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यूपी का पूर्वांचल बना 2024 का अंतिम द्वार, 13 सीटों पर एनडीए या इंडिया गठबंधन, किसका होगा बेड़ा पार?

सभी सीटों का सिलसिलेवार आंकलन

विनीत कांत पराशर
चीफ एडिटर

नई दिल्ली । उत्तर प्रदेश में अंतिम चरण की 13 लोकसभा सीटों पर एक जून को वोटिंग होनी है. सातवें चरण के चुनावी अग्निपरीक्षा पूर्वांचल के रण में होनी है, जहां पर बीजेपी को जातियों के सियासी चक्रव्यूह को तोड़ने की है तो बसपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने सियासी आधार को बचाए रखने की है. इंडिया गठबंधन ने पिछड़ों और दलितों के मतदाताओं की निर्णायक भूमिका को देखते हुए दांव खेला है. इस चरण में पांच सीटें यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के गृह जिले गोरखपुर के आसापास की हैं तो चार सीटें पीएम मोदी के चुनाव वाराणशी क्षेत्र के सटी हुई हैं. ऐसे में देखना है कि यूपी के फाइनल चरण में एनडीए और इंडिया गठबंधन में कौन पूर्वांचल का बेड़ा पार करेगा?

सातवें चरण में वाराणसी, गोरखपुर, मिर्जापुर, चंदौली, घोसी, गाजीपुर, महराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव, सलेमपुर, बलिया और रॉबर्ट्सगंज सीट पर चुनाव है. ये सभी सीटें पूर्वांचल क्षेत्र में आती हैं. 2019 में इन 13 सीटों में से बीजेपी ने 9 सीटें जीती थी और दो सीटें उसके सहयोगी अपना दल (एस) जीती थी. गाजीपुर और घोसी सीट बसपा के खाते में गई थी. सपा-बसपा दोनों 2019 में साथ थे, लेकिन इस बार दोनों अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं. सपा-कांग्रेस मिलकर मैदान में उतरी हैं तो बीजेपी ने ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा, अनुप्रिया पटेल की अपना दल (एस) और संजय निषाद की निषाद पार्टी से हाथ मिला रखा है.

लोकसभा चुनाव के सातवें चरण में राबर्ट्सगंज की सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है तो बांसगांव अनुसूचित जाति के लिए. चंदौली, बलिया, गाजीपुर और देवरिया सीटों पर पिछड़ों में यादव मतदाता बड़ी संख्या में हैं तो सलेमपुर और कुशीनगर में मौर्य-कुशवाहा बिरादरी के खासे वोट हैं जबकि मिर्जापुर, महराजगंज में कुर्मी और निषाद मतदाताओं की अच्छी संख्या है. पूर्वांचल में पाई जाने वाली पिछड़ी जाति सैंथवार की भी अच्छी खासी संख्या कुशीनगर, देवरिया और सलेमपुर के साथ ही बांसगांव में है. घोसी और गाजीपुर में भूमिहार, राजभर और चौहान वोटर भी ठीक-ठाक हैं.

वाराणसी में जीत-हार का अंतर

पीएम नरेंद्र मोदी वाराणसी सीट से एक बार फिर चुनावी मैदान में है, जिनके सामने कांग्रेस से अजय राय और बसपा से अतहर लारी किस्मत आजमा रहे हैं. पिछले तीन दशक से 2004 को छोड़ दें तो हर बार बीजेपी अजेय रही है. 2014 से नरेंद्र मोदी एकतरफा चुनाव जीत रहे है है और जीत का अंतर भी बढ़ा है. इस बार कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय इंडिया गठबंधन के संयुक्त कैंडिडेट हैं, जिन्हें सपा से लेकर AAP तक का समर्थन है. अजय राय का अपना सियासी आधार भी वाराणसी में है और सपा के वोटबैंक मिलकर उन्हें इस बार अच्छा खासा वोट मिल सकता है. मोदी के खिलाफ दो लाख का आंकड़ा केजरीवाल ही पार कर सके थे, लेकिन इस बार उसे अजय राय क्रॉस कर सकते हैं.

गोरखपुर सीट पर योगी फैक्टर

गोरखपुर लोकसभा सीट पर सभी की निगाहें लगी हुई है. तीन दशक से बीजेपी का एकछत्र राज कायम है. 1989 से लेकर 2018 तक गोरखनाथ पीठ के पास यह सीट रही है, जिसमें सीएम योगी पांच पार सांसद रहे हैं. योगी आदित्यनाथ ने सीएम बनने के बाद सीट छोड़ी तो सपा जीतने में सफल रही, पर 2019 में उसे बीजेपी ने वापस छीन लिया. 2019 में भोजपुर अभिनेता रवि किशन शुक्ला सांसद चुने गए और बीजेपी ने फिर से उतारा है. सपा से काजल निषाद चुनावी मैदान में है. इस सीट पर सपा के सामने चुनौती योगी फैक्टर से पार पाने की है जो बीजेपी लिए अभेद्य रहा है, लेकिन निषाद वोटर अहम रोल में होने से विपक्ष की उम्मीदें टिकी हुई हैं.

घोसी सीट पर राजभर की परीक्षा

घोसी लोकसभा सीट पर 2019 में बसपा से अतुल राय जीतने में कामयाब रहे थे, लेकिन इस बार चुनावी मैदान में नहीं उतरे हैं. एनडीए गठबंधन में घोसी सीट ओम प्रकाश राजभर की पार्टी के खाते में गई हैं, जहां से उनके बेटे अरविंद राजभर चुनाव लड़ रहे हैं. सपा ने राजीव राय को उतारा है तो बसपा ने बालकृष्ण चौहान को उतारकर मुकाबले को त्रिकोणीय बना लिया है. ओम प्रकाश राजभर के सामने यहां मुश्किल लड़ाई है, क्योंकि भूमिहार से राजपूत वोटर तक राजीव राय के समर्थन में खड़े नजर आ रहे हैं. सपा प्रत्याशी होने के चलते यादव-मुस्लिम वोटर भी उनके साथ जुड़ा हुआ है. ऐसे में राजभर के लिए अपने बेटे को जिताने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है, लेकिन राजीव राय उनके लिए बाधा बने हुए हैं.

कुशीनगर की लड़ाई त्रिकोणीय बनी

कुशीनगर लोकसभा सीट का चुनाव जातीय के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. कुशीनगर सीट पर बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद विजय कुमार दुबे को उतारा है तो सपा ने बीजेपी के ही पूर्व विधायक जन्मेजय सिंह के बेटे अजय प्रताप सिंह को उतारा है, जो सैंथवार समुदाय से आते हैं. बसपा ने शुभ नारायण चौहान पर दांव लगाया है तो राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी से स्वामी प्रसाद मौर्य है. कुशीनगर के दिग्गज नेता आरपीएन सिंह अब बीजेपी खेमे में है, जो 2009 में कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने गए थे. इस बार कुशीनगर सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला होता नजर आ रहा है.

बलिया में पुराने चेहरों की नई लड़ाई

बलिया लोकसभा सीट पर सभी की निगाहें लगी हुई है. पूर्व पीएम चंद्रशेखर की परंपरागत सीट से उनके बेटे नीरज शेखर सपा से पाला बदलकर बीजेपी के टिकट पर चुनावी मैदान में है. 2019 में महज 15 हजार वोट से पिछड़ने वाले सपा सनातन पांडेय एक बार फिर से किस्मत आजमा रहे हैं. नीरज के सामने अपने पिता की विरासत को बचाए रखने की चुनौती है. पिछले दो चुनाव से बीजेपी यह सीट जीत रही है, लेकिन इस बार सपा के जाति समीकरण में सीट फंस गई है. बलिया का चुनाव ब्राह्मण बनाम राजपूत के इर्द-गिर्द सिमट गया है. सपा ने यादव-मुस्लिम के साथ ब्राह्मण वोटों की केमिस्ट्री बनाने की कवायद की है, जिसे नीरज शेखर अगर तोड़ने में कामयाब रहते हैं तो फिर संसद पहुंचने का रास्ता साफ हो जाएगा.

गाजीपुर में मुख्तार के भाई की परीक्षा

गाजीपुर लोकसभा सीट पर अफजाल अंसारी इस बार सपा के सिंबल पर चुनाव लड़ रहे हैं. बीजेपी से पारसनाथ राय और बसपा से उमेश सिंह चुनावी मैदान में है. गाजीपुर सीट पर चुनाव में मुद्दा अफजाल अंसारी के भाई पूर्व विधायक माफिया मुख्तार है, जिनकी 28 मार्च को बांदा जेल में निधन हो गया था. गाजीपुर लोकसभा सीट जीतने के लिए बीजेपी पूरी मशक्कत कर रही है, लेकिन मुख्तार फैक्टर हावी है. 2019 में अफजाल अंसारी ने बीजेपी के मनोज सिन्हा को 1.19 लाख वोटों से हराया था. गाजीपुर सीट का सियासी समीकरण बीजेपी के लिए चुनौती बना हुआ है, क्योंकि यादव-मुस्लिम वोटों के साथ दलित और अतिपिछड़ा वर्ग भी सपा के पक्ष में लामबंद नजर आ रहा है.

महेंद्र नाथ जीत की हैट्रिक लगा पाएंगे

चंदौली लोकसभा सीट पर केंद्रीय मंत्री महेंद्र नाथ पांडेय जीत की हैट्रिक लगाने के लिए उतरे हैं, लेकिन पिछले चुनाव में बहुत मामूली वोटों से जीत दर्ज किए थे. सपा ने इस बार चंदौली लोकसभा सीट पर ठाकुर चेहरे के तौर पर वीरेंद्र सिंह को उतारा है तो बसपा से सत्येंद्र मौर्य किस्मत आजमा रहे हैं. ऐसे में बीजेपी के लिए दोतरफा चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. एक तरफ बीजेपी का कोर वोटबैंक ठाकुर वोटों के छिटकने के खतरा है तो बसपा के प्रत्याशी के चलते मौर्य वोट में भी सेंधमारी दिख रही है. सपा ने इस सीट पर यादव-मुस्लिम-ठाकुर समीकरण बनाने की कवायद की है, जिसे महेंद्रनाथ पांडेय के लिए तोड़ना आसान नहीं है, लेकिन बीजेपी के कोर वोट और मोदी के नाम के भरोसे उम्मीद लगाए हुए हैं.

मिर्जापुर में अनुप्रिया पटेल का क्या होगा

मिर्जापुर लोकसभा सीट पर तीसरी बार अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल उतरी हैं, जिनके सामने सपा के रामेश चंद बिंद और बसपा मनीष तिवारी मैदान में है. बीजेपी से गठबंधन के चलते अनुप्रिया पटेल 2014 और 2019 में मिर्जापुर सीट से जीतने में कामयाब रही थी, लेकिन इस बार चुनाव में जिस तरह से उनके खिलाफ सपा ने मल्लाह दांव चला है, उससे सियासी राह काफी मुश्किल भरी हो गई है. ओबीसी बहुल मिर्जापुर सीट पर इस बार लड़ाई कद और जातीय गणित की ही है. अनुप्रिया पटेल अपने कुर्मी वोट और बीजेपी के कोर वोटबैंक के सहारे जीत की हैट्रिक लगाना चाहती है, सपा ने बिंद-यादव-मुस्लिम समीकरण बनाने का दांव चला है.

महाराजगंज में चौधरी बनाम चौधरी

महाराजगंज लोकसभा सीट पर इस बार चौधरी बनाम चौधरी की लड़ाई है. बीजेपी से केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी मैदान में है तो कांग्रेस से वीरेंद्र चौधरी और बसपा से मौसमे आलम चुनाव लड़ रहे हैं. पंकज चौधरी और वीरेंद्र चौधरी दोनों ही कुर्मी समुदाय से आते हैं. पंकज चौधरी लगातार इस सीट से जीत रहे हैं, लेकिन कांग्रेस ने इस बार कुर्मी दांव खेलकर उनकी राह में अड़चने डाल दिया है.

देवरिया में ठाकुर बनाम ब्राह्मण

देवरिया लोकसभा सीट ब्राह्मण बहुल मानी जाती है. बीजेपी से शशांकमणि त्रिपाठी मैदान में है तो कांग्रेस से अखिलेश सिंह और बसपा से संदेश यादव चुनाव लड़ रहे हैं. मोदी लहर में यह सीट बीजेपी पिछले दो चुनाव से जीत रही है, लेकिन इस बार कांग्रेस ने अखिलेश प्रताप सिंह को उतारकर ठाकुर बनाम ब्राह्मण के समीकरण बिछाने की कवायद की है. इसके अलावा यादव और मुस्लिम वोटर भी बड़ी संख्या में है, जिसके चलते देवरिया सीट लड़ाई रोचक है.

सलेमपुर में कुशवाहा लगाएंगे हैट्रिक

सलेमपुर लोकसभा सीट पर बीजेपी के रवींद्र कुशवाहा जीत की हैट्रिक लगाने के मूड से उतरे हैं, जिनके सामने सपा-कांग्रेस से शंकर राजभर और बसपा से भीम राजभर किस्मत आजमा रहे हैं. इस सीट पर कुशवाहा और राजभर वोटर बड़ी संख्या में है. सपा ने यादव-मुस्लिम-राजभर समीकरण बनाने की कवायद की है तो बीजेपी ने सवर्ण वोटों के साथ कुशवाहा समीकरण बनाने का दांव चला है तो बसपा राजभर-दलित के सहारे जीत की उम्मीद लगाए हुए हैं, लेकिन मुकाबला सपा बनाम बीजेपी होता दिख रहा है.

बांसगांव में लड़ाई रोचक हुई

बांसगांव लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. बांसगांव से बीजेपी के मौजूदा सांसद कमलेश पासवान चुनावी मैदान में है. बसपा से आए हुए संदल प्रसाद को कांग्रेस ने भरोसा जताया है. बसपा ने रामसमूझ सिंह को प्रत्याशी बनाया है. कमलेश पासवान दलित समुदाय के कद्दावर नेता माने जाते हैं, लेकिन इस बार जिस तरह से जातीय की बिसात पर चुनाव हो रहे हैं. इसके चलते बांसगांव की लड़ाई काफी रोचक हो गई है.

रॉबर्ट्सगंज सीट पर फंसा पेच

अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित रॉबर्ट्सगंज सीट पर अपना दल (एस) से रिंकी सिंह कोल चुनावी मैदान में है तो सपा से छोटे लाल खरवार और बसपा से धनेश्वर गौतम किस्मत आजमा रहे हैं. 2019 में अपना दल (एस) यह सीट जीतने में कामयाब रही थी, लेकिन बार मौजूदा सांसद का टिकट काटकक नए चेहरे पर दांव लगाया है, लेकिन जातीय के इर्द-गिर्द सिमटा चुनाव ने रिंकी कौल के लिए चुनौती खड़ी कर दी है.

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