेकिन इन नतीजों पर कांग्रेस पार्टी ने बढ़-चढ़कर प्रतिक्रिया दी है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि “इन नतीजों से स्पष्ट हो गया है कि भाजपा का बुना गया भय और भ्रम का जाल टूट चुका है.”वहीं प्रियंका गांधी ने कहा, “देश की जनता समझ चुकी है कि सौ साल पीछे और सौ साल आगे भटकने वाली राजनीति से देश का भला नहीं होगा.”
वहीं, बीजेपी ने कहा है कि हिमाचल प्रदेश में जिन सीटों पर कांग्रेस जीती है वहां पहले स्वतंत्र विधायक थे जबकि उत्तराखंड की दोनों जीती हुई सीटें भी कांग्रेस के पास ही थीं. बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने सोशल मीडिया पर किए पोस्ट में कहा, “बंगाल को छोड़कर, जहां चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं थे, नतीजे वही हैं जो पहले थे. लेकिन इंडिया गठबंधन चाहे तो नैतिक जीत का दावा कर सकता है.”
जिन 13 सीटों पर उपचुनाव हुए हैं, उनमें से बीजेपी के पास सिर्फ़ चार सीटें ही थीं जबकि तीन निर्दलीय विधायकों के पास थीं. बीजेपी ने मध्यप्रदेश की जो सीट जीती है, वह पहले कांग्रेस के पास थी.
उत्तराखंड की दो विधानसभा सीटों- मंगलौर और बद्रीनाथ पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को हरा दिया है. मंगलौर सीट पहले बहुजन समाज पार्टी के पास थी, वहीं बद्रीनाथ सीट कांग्रेस के पास थी, लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 से पहले कांग्रेस विधायक के बीजेपी में शामिल होने की वजह से यह सीट खाली हुई थी.
हिमाचल में तीन में से दो सीटें कांग्रेस को और एक बीजेपी को मिली है. पंजाब में एक सीट सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी को मिली है. मध्य प्रदेश में एक विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ, जहां बीजेपी को जीत मिली. यह सीट पहले कांग्रेस के पास थी. बंगाल में चार सीटों पर उपचुनाव हुआ था. यहां चारों सीट पर टीएमसी ने जीत दर्ज की. यहां तीन सीटों पर पहले बीजेपी के विधायक थे. बिहार की रुपौली विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की. यह सीट पहले जेडीयू के पास थी.
आमतौर पर उपचुनावों पर राज्य में सत्ताधारी पार्टी का असर होता है. शनिवार को आए नतीजे में भी मोटे तौर पर उसी परंपरा का निर्वहन हुआ है. विश्लेषक मानते हैं कि इन उपचुनावों में हिमाचल प्रदेश के नतीजे अहम हैं क्योंकि यहां कुछ महीने पहले ही भारतीय जनता पार्टी ने सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार को गिराने का प्रयास किया था.
इन उपचुनावों में, दूसरा दिलचस्प नतीजा पश्चिम बंगाल का है. वहां लोकसभा चुनाव में बीजेपी को बुरी हार मिली थी. अब विधानसभा उपचुनाव में भी बीजेपी की तीन सीटें ममता बनर्जी ने छीन ली हैं. पश्चिम बंगाल में बीजेपी ये दिखाने की कोशिश में रही है कि राज्य में हम मुख्य विरोधी हैं. कल के नतीजों से यह साफ है कि ममता बनर्जी पूरी मज़बूती के साथ खड़ी हैं और बीजेपी को कोई स्पेस नहीं दे रही हैं.
क्या विपक्ष का नैरेटिव मज़बूत हो रहा है?
हालांकि, विश्लेषक ये भी मान रहे हैं कि भले ही ये उपचुनाव बहुत अहम ना हों, लेकिन इनका सांकेतिक महत्व ज़रूर है. दरअसल, 2024 लोकसभा चुनावों से पहले देश में कहीं भी कोई चुनाव या उपचुनाव होता था, ये धारणा बना दी जाती थी कि बीजेपी जीत जाएगी. “लोकसभा चुनावों के नतीजों और फ़ैज़ाबाद (अयोध्या) में बीजेपी की हार ने एक चीज़ साफ़ कर दी है कि बीजेपी अब अजेय नहीं है. लोकसभा चुनावों के बाद विपक्ष में ये विश्वास आया है कि बीजेपी को हराया जा सकता है और उसका असर उपचुनाव के नतीजों में देखने को मिला है.
क्या नतीजे बीजेपी के लिए चेतावनी है ?
लोकसभा चुनावों में बीजेपी स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं कर सकी. विपक्ष एकजुट हुआ और मज़बूत भी हुआ. अब उपचुनावों के इन नतीजों को विश्लेषक बीजेपी के लिए एक चेतावनी संदेश जरूर मान रहे हैं. कुछ लोग ये जरूर कह सकते हैं कि उपचुनाव को किसी संदेश के तौर पर नहीं देखना चाहिए, या सरकार में कोई बड़ा बदलाव या राजनीतिक स्थितियां नहीं बदल रही हैं, लेकिन ये बीजेपी के लिए एक वार्निंग सिग्नल है. अगर आप फुल बॉडी टेस्ट डॉक्टर से करवाते हैं और कुछ जगहों पर बीमारी के बॉर्डरलाइन पर होने का पता चलता है. तो डॉक्टर कहता है कि संभल जाइये. ये उपचुनाव बीजेपी और एनडीए के लिए संभल जाइये की तरह ही वार्निंग सिग्नल है.
परिवारवाद और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ नारा बुलंद करने वाली भारतीय जनता पार्टी ने हाल के सालों में कई ऐसे नेताओं को शामिल किया जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप थे. राजनीतिक परिवारों से जुड़े लोगों को भी पार्टी में जगह दी गई. विश्लेषक मान रहे हैं कि हालिया चुनावों के नतीजे बीजेपी के लिए ये संकेत भी हैं कि अब उसे कोर्स करेक्शन करना है. अब बीजेपी को देखना होगा कि उसे बाहर से आने वाले और भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे लोगों को कितनी जगह देनी है? उसे सांप्रदायिकता या ध्रुवीकरण की राजनीति पर चलना है या नहीं. कोर्स करेक्शन के लिए उसे बहुत सारे वार्निंग सिग्नल मिल रहे हैं.
अब पार्टी में भी यह आवाज़ उठने लगी है. एनडीए के लिए यह कोर्स करेक्शन का समय है. ये संदेश इन उपचुनावों के नतीजों में भी दिखाई दे रहा है. बीजेपी के सामने ये सवाल है कि उसे बाहरी दलों से आए लोगों को कितनी जगह देनी है और अपने ख़ुद के काडर को कैसे संतुष्ट करना है. अब बीजेपी को अपनी रणनीति को बदलना पड़ेगा. इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 425 सीटों पर चुनाव लड़ा था, क़रीब 24 प्रतिशत उम्मीदवार बाहर की पार्टियों से आए नेता थे, यानी हर चौथा उम्मीदवार बाहर की पार्टी का था. बीजेपी अपने आप को काडर बेस पार्टी कहती है, ऐसे में काडर क्या करेगा?”
उपचुनाव में भी बीजेपी ने ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिए जिन्होंने हाल ही में बीजेपी ज्वाइन की थी. बीजेपी को अगर कोर्स करेक्शन करना है तो उसे अपने काडर पर ध्यान देना होगा. काडर कब तक दरी बिछाएगा?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में भी क़रीब हर चौथा मंत्री बाहर की पार्टी से आया है. ऐसे में पार्टी के सामने ये चुनौती है कि वो लंबे समय से पार्टी के साथ जुड़े अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को कैसे संतुष्ट करे.
क्या धर्म की राजनीति को लोग नकार रहे है ?
भारतीय जनता पार्टी उत्तराखंड की बद्रीनाथ विधानसभा सीट हार गई है. यह सीट पहले कांग्रेस के पास थी लेकिन बीजेपी ने कांग्रेसी विधायक को अपने साथ ले लिया था. माना जा रहा हैं कि मतदाताओं ने लोकसभा में अयोध्या सीट के बाद अब उपचुनाव में बद्रीनाथ सीट पर बीजेपी की धर्म की राजनीति को नकार दिया है. बीजेपी की जो धर्म की राजनीति है, उसको दोबारा से लोगों ने बद्रीनाथ के अंदर नकारा है. लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने बद्रीनाथ से कांग्रेसी विधायक को शामिल किया और इस सीट पर दोबारा खड़ा किया. वो धर्म के नाम पर ही वोट मांग रहे थे और जनता ने नकार दिया है.
बीजेपी की सफलता का दौर 2014 में उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ था. विश्लेषक मान रहे हैं कि अब ये संदेश जा रहा है कि धर्म की राजनीति के दिन लद गए हैं. सांप्रदायिकता की राजनीति या ध्रुवीकरण की राजनीति में भी बदलाव की ज़रूरत है. लोकसभा में बीजेपी को अयोध्या, चित्रकूट, प्रयागराज और खाटू श्याम जैसी सीटों पर हाल मिली और अब उपचुनाव में बद्रीनाथ की सीट पर कांग्रेस ने हरा दिया. इसका मतलब है कि धर्म की राजनीति से बीजेपी को थोड़ा पीछे हटना पड़ेगा.
ऐसा लग रहा है कि अब वोटर की मानसिकता बदल रही है. एक समय पर कांग्रेस के दौर में अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की राजनीति चली फिर वोटरों को वो पसंद नहीं आई तो वे बीजेपी को सत्ता में ले आए. फिर बीजेपी की धर्म की राजनीति का दौर चला. अब ये संकेत हैं कि वोटर का मूड अब बदल रहा है और एनडीए को भी अपनी दिशा बदलने की ज़रूरत है.
विपक्ष के लिए क्या संकेत?
लोकसभा चुनाव और अब इन उपचुनावों से एक बात स्पष्ट है कि विपक्ष मज़बूत होकर उभरा है. विश्लेषक मानते हैं कि अब ये और अहम हो गया है कि विपक्ष एकजुट रहे. विश्लेषक मानते हैं कि इंडिया गठबंधन के दलों के लिए साथ रहना मजबूरी और ज़रूरी दोनों है क्योंकि ये दलों के अस्तित्व का सवाल भी है. क्योंकि जो साथ नहीं चलेगा वो ख़त्म हो जाएगा. जिस-जिस ने बीजेपी को सीधे या परोक्ष रूप से साथ दिया, वो सभी दल हाशिए पर आ गए हैं. जगन रेड्डी बिना कहे केंद्र में बीजेपी का समर्थन करते रहे, आज देखिए वो कहां हैं? साफ हो गए हैं.
ओडिशा में नवीन पटनायक 24 साल से सत्ता संभाल रहे थे. हर बात पर बीजेपी को समर्थन करते थे, वो घर बैठ गए. लोकसभा में नाम लेने वाला कोई नहीं बचा. ऐसे ही शिरोमणि अकाली दल के साथ हुआ. जिस पार्टी ने दस साल तक सत्ता संभाली हो आज वह एक एमपी की पार्टी बन कर रह गई है. एक चीज़ साफ है कि जो विपक्षी गठबंधन है उन्हें ये पता है कि अगर आप बिखरे तो साफ कर दिए जाओगे. उपचुनाव के बाद यह भावना और मज़बूत हुई है.
लोकतंत्र में मज़बूत विपक्ष सरकार की जवाबदेही भी तय करता है. लोकसभा चुनावों का एक संदेश ये भी था कि मतदाताओं ने विपक्ष को मज़बूत किया ताकि सरकार सदन में जवाबदेह रहे.
अगर इंडिया गठबंधन साथ चले और फोकस एजेंड़ा रखे तो वे बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं. अभी यूपी में दस विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है. अगर इंडिया गठबंधन साथ लड़ता है तो बेहतर नतीजे हो सकते हैं. यूपी में अभी बीजेपी पर दबाव बना हुआ है, पार्टी के कार्यकर्ता भी नाराज़ हैं. नेतृत्व पर सवाल उठ रहे हैं. ऐसे में आगामी यूपी विधानसभा उपचुनाव, विपक्ष के लिए मज़बूत होने का एक और मौक़ा हो सकते हैं.