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इस चुनाव में ‘एम वाई’ के मोह-जाल से क्यों बाहर निकली समाजवादी पार्टी

भाजपा के समीकरण बिगाड़ने और बसपा को समेटने के लिए वंचित समाज को टिकट देकर अखिलेश ने खेला है मास्टर स्ट्रोक

सुनील वर्मा

लखनऊ। मुस्लिम, यादव (एमवाई) समीकरण के जरिए उत्तर प्रदेश की सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने वाली समाजवादी पार्टी ने बदले राजनीतिक हालात को देखते हुए अपनी रणनीति बदल ली है। धर्म व जाति के खांचों में बंटी प्रदेश की राजनीति में इस बार सपा ने ‘एमवाई’ के मोहजाल से बाहर निकल कर गैर यादव पिछड़ी जातियों पर फोकस बढ़ाया है। कुर्मी के साथ ही मौर्य-शाक्य-सैनी-कुशवाहा जातियों को खूब टिकट दिए हैं।

सपा की नजर दलित वोटबैंक पर भी है। यही कारण है कि इस बार उसने पासी व जाटव दोनों बिरादरी के प्रत्याशियों को पिछले बार की तुलना में काफी अधिक टिकट दिए हैं। एक समय था, जब उत्तर प्रदेश की राजनीति में सपा का ‘एमवाई’ समीकरण हिट हो गया था, किंतु आज राजनीतिक हालात बदल गए हैं। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव इसे समझते हुए अब नई जातीय गोलबंदी में जुटे हैं।

इस बार प्रदेश में सपा व कांग्रेस मिलकर आईएनडीआईए गठबंधन के तहत चुनाव लड़ रहे हैं। सपा प्रदेश की 62, कांग्रेस 17 व तृणमूल कांग्रेस एक सीट पर चुनाव लड़ रही है। सपा अब तक 61 उम्मीदवार घोषित कर चुकी है। अब उसे केवल राबर्ट्सगंज का प्रत्याशी घोषित करना बाकी है। यह सुरक्षित सीट है। सपा ने इस बार सर्वाधिक 10 टिकट कुर्मी व पटेल बिरादरी को दिए हैं।

वर्ष 2019 के चुनाव में सपा 37 सीटों पर लड़ी थी और उसने केवल तीन टिकट इस बिरादरी को दिए गए थे। यूं तो सपा अपने गठन के समय से ही कुर्मी समाज को साथ लेकर चलती रही है। मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी बेनी प्रसाद वर्मा पार्टी में कुर्मियों के बड़े नेता थे। पिछले कुछ समय से पार्टी में कुर्मी नेताओं को कम टिकट मिल रहे थे। सपा ने इस बार फिर कुर्मी बिरादरी को साधने के लिए पिछड़ी जातियों में सबसे अधिक टिकट उन्हें ही दिए हैं।
पीडीए की रणनीति

‘पीडीए’ रणनीति पर आगे बढ़ रही सपा ने इस बार 16 प्रत्याशी दलित उतारे हैं। राबर्ट्सगंज का टिकट आने के बाद यह संख्या 17 हो जाएगी। मेरठ से पूर्व मेयर सुनीता वर्मा मैदान में हैं, जबकि अयोध्या से अवधेश प्रसाद को टिकट दिया है। सपा ने इस बार छह जाटव नेताओं को भी टिकट दिया है। जाटव बसपा के कोर वोटबैंक माने जाते हैं। सपा ने अपने मजबूत वोट बैंक ‘एमवाई’ के प्रत्याशियों को भी कम टिकट दिए हैं।

पार्टी ने इस बार केवल पांच यादव व चार मुस्लिमों को टिकट दिए हैं। सपा ने इस बार परिवार के बाहर एक भी यादव को टिकट नहीं दिया है। पिछले चुनाव में 37 सीटों में से 10 यादवों को टिकट दिए गए थे। हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण रोकने को सपा ने मुस्लिम आबादी वाली सीटों पर हिंदू उम्मीदवार उतारे हैं। गैर यादव पिछड़ी जातियों में इस बार सपा ने निषाद व बिंद समाज के तीन प्रत्याशियों को भी टिकट दिया है।

इन समुदायों को भी दिया टिकट

जाट, गुर्जर, राजभर, पाल व लोधी समुदाय से एक-एक टिकट दिया गया है। पाल समाज को साधने के लिए ही इस बार प्रयागराज निवासी श्याम लाल पाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। सपा ने बागपत, कैसरगंज, डुमरियागंज व बलिया में ब्राह्मण उम्मीदवारों को टिकट दिया है। धौरहरा व चंदौली में क्षत्रिय प्रत्याशियों को उतारा है।

तीन चरणों के चुनाव के बाद अब बची 54 सीटों पर सपा की नजर पूरी तरह वंचित मतदाताओं पर टिक गई है। सपा खास तौर पर बसपा के मूल वोटरों को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि बसपा व भाजपा मिलीभगत कर चुनाव लड़ रहे हैं। सपा यह भी संदेश दे रही है कि यदि भाजपा फिर से केंद्र में आ गई तो संविधान बदलकर वंचितों व पिछड़ों का आरक्षण खत्म कर देगी। चुनाव प्रचार में सपा व कांग्रेस संविधान बचाने के लिए विपक्षी गठबंधन आइएनडीआइए को वोट देने के अभियान को तेज कर दिया है।

सपा का फोकस वंचित मतदाताओं पर

अब प्रदेश के बचे चार चरणों के रण में 42 सीटों पर सपा, 11 पर कांग्रेस व एक सीट पर तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशी मैदान में हैं। ‘पीडीए’ (पिछड़ा, वंचित, अल्पसंख्यक) की रणनीति पर चल रही सपा ने अब अपना फोकस वंचित मतदाताओं पर कर लिया है। इसमें भी मायावती के कोर मतदाता जाटव पर उसकी नजर है। सपा व कांग्रेस यह संदेश देगी कि बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर का संविधान भाजपा खत्म करना चाहती है, यदि ऐसा हुआ तो उनके सारे अधिकार खत्म हो जाएंगे।

इसी रणनीति पर चलते हुए शुक्रवार को अखिलेश यादव व राहुल गांधी ने कन्नौज की जनसभा में कहा था कि भाजपा आरक्षण खत्म करना चाहती है। सपा मुखिया बोले…‘ये लोग हमारे आपके संविधान के पीछे पड़ गए हैं।’ उन्होंने संविधान बचाओ का नारा भी दिया। जनसभाओं में आइएनडीआइए गठबंधन के नेता यह भी समझा रहे हैं कि भाजपा संविधान बदलकर वोट का अधिकार छीन लेगी, इसलिए अपने वोट और आरक्षण को बचाने के लिए भाजपा को हटाना होगा। ये नारा दलित समाज के वोटर को गठबंधन की तरफ जबरदस्त ढंग से आकृषित कर रहा है।

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