संवाददाता
नई दिल्ली । एक कहावत है कि अब पछताय होत का जब चिड़िया चुग गई खेत। उपराष्ट्रपति की मिमिक्री से जुड़े विवाद पर विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. के लिए ये बात सच साबित होती दिख र.ही है. संसद की सुरक्षा में सेंध का मुद्दा विपक्ष के लिए बड़ा मौका था। पूरे सत्र के लिए सांसदों के थोक में निलंबन के मुद्दे पर विपक्ष के पास मौका था. मौका था इस मौके को जनता की सहानुभूति के लिए भुनाने का. लेकिन विपक्ष की एक गलती और उसके हाथ से ये मौके फिसल गए. बीजेपी आक्रामक हो फ्रंट फुट पर आ गई. निलंबन के खिलाफ संसद परिसर में विपक्षी सांसद प्रदर्शन कर रहे थे और टीएमसी एमपी कल्याण बनर्जी ने राज्यसभा सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की मिमिक्री कर दी. मजाक उड़ाने के अंदाज में मिमिक्री. राहुल गांधी भी वीडियो बना रहे थे. तमाम विपक्षी सांसद मिमिक्री का लुत्फ उठाते दिख रहे थे. फिर क्या था। बीजेपी ने मुद्दे को ऐसे लपका कि अब विपक्ष डैमेज कंट्रोल मोड में है. कल्याण बनर्जी सफाई देते फिर रहे हैं. ममता बनर्जी अपने सांसद के बजाय राहुल गांधी पर ठीकरा फोड़ती दिख रही हैं. मल्लिकार्जुन खरगे पूरे मामले में जाति को न लाने की दुहाई दे रहे हैं. इस मामले को बीजेपी ने उपराष्ट्रपति का उपहास के साथ-साथ ओबीसी नेता के अपमान के साथ जोड़ दिया. यहां तक कि खुद उपराष्ट्रपति धनखड़ ने अपनी जाति और किसानों का अपमान बता दिया. दरअसल, जगदीप धनखड़ जाट समुदाय से आते हैं.
उपराष्ट्रपति का कहना है कि उन्हें अपनी कोई परवाह नहीं है. इस तरह का अपमान वह बर्दाश्त कर सकते हैं. उन्होंने निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी जाति, उनकी पृष्ठभूमि और कुर्सी का अपमान किया गया. वहीं, संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी का कहना है कि कांग्रेस ओबीसी नेताओं का अपमान हमेशा करती आई है. उनका इशारा राहुल गांधी की तरफ था.
‘क्या इस तरह जाटों का मखौल उड़ाना सही?’
वहीं, बीजेपी नेता संबित पात्रा का कहना है कि उपराष्ट्रपति का मजाक उड़ाया जा रहा है. क्या कोई अपने माता-पिता के झुके कंधों पर मजाक उड़ाया है? जाटों के कंधों का उपहास उड़ाना मजाक है क्या? मिमिक्री करने की कोशिश करना कभी माफ नहीं होगा. वह भूपेंद्र सिंह हुड्डा और रणदीप सुरजेवाला से पूछना चाहते हैं क्या इस तरह जाटों का मखौल उड़ाना सही है? पात्रा के बयान से साफ दिखने लग गया है कि बीजेपी जाट समुदाय के मसले पर बैकफुट पर नहीं जाने वाली है.
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की मिमिक्री को लेकर जाट समाज खासा नाराज दिखाई दे रहा है. उसने दिल्ली में उपराष्ट्रपति के समर्थन में और टीएमसी सांसद के विरोध में प्रदर्शन किया है. यही नहीं, द जाट एसोसिएशन ने कांग्रेस को परिणाम भुगतने की चेतावनी तक दे डाली है. जाट एसोसिएशन का कहना है कांग्रेस की ओर से देश के उपराष्ट्रपति और जाट समाज के गौरव जगदीप धनखड़ की खिल्ली उड़ाई गई है. इस खिल्ली का जवाब जाट समाज आने वाले लोकसभा में जरूर देगा.
इसके अलावा किसान और जाट समुदाय ने अलग-अलग गांव और खापों के प्रधानों व अध्यक्ष की दिल्ली के द्वारका में मीटिंग बुलाई है. ये मीटिंग 24 दिसंबर को होनी है. मीटिंग में आगे विरोध की रूप रेखा तैयार की जाएगी. उनका कहना है कि कल्याण बनर्जी को कुछ दिनों का समय दिया जाएगा. अगर वह माफी नहीं मांगते हैं तो उनके घर के आगे किसानों को बुलाकर महापंचायत की जाएगी.
कहीं जाटों का कांग्रेस से न हो जाए मोहभंग?
दरअसल, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली में जाट समुदाय का बोलबाला रहा है. इस समुदाय का लोकसभा की 40 सीटों पर असर दिखाई देता है और वह विधानसभाओं की 160 सीटों पर उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करता है. हरियाणा में भी 2024 में चुनाव हैं. यहां विधानसभा की 37 सीटें और लोकसभा की 10 सीटें जाट बाहुल हैं. ऐसे में जाट समुदाय का कांग्रेस से मोहभंग हुआ तो उसे बड़ा नुकसान हो सकता है क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान जाट वोट बीजेपी से खिसक गया था और ये कांग्रेस, इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी) और जेजेपी की झोली में गया था.
जाट समुदाय पश्चिमी उत्तर प्रदेश में करीब 12 लोकसभा सीटों पर अपना प्रभाव रखता है. हालांकि सूबे के अन्य भाग में असर देखने को नहीं मिलता है. अगर राजस्थान की बात करें तो उपराष्ट्रपति सूबे के झुंझुनूं जिले से आते हैं. यहां जाट समुदाय का दबदबा है. दिलचस्प बात ये है कि इस इलाके में कांग्रेस मजबूत मानी जाती है. अगर जाट समुदाय उसके खिलाफ गया तो पार्टी को दूसरा बड़ा धक्का लगेगा क्योंकि उसे अभी हाल ही में विधानसभा चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा है. बीजेपी इस मुद्दे को भुना सकती है और उसे लोकसभा के चुनाव में फायदा भी हो सकता है.
पंजाब में जाटों कांग्रेस का बिगाड़ सकते हैं खेल
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में जाटों की संख्या ज्यादा नहीं है, लेकिन वह निर्णायक भूमिका अदा करते आए हैं. उनकी संख्या करीब तीन फीसदी है और इस समुदाय का झुकाव बीजेपी की तरफ रहा है. बीजेपी पिछले दो लोकसभा चुनावों से राष्ट्रीय राजधानी की सभी सातों सीटों पर जीत दर्ज करती आई है, जिसमें जाट समुदाय ने उसे खुलकर वोट किया है. वहीं, पंजाब में भी जाटों की संख्या 25 से 30 फीसदी बताई जाती रही है. कांग्रेस यहां अभी सत्ता से बाहर है. वह आम आदमी पार्टी से बुरी तरह हारी थी. पार्टी दोबारा अपनी जमीन तलाशने में जुटी हुई है.