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जीडीए ने 5 करोड खर्चे पर नहीं हो सका आडीसी का कायापलट

विशेष संवाददाता

गाजियाबाद। गाजियाबाद जिले का कनॉट प्लेस कहे जाने वाले आरडीसी में जीडीए ने भले ही पांच करोड़ खर्च करके व्हीकल फ्री जोन बना दिया है लेकिन हकीकत ये है कि यहां यातायात व्यवस्था की स्थिति बदतर है।

सबसे बड़ा शॉपिंग हब जीडीए की अदूरदर्शिता से हो गया बदहाल

आरडीसी जिले का मुख्य व्यवसायिक केंद्र बन चुका है। मॉल, शोरूम, रेस्टोरेंट, होटल, शॉपिग्ां कांप्लेक्स, बैंक व नामचीन कंपनियों के आउटलेट होने के कारण यहां लोगों की आवा जाही अधिक रहती है। इसके साथ ही पास में कलक्ट्रेट, बिजली दफ्तर, कचहरी होने के कारण बड़ी संख्या में लोग यहां आते हैं। इस कारण आरडीसी के मार्गों पर वाहनों का अत्यधिक दबाव है। इसके साथ ही दुर्गा टावर, सुमंगलम, अंसल, सुमेधा, शिवम टावर बिल्डिंग में करीब 400 दफ्तर भी शामिल हैं। आरडीसी में अधिकांश मार्गों पर कार रिपेयर करने वालों व सेल परचेज वालों के भी कब्जे है।

जो स्थान जीडीए ने पार्किंग के लिए छोड़े, उस पर सेल परचेज वालों के कब्जे हो गए। इसके चलते आरडीसी में आने वाले लोगों को वाहन खड़ा करने की जगह नहीं मिलती। मजबूरी में लोग सड़कों पर वाहन खड़ा करते जिससे और जाम की स्थिति बनी रहती थी। प्रतिदिन यहां यही हाल है। इसके साथ ही सड़कों किनारे रेहड़ी पटरी वालों का कब्जों के कारण लोगों को पार्किंग की जगह नहीं मिल पाती जिसके चलते लोग आरडीसी का रूख नहीं करते और अन्य बाजारों में चले जाते हैं।

इन तमाम परेशानियों को देखते हुए गाजियाबाद जिले में इस सबसे बड़े व्यावसायिक हब आरडीसी में जीडीए ने पांच करोड़ की लागत से व्हीकल फ्री जोन बनाया था। लेकिन बनने के बाद से ही ये बदहाल पड़ा है। जाहिर है इसे बनाने में जीडीए ने दूरदर्शिता नहीं बरती।
व्हीकल फ्री जोन में लगाई गईं बैंच टूटने के साथ ही लगाई गईं आकर्षक लाइटें खराब हो चुकी हैं। शाम होते ही पूरे जोन में अंधेरा पसर जाता है। जोन में लगाया गया फव्वारा लंबे समय से चोक पड़ा है, उसे ठीक कराने की किसी ने सुध नहीं ली। व्हीकल फ्री जोन में लगाए गए क्योस्क भी क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। यह सभी व्हीकल फ्री जोन के निर्माण में हुए कमीशनखोरी के खेल को उजागर कर रहे हैं।

व्हीकल फ्री जोन बनाकर जीडीए ने बहाए पैसे

राजनगर में रहने वाले लोग अब खुलकर कह रहे हैं कि व्हीकल फ्री जोन बनाकर जीडीए ने पांच करोड़ रुपये पानी में बहाने का काम किया। कमीशनखोरी के लिए इतनी बड़ी धनराशि बेकार कर दी गई। शहर की शान बनने के बजाए व्हीकल फ्री जोन बदनुमा दाग बनकर रह गया है।

आरडीसी में वाहनों का दबाव कम करने व प्रदूषण की रोकथाम के मद्देनजर जीडीए ने वर्ष 2018 में व्हीकल फ्री जोन का निर्माण कराया गया था, लेकिन व्हीकल फ्री जोन बनने के बाद ही बदहाल है। जोन का निर्माण जीडीए उपाध्यक्ष कंचन वर्मा, सचिव संतोष राय व मुख्य अभियंता विवेकानंद सिंह के कार्यकाल में हुआ था।

शराबियों व असामाजिक तत्वों का अड्डा बन गया है क्षेत्र

आरडीसी के व्हीकल फ्री जोन में अक्सर लाइटें खराब रहती हैं जिस कारण दिन ढलते ही व्हीकल फ्री जोन में अंधेरा छा जाता है। जिस कारण यह शराबियों व असामाजिक तत्वों का अड्डा बनकर रह गया है। लोग यहां जाने से कतराते हैं। अक्सर अंधेरे में फब्तियां कसने और छेड़छाड़ की घटनाएं सामने आती ही रहती हैं। शराबियों को जमावड़ा तो यहां हर दिन की बात है। व्हीकल फ्री जोन की सफाई व प्रकाश व्यवस्था और सुंदरीकरण के लिए टेंडर तो किया गया है लेकिन व्हीकल फ्री जोन में जब लोग जाते ही नहीं तो उसका भी कोई फायदा नहीं हो रहा।

जीडीए अधिकारियों की अदूरदर्शिता के कारण शहर का मुख्य व्यावसायिक केंद्र आरडीसी पिछले तीन सालों से गुलजार नहीं हो सका। जीडीए ने कई बार व्हीकल फ्री-जोन के क्योस्क की नीलामी प्रक्रिया आयोजित की, लेकिन कम बोली के कारण प्रक्रिया को निरस्त करना पड़ा। नीलामी में महंगी दरों का हवाला देते हुए लोग खाने-पीने और खरीदारी से जुड़े बनाए गए 10 बड़े क्योस्क को लेने को तैयार नहीं है।

सालाना 25 लाख से ज्यादा का हाे रहा नुकसान

जीडीए के तमाम प्रयासों के बावजूद क्योस्क का आवंटन अब तक नहीं हो पाया है। क्योस्क से प्राधिकरण को सालाना 20 लाख से अधिक की आय होनी थी। दूसरी ओर व्हीकल फ्री जोन व क्योस्क का संचालन का जिम्मा लेने वाली एजेंसी को ही पूरे क्षेत्र का मेंटेनेंस और बिजली का खर्च भरना था। ऐसे में रखरखाव खर्च को अगर मिला दें तो जीडीए को करीब 25 लाख का अब तक नुकसान हुआ है। व्हीकल फ्री जोन में सफाई सहित अन्य सुविधाओं का हाल बेहाल है। दिसंबर 2020 में 59 लाख में क्योस्क का आवंटन हासिल करने वाले ठेकेदार रविंद्र झा की अप्रैल में कोरोना से मौत हो गई थी। तब से लेकर अब तक नए सिरे से क्योस्क व जोन का आवंटन नहीं हो सका है।

आरडीसी का मुख्यमार्ग जाम से रहता है बेहाल

व्हीकल फ्री जोन होंने के बावजूद आरडीसी का मुख्यमार्ग सप्ताह के हर कार्यदिवस में जाम के झाम से जूझता रहता हैं। क्योंकि कचहरी औा्र कलेक्ट्रेट के आने वाले हजारो लोगों और अधिवक्ता पार्किंग का पैसा देने से बचने के लिए जहां तहां सड़कों पर दुकानों के सामने कालोनियों के बाहर गाडियां खडी कर देते हैं। पुलिस फसाद से बचने के लिए कार्रवाई करने से डरती है। आरडीसी जिले का ऐसा क्षेत्र हैं जहां शहर के बड़े रईसों के अलावा राजनीतिज्ञों और अधिकारियों के आवास है। पिछले डेढ साल से जीडीए के वर्तमान वीसी राकेश कुमार सिंह जो जिलाधिकारी के पद पर भी है उन्होंने शायद ही आरडीसी के व्हीकल फ्री जोन की बदहाली कह तरफ देखा होगा क्योंकि इसकी बदहाली के किस्से आए दिन समाचार पत्रों की सुर्खिया बनते हैं लेकिन जीडीए प्रशासन ने कान में रूई लगा ली है।

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