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क्या यूपी में काबिल आईएएस अफसरों का पड़ गया है अकाल

धर्मेन्द्र पांडे

गाजियाबाद। ऐसा लगता है कि या तो उत्तर प्रदेश की नौकरशाही में कोई नौकरशाह नहीं है या आईएएस राकेश कुमार सिंह को गाजियाबाद से इतना प्यार है कि वे इस जिले को अपनी स्थाई कर्मभूमि बनाकर यहीं जमे रहना चाहते हैं। ये सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि ढाई साल से वेस्ट यूपी के सबसे मलाईदार जिले गाजियाबाद जिले में जिलाधिकारी पद पर तैनात राकेश कुमार सिंह, काली कमाई का हाथी कहे जाने वाले गाजियाबाद विकास प्राधिकरण में डेढ़ साल से उपाध्यक्ष का अस्थाई पद भी संभाल रहे हैं। राकेश कुमार सिंह शायद यूपी के इकलौते आईएएस है जो एक ही जिले लंबे समय तक दो महत्वपूर्ण पद संभाल रहे हैं।

अब तक महत्वपूर्ण जिलों में मलाईदार पदों पर रही है नियुक्ति

बता दें कि करीब ढाई साल पहले 5 जून 2021 को जिलाधिकारी डॉ. अजय शंकर पांडे के स्थान पर मुरादाबाद के डीएम राकेश कुमार सिंह को गाजियाबाद डीएम के रूप में नियुक्त किया था।
1994 में पीसीएस होने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार की सेवा में आए राकेश कुमार सिंह मूलरूप से फैजाबाद वर्तमान में अयोध्या के रहने वाले है। आर के सिंह वर्ष 2010 में आईएएस के रूप में पदोन्नत हुए। गाजियाबाद में डीएम के पद पर नियुक्ति से पहले वे इसी शहर में सिटी मैजिस्ट्रेट और 2017 में नगर आयुक्त के रूप में तैनात रह चुके हैं।

वह यमुना एक्सप्रेसवे इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी के अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी भी रहे हैं। मुरादाबाद विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष रहे हैं। मुरादाबाद नगर निगम के नगर आयुक्त और डीएम के पदों पर नियुक्ति के साथ वे हापुड़ प्राधिकरण के वीसी और लखनऊ में नगर आयुक्त के पद पर तैनात रह चुके हैं। आर के सिंह की नियुक्तियों से साफ है कि आईएएस पर पदोन्नति के बाद से ही महत्वपूर्ण जिलों में मलाइदार पदों पर नियुक्ति रहीं है।

आरके सिंह जनपद में सिटी मैजिस्ट्रेट और नगर आयुक्त रह चुके हैं। इस नाते गाजियाबाद के नेताओं, व्यवसाईयों और सामजसेवियों से उनका पुराना गहरा नाता है।

गाजियाबाद में डेढ़ साल से दो महत्वपूर्ण पदों पर है राकेश कुमार सिंह की तैनाती

7 जून 2022 को उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में प्रशासनिक फेरबदल किया के तहत 21 आईएएस अफसरों के तबादले किए थे जिसमेंं गाजियाबाद जिला भी प्रभावित हुआ। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष कृष्णा करुणेश का तबादला कर दिया गया। गाजियाबाद के जिलाधिकारी आर के सिंह को जीडीए वीसी के पद की अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी गई।

बता दें कि गाजियाबाद में आईएएस कैडर के लिए दो महत्वपूर्ण पद जिलाधिकारी और गाजियाबाद विकास प्राधिकरण का उपाध्यक्ष हैं। लेकिन इसके बावजूद डेढ साल से दोनों महत्वपूर्ण पदों पर एक ही अधिकारी की नियुक्त से साफ है कि या तो गाजियाबाद में जीडीए वीसी के लिए कोई यूपी सरकार के पास कोई काबिल आईएएस नहीं है। लोग दबी जबान ये भी कह रहे हैं कि गाजियाबाद डीएम राकेश कुमार सिंह की लखनऊ स्थित सत्ता के गलियारे में गहरी पैठ है संभवत: इसीलिए वे जिले में सबसे महत्वपूर्ण दोनों पदों पर लंबे समय से जमे हुए है। वैसे उनकी दूसरे पद पर लंबे समय से चली आ रही नियुक्ति अस्थाई पद पर नियुक्ति की नीति पर भी सवाल खड़ा करती है।

प्राधिकरण का नया मास्टर प्लान 2031 को अंतिम रूप पिछले जीडीए वीसी के कार्यकाल में ही दिया गया था। इसे गाजियाबाद डीएम आरके सिंह के उपर काम का बोझ ही कहा जाएगा कि मास्टर प्लान में इतनी खामियां पाई गई कि बोर्ड की बैठक में उस पर कई आपत्तियां लगी थी। दरअसल, गाजियाबाद में जिला प्रशासन से लेकर जीडीए में काम का इतना दबाव है कि एक ही अधिकारी के लिए दोनों पदों का संचालन करना बेहद मुश्किल काम है।

जीडीए में कर्मचारियों और दलालों की सांठगांठ पर नहीं लग रही रोक

जीडीए वीसी के रूप में आर के सिंह पर अतिरिक्त काम का दबाव ही कहा जाएगा कि जीडीए में कुछ समय से भ्रष्टाचार चरम पर है। प्राधिकरण में कर्मचारियों-दलालों की सांठगांठ से भ्रष्टचार जमकर फल-फूल रहा है। पिछले दिनों भ्रष्टाचार के दो बड़े मामले सामने आए थे। हाल में दो ताजा मामले सामने आए, जिसमें प्राधिकरण कर्मचारियों के पास बैठे दलालों ने आवंटियों से रिश्वत मांगी।

पिछले दिनों महिला आवंटी तन्विता मिश्रा काम से हरीश सारस्वत बाबू के पास आई थीं। बातचीत के बाद बाबू ने उन्हें प्रक्रिया बता दी। इसके बाद भूपेंद्र नामक बाहरी शख्स जो जीडीए के बाबू के पास बैठा था। वह महिला के पास पहुंचा और काम कराने के नाम पर पांच हजार रुपये की मांग की। महिला ने जीडीए सचिव से शिकायत की। इसी तरह जीडीए कर्मचारियों के पास बैठे ललित जोशी नामक बाहरी शख्स ने प्राधिकरण में काम कराने के लिए आए युवक से 10 हजार रुपये की रिश्वत मांगी। युवक ने जीडीए सचिव से शिकायत की। इन दोनों शिकायतों से साफ है कि जीडीए के कर्मचारियों के दलाल जीडीए में सक्रिय रहते हैं जो वहां काम के लिए आने वाले लोगों से काम कराने के एवज में रिश्वत मांगते हैं। जीडीए के अस्थाई वीसी संभवत: काम के दबाव के चलते दलालों के नेटवर्क को तोड़ नहीं पा रहे हैं।

गाजियाबाद विकास प्राधिकरण का गठन 1974 में हुआ था। तभी से जीडीए में भ्रष्टाचार लगातार जारी है। कई अधिकारी आए भ्रष्टाचार रोकने के बड़े-बड़े दावे किए और चले गए। लेकिन, अधिकारी और दलालों के गठजोड़ को कोई नहीं तोड़ पाया। जीडीए के गठन से अब तक 49 वर्षों में तीन प्रशासक और 35 उपाध्यक्ष तैनात रहे, लेकिन रिश्वत लेने देने का यह खेल बदस्तूर जारी है। भ्रष्टाचार में पकड़े जाने पर चेतावनी देकर छोड़ देने की रवायत चली आ रही है। कई बड़े घोटाले सामने आए लेकिन सभी काे ढक देने की कला में पारंगत यहां के अधिकारी कुछ न कुछ रास्ता निकाल ही लेते हैंत्र

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