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तो क्‍या 2024 में ‘भारत’ का मुकाबला ‘इंडिया’ से होगा !

इंडिया नाम रखना विपक्षी दलों की औपनिवेशिक मानसिकता का प्रतीक

विशेष संवाददाता

नई दिल्‍ली। देश में होने वाले अगले लोकसभा चुनाव को लेकर बिगुल फूंक दिया गया है। 18 जुलाई 2023 को विपक्षी पार्टियों ने 26 दलों की बैठक की तो सत्ता पक्ष ने 38 पार्टियों की बैठक की। सत्ता पक्ष की बैठक राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के तहत हुई जबकि विपक्ष को अपना यूपीए नाम बदलने को मजबूर होना पड़ा। उन्होंने नया नाम ‘इंडिया’ रखा है यानि इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस। सवाल यह उठता है कि यूपीए नाम क्यों बदलना पड़ा। इसके लिए यूपीए के कार्यकाल 2004-2014 को याद करना होगा जब घोटाला दर घोटाला किए गए और भ्रष्टाचार के नए रिकार्ड कायम किए गए। यानि वे देश की जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए नाम बदल रहे हैं। उनको लगता है कि नाम बदल लेने से जनता उनके भ्रष्टाचार के कारनामो को भूल जाएगी। वे भूल गए- ये जो पब्लिक है सब जानती है! इंडिया नाम रखना भी उनकी औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाती है। इस लिहाज से कहा जा सकता है कि 2024 का चुनाव ‘भारत’ बनाम ‘इंडिया’ और वास्तविक स्वराज्य बनाम औपनिवेशिक मानसिकता के बीच होगा।

2024 में वास्तविक स्वराज्य बनाम औपनिवेशिक मानसिकता के बीच मुकाबला!
विपक्ष इसे भारत बनाम ‘इंडिया’ का मुकाबला बना रहा है। यह विपक्ष की औपनिवेशिक मानसिकता को जाहिर करती है। जिस तरह अंग्रेजों ने फूट डालो और राज करो की औपनिवेशिक मानसिकता से हमें गुलाम बनाए रखा अब उसे ही ये परिवारवादी पार्टियां दोहराना चाहती हैं। इस तरह यह मुकाबला वास्तविक स्वराज्य बनाम औपनिवेशिक मानसिकता होगी। क्योंकि पीएम मोदी वास्तविक स्वराज्य ला रहे हैं और दूसरी तरफ परिवारवादी पार्टियों की औपनिवेशिक मानसिकता जगजाहिर है। मोदी सरकार हर गांव में बिजली पहुंचाती है, देश के कोने-कोने में शौचालय बनवाती है, एलपीजी सिलेंडर हर गरीब महिला के घर पहुंचाते हैं, पक्का मकान हर गरीब को मिलता है। इन सब योजनाओं में किसी खास वर्ग, जाति या धर्म का ख्याल नहीं रखा जाता बल्कि यह हर जरूरतमंद तक पहुंचती है और यही तो वास्तविक स्वराज्य है। वहीं औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त परिवारवादी पार्टियां अपने परिवार के हित को ही आगे ही रखती हैं इसीलिए उनके राज में घोटाले दर घोटाले सामने आते हैं।

जनता को बेवकूफ बनाने के लिए रखा गया ‘इंडिया’ नाम
अगर 2024 का मुकाबला यूपीए बनाम एनडीए के बीच होगा तो लोग इनके प्रदर्शन की तुलना करेंगे। यानि यूपीए का 2004-14 कार्यकाल और एनडीए का 2014-24 कार्यकाल। और यहां एनडीए उन्हें आसानी से हरा देगी। इसलिए लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए वे एक नए गठबंधन के रूप में दिखना चाहते हैं और खुद को एक नया रूप देना चाहते हैं, चेहरे के ऊपर नया मुखौटा लगाना चाहते हैं। यानि वह काम के बल पर नहीं, दिमागी खेल से चुनाव जीतना चाहते हैं।

विपक्षी दल पुराने वादों को नई चाशनी में पेश करेंगे
विपक्षी दल चाहते हैं कि लोग भ्रमित हो जाएं और 2004-14 के उनके घोटाले को भूल जाएं और प्रदर्शन के आधार पर उनका मूल्यांकन न करें। वे खुद को जो भी नाम दें, यह कभी न भूलें कि यह वही यूपीए गठबंधन है, जिसने नए नाम के साथ 2004-14 के दौरान भारत पर शासन किया था। यानि 2004 में उन्होंने मुखौटा बदला था। अब वे उन्हीं पुराने वादों के साथ आएंगे- हम महंगाई कम करेंगे, हम बेरोजगारी दूर करेंगे, हम भारत को महाशक्ति बनाएंगे आदि-आदि। इसलिए उनके हर वादे को उनके 2004-14 के प्रदर्शन के आधार पर आंकना होगा और उसकी तुलना एनडीए के 2014-24 के प्रदर्शन से करना होगा और फिर उसके अनुसार वोट करने का फैसला करना होगा।

भ्रष्टाचार का दाग हटाने के लिए यूपीए बन गया इंडिया
यूपीए के 10 साल के कार्यकाल 2004-2014 को देखें तो घोटाला दर घोटाला किए गए और भ्रष्टाचार के नए रिकार्ड कायम किए गए। वहीं एनडीए के 2014 से अब तक नौ साल के कार्यकाल को देखें तो साफ पता चलता है भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसने के साथ ही देश विकास के नए-नए कीर्तिमान गढ़े गए। इसे इस बात समझ सकते हैं कि 2004 में भारत दुनिया में 10वीं अर्थव्यवस्था था। दस साल बाद 2014 में भी 10वीं अर्थव्यवस्था था। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले नौ साल में 10वीं अर्थव्यवस्था से 5वीं अर्थव्यवस्था बन गया। यानि जब भ्रष्टाचार था तब भारत 10 साल में 10वीं अर्थव्यवस्था ही बना रहा और जब भ्रष्टाचार पर लगाम लगी तो पिछले नौ साल में 5वीं अर्थव्यवस्था बन गया।

यूपीए शासन में आकाश से पाताल तक हुआ घोटाला
यूपीए शासन में आकाश से पाताल तक घोटाले को अंजाम दिया गया। कोयला घोटाला: (2012), 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला: (2008), चॉपर घोटाला: (2012), टाट्रा ट्रक घोटाला: (2012), राष्ट्रमंडल खेल घोटाला: (2010), नोट के बदले वोट घोटाला: (2011), आदर्श घोटाला: (2012), आईपीएल घोटाला: (2013), सत्यम घोटाला: (2009) आदि। ये कुछ उदाहरण हैं, इन घोटालों की लंबी फेहरिस्त है। विपक्ष को क्या लगता है कि जनता इसे भूल जाएगी?

विपक्ष ने इंडिया नाम रखकर नैतिकता को तार-तार किया
विपक्ष वे अपने गठबंधन का नाम इंडिया रखकर नैतिकता को तार-तार किया है। अव्वल तो इंडिया नाम रखना ही नैतिकता को ताक पर रखने जैसा है। क्या अब विपक्ष कोई चुनाव हारता है तो लोग क्या कहेंगे कि ‘इंडिया’ हार गया? यह विपक्ष की नकारात्मक सोच को जाहिर करता है। भ्रष्टाचार से दागदार अपने दामन को बचाने के लिए विपक्षी पार्टियां किस कदर नीचे गिर सकती हैं यह उसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। देश की जनता यह सब देख रही है।

‘इंडिया’ को लगातार हराने में जुटे रहने वाले अब ‘इंडिया’ गा रहे
कांग्रेस नेता राहुल गांधी सहित विपक्षी नेता तो ‘इंडिया’ को हराते ही चले आ रहे हैं। देश के लोगों के बीच मोहब्बत की दुकान से नफरत की खाई पैदा करते रहे हैं। येन-केन प्रकारेण देश की सत्ता पर काबिज होने के लिए विदेशी ताकतों से मदद लेते रहे हैं, विदेशी देशों से हस्तक्षेप की मांग तक कर चुके हैं। लेकिन जनता जानती है कि देश में जितना ही नफरत का माहौल होगा उतना ही देश की हार होगी। बेशक वे नाम इंडिया रख लें लेकिन उनके चाल-चरित्र से देश के लोग बखूबी अवगत हैं और उनकी इस तरह की कोई चाल सफल नहीं होगी।

‘इंडिया’ नाम रखने के पीछे विपक्ष की नफरती मंशा
अभी 2024 तक इंडिया चर्चा में रहेगी। अगर किसी ने विपक्षी गठबंधन वाली ‘इंडिया’ पर तंज कसा तो वह उसे देश के साथ जोड़ देंगे और इस बात कि पूरी संभावना है कि अपने राज्य में उस व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाएंगे, आम जनता को डराएंगे। अतः सुप्रीम कोर्ट-चुनाव आयोग को इस ओर ध्यान देना चाहिए।

विपक्षी दलों को कुशासन, तुष्टिकरण और भारत विरोधी काम पर ही परखें
सत्ता के लिए विपक्षी दल कुछ भी कर सकते हैं। 2024 चुनाव से पहले हो सकता है कि विपक्षी दल इस तरह की गारंटी के साथ जनता के सामने आएं। पूरे देश को मुफ्त बिजली देंगे। पूरे देश की महिलाओं के लिए निःशुल्क बस सेवा। देश के सभी बेरोजगार युवाओं को 3000 रुपये प्रति माह। राष्ट्र की समस्त महिलाओं को 2000 रुपये प्रतिमाह। 60 वर्ष से ऊपर के सभी लोगों को 5000 रुपये पेंशन आदि। लेकिन बेहतर है कि उनके कुशासन, तुष्टिकरण, हिंदू विरोधी, भारत विरोधी, महंगाई, भ्रष्टाचार, एनपीए और बैड लोन, बैंक संकट को तथ्यों और आंकड़ों के साथ उनके काम को परखें और जिन राज्यों में उनकी सरकारें हैं वहां उनकी गारंटी की क्या हाल है उसे भी देखें समझें।

परिवार को ही ‘इंडिया’ मानती हैं ये पार्टियां
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुरू से यही कह रहे थे कि यह पार्टियां अपने परिवार और खुद को ही ‘इंडिया’ मानती हैं और अब जब महागठबंधन ने अपने दल का नाम ‘इंडिया’ रखा तो खुद ही इस बात की पुष्टि कर दी है।

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