मृत्युंजय सिंह
भले ही द्रमुक के उदयनिधि स्टालिन जैसे नेता हिंदुत्व के खिलाफ अपनी नफरत का प्रदर्शन कर रहे हों, लेकिन आज अगर विश्व परिदृश्य पर दृष्टि दौड़ाएं तो यह स्वीकार करने में समस्या नहीं कि यह हिंदुओं के वैश्विक अभ्युदय, स्वीकृति और विस्तार का समय है। ऐसी घटनाएं घट रही हैं, जिनकी हिंदू समाज कल्पना नहीं करता था। सिंगापुर में हिंदू थरमन षणमुगरत्नम की राष्ट्रपति चुनाव में विजय इस कड़ी की अभी अंतिम घटना नहीं है। भविष्य में ऐसी अनेक घटनाएं घटेंगी। अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी की दावेदारी में लगे विवेक रामास्वामी भी हिंदू हैं। उन्होंने सार्वजनिक रूप से यह कहने में संकोच नहीं किया कि उन्हें हिंदू होने पर गर्व है।
इस समय करीब 10 देशों में सत्ता के शीर्ष पर भारतीय मूल के नेता बैठे हैं, जिनमें पांच स्वयं को हिंदू कहते हैं। ये सब हिंदू धर्म को शासन और राजनीति से लेकर व्यक्तिगत-सार्वजनिक व्यवहार का मापदंड बताने में संकोच नहीं करते। ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक का हिंदू होने वाला वक्तव्य हाल में चर्चा का विषय बना। कैंब्रिज विश्वविद्यालय में आयोजित मोरारी बापू की राम कथा में ऋषि सुनक ने कहा कि ‘बापू, मैं यहां एक प्रधानमंत्री के रूप में नहीं, बल्कि एक हिंदू के रूप में उपस्थित हूं।’
किसी पश्चिमी देश के प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक सभा में स्वयं के हिंदू बताने में हिचक नहीं दिखाई। उन्होंने कहा, ‘मैं उसी प्रकार शासन करना चाहता हूं जैसे हमारे धार्मिक ग्रंथों में बताया गया है। श्रीराम से उन्हें साहसपूर्वक कठिन चुनौतियों का सामना करने, स्थिर रहने, विनम्रतापूर्वक शासन करने की प्रेरणा मिलती है।’ वास्तव में वह विश्व भर में हिंदुओं के अंदर सुदृढ़ हो रहे सामूहिक विचार और व्यवहार को ही अभिव्यक्त कर रहे थे। ऋषि सुनक जब 2020 में वित्त मंत्री बने थे तो उन्होंने गीता पर हाथ रखकर शपथ ली थी। उनकी तरह अमेरिका में विवेक रामास्वामी ने कहा, ‘मैं हिंदू धर्म को मानता हूं। यह मुझे परिवार से विरासत में मिला है। हिंदू होने के नाते मैं अन्य नेताओं के मुकाबले दूसरों की धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों की बेहतर ढंग से रक्षा कर सकता हूं। मेरा उद्देश्य अमेरिकी समाज में परिवार, आस्था और देशभक्ति के मूल्यों को सहज करना है। अमेरिकी समाज इन मूल्यों को खोता जा रहा है।’
जरा सोचिए, अमेरिका के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की दौड़ में शामिल व्यक्ति और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि वे अपने देश की समस्याओं का समाधान हिंदू धर्म में देखते हैं। ये असाधारण घटनाएं हैं। नि:संदेह इससे हिंदुत्व विरोधियों के कलेजे पर सांप लोट रहा होगा। ऐसा नहीं है कि स्वयं को लिबरल-सेक्युलर कहने वालों की जमात ब्रिटेन, अमेरिका या सिंगापुर में नहीं है। अब जब पश्चिमी शिक्षा प्रणाली में शिक्षित नेता स्वयं को हिंदू कहते हुए यह बता रहे हैं कि हमारे धर्मग्रंथ, ऋषि-मुनि और भगवान मानव कल्याण के लिए काम करने की ताकत देते हैं तो मानना चाहिए कि दुनिया बदल रही है।
ब्रिटेन के साथ अमेरिका और सिंगापुर की घटनाएं बता रही हैं कि हिंदुओं और हिंदुत्व को लेकर विश्व बदल रहा है। हिंदुओं की स्वीकृति बढ़ रही है। इस बदलाव को समझने की आवश्यकता है। वस्तुतः विदेश में हिंदुओं ने निजी व्यवसाय और करियर तक सीमित न रहकर वहां के सार्वजनिक जीवन में भी भूमिकाएं निभाई हैं। कुछ समय से पश्चिमी देशों में हिंदुओं के विरुद्ध घृणा अभियान और हिंसा के समाचारों ने सबको विचलित किया था, लेकिन ब्रिटेन, अमेरिका एवं अन्य देशों में हिंदुओं ने स्थिति को साहसपूर्वक संभाला।
आज अमेरिका में हिंदू दिवस मनाया जा रहा है। इस वर्ष अमेरिकी संसद में दो हिंदू सम्मेलन हो चुके हैं। इसमें डेमोक्रेटिक एवं रिपब्लिकन दोनों पार्टियों के सांसदों और नेताओं ने भाग लिया। अमेरिका के जार्जिया प्रांत की असेंबली ने हिंदुओं के पक्ष में प्रस्ताव पारित किया, जिसमें बताया कि हिंदुत्व की विचारधारा कितनी व्यापक और सर्वसमावेशी है।
हिंदुत्व के प्रचार-प्रसार के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अलावा इस्कान और गायत्री परिवार जैसे कई धार्मिक संस्थानों, साधु-संतों के आश्रम देश-विदेश में सक्रियता के साथ काम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी संपूर्ण विश्व में भारतवंशियों के बीच भारतीय सभ्यता-संस्कृति का बहुत प्रभावी तरीके से गुणगान करते रहे हैं। परिणामस्वरूप आज धर्म-संस्कृति-सभ्यता को लेकर तमाम संकोची हिंदुओं का आत्मविश्वास बहुत तेजी से बढ़ रहा है।
देवी-देवताओं की मूर्तियों, हवन-पूजन आदि को लेकर हिंदू धर्म के बारे में विरोधियों द्वारा पैदा की जा रही गलतफहमियों तथा हिंदू धर्म को इस्लाम के समानांतर कट्टर एवं अंधविश्वासी साबित करने वालों को रामास्वामी और सुनक जैसे नेता ध्वस्त कर रहे हैं। विदेश में यह विचार लोगों के बीच जा रहा है कि हिंदू धर्म सभी पंथों को समाहित कर सबको सम्मान देने वाला जीवन दर्शन है। ऐसा जीवन दर्शन अपनाने से ही सच्ची समानता, सहकार, परस्पर पूरकता पर आधारित विश्व व्यवस्था कायम हो सकेगी।
आज कई देशों में हिंदू बड़ी संख्या में हैं, जो राजनीति एवं प्रशासन से लेकर शिक्षा और विज्ञान में शीर्ष पर हैं। उनका आत्मविश्वास सही रूप में प्रकट होकर आगे बढ़ता रहा तो एक दिन विश्व के मार्गदर्शक हिंदू ही होंगे। यह संपूर्ण विश्व के हित में होगा। इसमें हर भारतीय हिंदू-सिख-बौद्ध-जैन का दायित्व है कि छोटे-बड़े असंतोष, व्यक्तिगत मतभेद आदि को परे रखकर ऐसी भूमिका निभाएं, जिससे बदलाव की गति बाधित नहीं हो।