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विधानसभा चुनावों के दौरान ओबीसी पर अपने ‘नारे’ से पीछे क्यों हट गए राहुल गांधी?

संवाददाता

नई दिल्ली। कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी विधानसभा चुनावों के दौरान अभी भी जातिगत जनगणना को बड़े चुनावी एजेंडे के तौर पर पेश कर रहे हैं। लेकिन, राहुल ने अब ‘जितनी आबादी, उतना हक’ वाले अपने नारे पर पहले की तरह जोर देना बंद कर दिया है।

एक समय ऐसा लग रहा था कि राहुल के कमान वाली कांग्रेस ‘जितनी आबादी, उतना हक’ वाले नारे को ही पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों से लेकर 2024 के लोकसभा चुनावों तक अपने सबसे बड़े हथियार के तौर पर इस्तेमाल करेगी। एक बीएसपी नेता को भी यह बात खटकी थी और उसने कांग्रेस पर पार्टी संस्थापक कांशीराम का ‘नारा’ उठा लेने का आरोप लगाया था।

‘जितनी आबादी, उतना हक’ वाले नारे पर जोर देना बंद किया कांग्रेस के कुछ नेताओं का कहना है कि ‘जितनी आबादी, उतना हक’ वाले नारे का जोश 9 अक्टूबर को हुई कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक के बाद से ठंडा पड़ गया है। इसके बाद से राहुल ने चुनाव प्रचार के दौरान इसपर जोर देना बंद कर दिया है। हालांकि, वे जातिगत जनगणना की बात को अभी भी खूब जोर-शोर से उठा रहे हैं।

पीएम मोदी ने कांग्रेस पर उठाने शुरू किए थे सवाल पिछली बार राहुल ने इस नारे का इस्तेमाल 2 अक्टूबर को बिहार में जातिगत जनगणना की रिपोर्ट जारी होने के बाद एक्स (ट्विटर) पर किया था। लेकिन, अगले ही दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की रैलियों में कहा था कि कांग्रेस जनसंख्या के आधार पर अधिकारों की बात कर रही है। इससे अल्पसंख्यकों और दक्षिण भारतीय राज्यों को नुकसान हो सकता है।

सिंघवी ने विरोध करने के बाद ट्वीट डिलीट कर दिया था

कांग्रेस के अंदर ही इस नारे का सबसे पहला और कड़ा विरोध अभिषेक मनु सिंघवी की ओर से किया गया था। जिनके मुताबिक इससे ‘बहुसंख्यकवाद’ को बढ़ावा मिलेगा। हालांकि, फिर अचानक ही उन्होंने ‘संदिग्ध’ परिस्थितियों में अपना ट्वीट डिलीट कर दिया था। सीडब्ल्यूसी में भी पार्टी को आगाह किए जाने की बात जानकारी के मुताबिक सीडब्ल्यूसी में कुछ नेताओं ने इस तरह के नारे के प्रति पार्टी का आगाह किया था और कहा था कि इससे दक्षिण भारत में पार्टी को दिक्कत हो सकती है। खासकर तेलंगाना में जहां अभी चुनाव हो रहे हैं और कांग्रेस की स्थिति में सुधार बताया जा रहा है।

दलित सदस्यों की ओर से भी जताई गई थी असहमति

जानकारी के मुताबिक पार्टी के अंदर यह मुद्दा भी उठा कि इससे बाजेपी को धार्मिक आधार पर इसी तरह का नारा गढ़ने का मौका मिल सकता है। यही नहीं कुछ दलित सदस्यों की ओर से भी यह आशंका जताई गई कि एक तो इससे जाति व्यवस्था खत्म होने की जगह वर्ण-व्यवस्था को संस्थागत करने की स्थिति पैदा हो सकती है। वहीं आबादी और सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक तौर पर सक्षम ओबीसी जातियों का दलितों और आदिवासियों पर दबदबा और बढ़ जाएगा और उनके हितों को नुकसान होने लगेगा। शायद यही वजह है कि सीडब्ल्यूसी के बाद प्रेस से बात करते हुए राहुल ने जातिगत जनगणना की तो बात की, लेकिन ‘जितनी आबादी, उतना हक’ वाला नारा दोहराने से परहेज किया।

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, ‘कुछ सदस्यों की ओर से चिंता जताए जाने के बाद राहुलजी ने सीडब्ल्यूसी में संकेत दिया कि वे ‘जितनी आबादी, उतना हक’ वाले नारे पर जोर नहीं देने जा रहे हैं। उसके बाद जिस तरह से यह नारा ठंडा है, वह उसी का असर है….

कांग्रेस ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए पिछले हफ्ते जो घोषणापत्र जारी किया है, उसमें इस नारे की जगह चुनावी नारा दिया गया है- ‘कांग्रेस आएगी, खुशहाली लाएगी।’

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