विशेष संवाददाता
गाजियाबाद। अपना मकान सरकारी विभाग को किराए पर देने के लिए सब लालायित रहते हैं, इसके लिए लोग जोड़-तोड़ करने में भी पीछे नहीं रहते लेकिन कई बार यह उल्टा भी पड़ जाता है। लोनी में एक मकान मालिक के साथ कुछ ऐसा ही हो गया। लोनी की जवाहर नगर कालोनी के जिस मकान में किराए पर स्वास्थ्य विभाग की डिस्पेंसरी चल रही थी, वह मकान बिक गया। अब स्वास्थ्य विभाग को उसी लोकेशन पर दूसरे मकान की जरूरत थी। डिस्पेंसरी पर तैनात लल्लन सिंह और रेनू ने इस काम में कुछ मुनाफा कमाने की सोची। उन्होंने डिस्पेंसरी के लिए पड़ोस में ही रहने वाले रूपेंद्र कुमार से उसका मकान किराए पर लेने के लिए संपर्क किया। रूपेंद्र सिंह को अच्छी खासी आमदनी का भरोसा दिलाते हुए दोनों ने मकान में कुछ बदलाव कराने और सुविधा शुल्क के नाम पर कुछ पैसे खर्च करने की बात कही।
रूपेंद्र को प्रस्ताव समझ में आ गया। सुविधा शुल्क के नाम पर रूपेंद्र से 1.20 लाख रुपये देने की बात भी तय हो गई। विभाग की जरूरत के मुताबिक मकान में बदलाव करने के लिए भी पैसे की जरूरत थी। रूपेंद्र ने तत्काल बैंक से 10 लाख रुपए का लोन मंजूर कराया और मकान में बदलाव करा दिए। आरोप है कि सुविधा शुल्क पर मांगी गई रकम में से रेनू ने 50 हजार रुपये अपने खाते में ट्रांसफर कराए और टेंडर दिलवाने के नाम पर 70 हजार रुपए सीएमओ कार्यालय में संविदा पर तैनात एक बाबू को दिलवा दिए। नोडल अधिकारी ने रूपेंद्र के नाम से एग्रीमेंट भी तैयार करा दिया। रूपेंद्र को लगा कि सब कुछ योजना के मुताबिक हो रहा है। स्वास्थ्य विभाग से मिलने वाले किराए से लोन की ईएमआई भी जाती रहेगी और कुछ बचत भी हो जाएगी।
जिलाधिकारी इन्द्र विक्रम सिंह से शिकायत
लेकिन, इस बीच स्वास्थ्य विभाग ने डिस्पेंसरी के लिए कोई और मकान किराए पर लेने का मन बना लिया। यह जानकारी पाकर रूपेंद्र के पैरों तले की जमीन खिसक गई। उसने मामले की शिकायत जिलाधिकारी इन्द्र विक्रम सिंह से की है। शिकायत पर जिलाधिकारी ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) को जांच के निर्देश दिए।
सीएमओ ने क्या कहा
सीएमओ डॉ. भवतोष शंखधर ने बताया कि एसीएमओ अमित विक्रम को मामले की जांच सौंपी गई है। आरोपी बाबू को उसके पद से हटा दिया है। जांच में आरोप की पुष्टि होने पर सख्त कार्यवाही की जाएगी।