latest-newsविविध

आंदोलन की कोख से निकली ‘आप’ का पतन उसके उत्थान से भी तेज हुआ

केजरीवाल ने 'काजल की कोठरी' में मैला होकर लोगों की उम्मीदों को तोड़ दिया

प्रघान संपादक विनीतकांत पाराशर का मत

जब सुप्रीम कोर्ट ने यह प्रतीति कराते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री एवं आम आदमी पार्टी (आप) के प्रमुख अरविंद केजरीवाल को चुनाव प्रचार के लिए 21 दिनों की जमानत दी थी कि वह उन्हें विशेष रियायत दे रहा है, तब केजरीवाल और उनके समर्थकों ने इसे अपनी जीत करार दिया था। यह स्वाभाविक भी था, क्योंकि इन दिनों जेल में बंद किसी नेता को जमानत मिल जाए तो वह अपने को विजेता घोषित कर देता है।

केजरीवाल के जमानत पर बाहर आते ही उनके उसी सरकारी आवास पर उनकी पार्टी की राज्यसभा सदस्य स्वाति मालीवाल की पिटाई का मामला सामने आ गया, जिसकी साज-सज्जा पर 45 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। इस मामले ने केजरीवाल की स्थिति सिर मुड़ाते ही ओले पड़ने जैसी कर दी। उनके लिए इस मामले से जुड़े सवालों का जवाब देना कितना मुश्किल है, इसे लखनऊ में अखिलेश यादव के साथ उनकी प्रेस कांफ्रेंस के समय उनकी भाव-भंगिमा से समझा जा सकता है।

चूंकि वह एक चतुर नेता हैं, इसलिए उन्होंने स्वाति मालीवाल की पिटाई के आरोपित अपने निजी सचिव विभव कुमार की गिरफ्तारी को इस रूप में पेश करना शुरू कर दिया कि मोदी सरकार उनकी पार्टी के सभी नेताओं को जेल में डालना चाहती है। यह दिखाने के लिए उन्होंने भाजपा कार्यालय तक मार्च निकालने की कोशिश की, लेकिन वह असरहीन ही रहा, क्योंकि दिल्ली और देश की जनता यह अच्छी तरह समझ रही है कि वह यह सब स्वाति मालीवाल प्रकरण में अपने निजी सचिव की लिप्तता से ध्यान हटाने के लिए कर रहे हैं।

केजरीवाल स्वाति मालीवाल मामले में कोई सीधी टिप्पणी करने से बच रहे हैं, लेकिन उनके साथियों ने स्वाति मालीवाल पर हमला बोल दिया है। वे सब मिलकर स्वाति को भाजपा का एजेंट करार देने में लगे हुए हैं। इस हास्यास्पद आरोप को इसके बावजूद हजम करना मुश्किल है कि भाजपा के छोटे-बड़े सभी नेता स्वाति मालीवाल प्रकरण को तूल देने में लगे हुए हैं। ऐसा हमेशा होता है। जब किसी दल के शासन वाले राज्य में महिला उत्पीड़न की कोई घटना सामने आती है तो विरोधी दल आसमान सिर पर उठाने के साथ उसे एक राजनीतिक मुद्दा बना लेते हैं और स्वयं को महिला हितैषी साबित करने में कोई और कसर नहीं उठा रखते। इस मामले में भाजपा ऐसा ही कर रही है और दूसरे दल या तो मौन साधे हुए हैं या फिर कामचलाऊ प्रतिक्रिया देकर कर्तव्य की इतिश्री करने में लगे हुए हैं।

यह भी सदैव होता है कि जब कोई नेता या उसका करीबी महिला उत्पीड़न के आरोपों से दो-चार होता है तो उस दल के नेतागण तो रक्षात्मक रवैया अपना लेते हैं, लेकिन विरोधी दल उसे महिला विरोधी साबित करने के लिए हरसंभव कोशिश करते हैं। प्रज्वल रेवन्ना मामले में ऐसा ही देखने को मिला। जो भी दल प्रज्वल को लेकर जनता दल-एस और भाजपा पर हमलावर थे, वे विभव कुमार और केजरीवाल पर मुंह खोलने से बच रहे हैं।

दरअसल अपने देश में महिला उत्पीड़न को लेकर जो भी गर्जन-तर्जन होता है, उसका उद्देश्य पीड़ित महिला को न्याय दिलाना कम, राजनीतिक लाभ उठाना अधिक होता है। यह रवैया सभी दलों का है। इसी कारण राजनीति में महिलाओं का प्रवेश और उनकी सक्रियता आसान नहीं है। उन्हें कदम-कदम पर मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। राजनीति उन्हीं महिलाओं के लिए आसान होती है, जो किसी राजनीतिक परिवार की सदस्य होती हैं। स्वाति मालीवाल प्रकरण क्या बता रहा है? केवल यही कि नई तरह की राजनीति और राजनीति को बदलने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी बिल्कुल अन्य दलों जैसी है।

इस पार्टी और एक व्यक्ति या परिवार वाली अन्य पार्टियों में कोई भेद नहीं। जैसे सत्ता में बने रहने और सत्ता पाने के लिए अन्य दल कुछ भी करने को तैयार रहते हैं, वैसे ही आम आदमी पार्टी भी। आम आदमी पार्टी भले ही राष्ट्रीय दल का दर्जा पा गई हो, लेकिन नई तरह की राजनीति करने का उसका दावा नितांत खोखला साबित हो चुका है। उसके तौर-तरीकों से यह भी साफ है कि देश की राजनीति बदलने का उसका कोई इरादा नहीं था।

केजरीवाल ने अपने अब तक के राजनीतिक जीवन में इतने अधिक यू-टर्न लिए हैं कि किसी के लिए यह जानना कठिन है कि वह अब किस राह पर हैं? जिन दलों को केजरीवाल और उनके साथी पानी पी-पीकर कोसते थे और परिवारवादी एवं भ्रष्ट बताते थे, उन्हें आज वे बिना किसी संकोच गले लगाए हुए हैं। अब तो केजरीवाल पत्नी सुनीता केजरीवाल को झांसी की रानी कहकर राजनीति में भी उतार चुके हैं। वह सबको यह स्पष्ट संदेश दे रहे हैं कि वही उनकी वैसी ही उत्तराधिकारी हैं, जैसे राबड़ी देवी लालू यादव की बनी थीं।

भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से उपजी आम आदमी पार्टी आज भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरी है। उसके कई नेता जेल में है। केजरीवाल की मानें तो शराब घोटाला नितांत फर्जी है, लेकिन समझना कठिन है कि यदि यह घोटाला फर्जी है तो फिर जिस शराब नीति को केजरीवाल ने सर्वश्रेष्ठ शराब नीति बताया था, उसे वापस क्यों लिया? भ्रष्टाचार से लड़ने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी देश का पहला ऐसा दल बन गई है, जिसे भ्रष्टाचार में लिप्त होने के कारण आरोपित किया गया है। कोई पूछ सकता है कि है स्वाति मालीवाल का क्या होगा? उनका वही होगा जो प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, आनंद कुमार, कुमार विश्वास, शाजिया इल्मी, आशुतोष, मयंक गांधी, मुनीश रायजादा समेत केजरीवाल के न जाने कितने साथियों का हुआ। ये सब या तो निकाले गए या निकल गए या फिर खुद को ठगा महसूस कर किनारे हो गए।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
WP2Social Auto Publish Powered By : XYZScripts.com