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गाजियाबाद में नदिया पार के एक कोतवाल को किसका आर्शीवाद ? बिना मिसकंडक्‍ट हटे जमे है मलाई दार कोतवाली में

पड़ोसी जनपद में तैनाती की दौरान मिली थी मिसकंडक्‍ट, गाजियाबाद में तीसरी बार मिल गया कोतवाली को चार्ज

खोजी संवाददाता

गाजियाबाद। ‘अंधा बांटे रेवडी फिर..फिर अपनों को दे….’ गाजियाबाद में ये कहावत पुलिस कमिश्‍नरेेट पर एकदम फिट बैठती हैं, ये कहें तो गलत न होगा। क्‍योंकि यहां थानों से लेकर चौकी इंचाजों को बिना योग्‍यता और उनका रिकार्ड देखे आंख मूंदकर चार्ज बांटे जा रहे हैं। जिसके उपर पुलिस महकमें के आला अफसरों की मेहरबानी होती है उसेे थाना मिलने में उतनी ही आसानी होती है। इस बात का उदाहरण है इन दिनों गाजियाबाद के पुलिस महकमे में नदिया पार के एक काेतवाल । जिनको लेकर अच्‍छी चर्चा है कि नदिया पार के एक कोतवाल साहब को पड़ोस के जिले में तैनाती के दौरान मिसकंडक्‍ट मिली थी। लेकिन गाजियाबाद में आने के बाद वे बिना मिसकंडक्‍ट हटे पहले भी दो थानो के कोतवाल रहे और अब पिछले डेढ महीने से नदिया पार के सबसे पॉश कालोनी वाले मलाई दार थाने के कोतवाल बने हुए हैं।

बता दें कि अगर किसी सिपाही से इंसपेक्‍टर तक किसी पुलिस कर्मी को मिसकंडक्‍ट यानि जिला के कप्‍तान की तरफ से प्रतिकूल रेंटिंग दी जाती है तो उसे काटने का अधिकार आईजी स्‍तर के अधिकारी के पास ही होता है। इससे पहले उसे किसी जिम्‍मेदारी भरे पद पर या किसी थाने आदि का नहीं सौंपा जा सकता। अगर किसी कारण वश या अफसरों की कमी के कारण जिला पुलिस के अधिकारी प्रतिकूल टिपण्‍णी मिले इंसपेक्‍टर को थाने का कोतवाल बना भी दें तो इसके लिए आईजी से मंंजूरी ली जाती है। अगर आईजी स्‍तर से मंजूरी का आवदेन निरस्‍त कर दिया जाए तो ऐसे कोतवाल को हटाना पडता है।

लेकिन हम यहां नदिया पार के जिस कोतवाल की बात कर रहे हैं उनके उपर शायद किसी बड़े पुलिस अधिकारी का आर्शीवाद है। क्‍योकि इन कोतवाल साहब को मिसकंडक्‍ट के रहते पहले कई महीनों गाजियाबाद में पहले भी कोतवाल बनाकर रक्‍खा गया । लेकिन जब इस पर आपत्ति हुई तो उन्‍हें हटा दिया गया। लेकिन कुछ समय बाद ही जुगाडबाज कोतवाल ने कमिश्‍नरेट के बड़े बॉस को कुछ इस तरह शीशे में उतारा कि बड़े साहब ने बिना उन्‍हें नदिया पार के सबसे चर्चित थाने का कोतवाल बना दिया। इस कोतवाली के इलाके में सबसे ज्‍यादा नौकरशाह, जज, वकील, पत्रकार और बिजनेसमैन रहते हैं।

सूत्रों का कहना है कि कोतवाल साहब की मिसकंडक्‍ट हटाने के लिए आईजी को भेेेजी गई मंजूरी की चिट्ठी इस बार भी खारिज हो गई है। पुलिस के गलियारे में चर्चा थी कि कांवड यात्रा खत्‍म होंने के बाद कोतवाल साहब किइस बडी कोतवाली से भी विदाई हो जाएगी । लेकिन शायद बड़े साहब को अभी जिले में कोई दूसरा काबिल इंसपेक्‍टर नदिया पार के इस थाने की कोतवाली के लिए मिल नहीं रहा है। या फिर कोतवाल साहब के उपर अपने आका का आ‍र्शीवाद इतना मजबूत हैं कि नियम कानून भी उसके सामने बौने हो गए हैं।

हैरानी की बात है कि प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने प्रदेश के बड़े जिलों में कानून व्‍यवस्‍था और पुलिसिंग को बेहतर बनाने के लिए गाजियाबाद में कई जिलों की तरह पुलिस कमिश्‍नरेट सिस्‍टम लागू किया था। कमिश्‍नरी बनने के बाद आईजी स्‍तर के अधिकारी को पुलिस कमिश्‍नर के रूप में तैनाती मिली जिसकी जिम्‍मदारी पहले एसएसपी रेंक के आईपीएस के उपर होती थी। उनकी सहायता के लिए दो तीन जूनयिर आईपीएस भी होते थे। लेकिन कमिश्‍नरेट बनने के बाद जिले में झोला भरकर आईपीएस और बडी संख्‍या में पीपीएस अफसरों की तैनाती हो गई है। जिले में पहले से कही ज्‍यादा पुलिर्सक‍मी तैनात किए गए है और पुलिस को पहले से ज्‍यादा फंड भी मिला है। लेकिन अपराध नियंत्रण को लेकर फिर भी लोगों को राहत मिलती नहीं दिख रही है। इतना ही पारदर्शिता के नाम पर पहले जो रेवडियां बटंती थी कुछ ऐसे ही होंने की चर्चा भी सुनने का मिलती रहती है। इसलिए कमिश्‍नरेट बनने से लोगों का कितना भला हुआ इसका संतोषजनक जवाब किसी के पास नहीं हैं।

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