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परिवार निर्मात्री ही नहीं राष्ट्र निर्मात्री है स्त्री – सीता अन्नदानम

राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापिका मौसी लक्ष्मीबाई केलकर की 118 वें जयंती दिवस पर कार्यक्रम

विशेष संवाददाता

नई दिल्‍ली। राष्ट्र सेविका समिति की प्रबुद्ध विभाग मेधावनी सिंधु सृजन दिल्ली प्रांत ने राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापिका वंदनीय मौसी जी लक्ष्मीबाई केलकर की 118 वें जयंती दिवस पर कार्यक्रम का आयोजन किया।

वंदनीय मौसी जी की याद में आयोजित इस कार्यक्रम में राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख कार्यवाहिका सीता गायत्री अन्नदानम कार्यक्रम की मुख्य वक्ता रहीं। अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि “महिला की सुरक्षा के लिए माताओं को अपने बच्चों में मूल्य समाहित करने की ज़रूरत है। परिवार रूपी रथ का पुरुष अगर रथी है तो स्त्री सारथी है। जैसे महाभारत के युद्ध में कुरुक्षेत्र के मैदान में रथ पर सवार अर्जुन रथी बन कर भले युद्ध लड़ रहे थे लेकिन उनका मार्गदर्शन करने वाले श्री कृष्ण थे जो सारथी बन कर उन्हें सम्भाल रहे थे। माता जीजा बाई, अहिल्याबाई होलकर और रानी झाँसी जैसी वीरांगनाओं का उदाहरण देते उन्होंने कहा कि स्त्री सिर्फ़ परिवार के निर्माण में ही नहीं बल्कि राष्ट्र के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

सीता गायत्री जी ने बोला कि मौसीजी का अवतरण दिवस हम संकल्प दिवस के रूप में मनाते हैं। राष्ट्र सेविका समिति का उद्देश्य महिला के लिए, महिला के द्वारा और राष्ट्र के लिए है समर्पित महिलाओं को तैयार करना है।  महिलाओं में कैसे राष्ट्रवाद बढ़े उसका काम समिति की स्थापना जब 1936 में हुआ उसके बाद से अभी तक किया जा रहा है । उन्होंने कहा कि राष्ट्र सेविका समिति महिलाओं के अंतर की अंतर्निहित शक्तियों को बाहर निकालने का कार्य कर रहा है और 650 जिलों तक नेटवर्किंग का कार्य हो रहा है। केंद्र में जो विचार किया जाता है। वही ग्रामीण स्तर तक ले जाने का कार्य समिति की बहने कर रही हैं। उन्होंने स्वामी विवेकानंद का उदाहरण देकर कहा कि भारत की महिलाओं का उद्धार करने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि वह स्वयं सिद्ध हैं, वे अपने जीवन के लक्ष्य को जानती हैं। वह अपना उद्धार स्वयं कर सकती हैं। आज की महिलाओं में अपनी शक्तियों का विस्मरण हो गया है लेकिन आवश्यकता इस बात की है कि महिलाएं अपनी संस्कृति, अपनी शक्तियों को फिर से स्मरण करें और समाज को एक नई दिशा दें।

मुख्य अतिथि के रूप में इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सह कार्यवाह कृष्ण गोपाल जी थे।  संघ सह कार्यवाह कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि वंदनीय लक्ष्मी बाई जी का संपूर्ण जीवन अनुकरणीय रहा है। उन्होंने कहा कि भारत की महिलाएं वैदिक काल से ही जागरूक व शिक्षित रही हैं| वैदिक काल मैं 26 महिलाओं ने वेदों की ऋचाएं लिखी हैं। अपाला, मैत्री, गार्गी, सूर्या सावित्री, सीता, दमयंती  ये सभी वो विदुषियाँ हैं जिन्होंने भारत की संस्कृति को वेदों में उकेरा जिनका अनुकरण हम आज  करते हैं।  जैन धर्म व बौद्ध धर्म के समय की महिलाएं भी जागरूक व शिक्षित थीं।उन्होंने कहा कि प्राचीन भारत में पुरुषों और स्त्रियों में कभी भेदभाव नहीं किया गया।  दूसरे धर्म में कहा गया कि पहले पुरुष आया, पहले आदम आए फिर उसकी जरूरत के लिए ईव आयी। हमारा मौलिक विचार थोड़ा अलग है हमारे यहाँ स्त्रियाँ ईश्वर को जन्म देती हैं। सभी धर्म में ईश्वर केवल पुरुष हो सकता है लेकिन हिन्दू धर्म में ईश्वर अर्धनारिनागेश्वर के रूप में हैं।

संघ के सह कार्यवाह  कृष्ण गोपाल जी ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि महिलाएं हमारे संस्कृति और विज्ञान की  जननी हैं।  भारत में अनंत काल तक महिलाएं की अहम भूमिका रहेगी।  हम अपनी सीता माता की अनंत काल से पूजा करते आए हैं।

कार्यक्रम की अध्यक्षा अधिष्ठात्री वात्सल्य ग्राम दीदी मां साध्वी  ऋतंभरा थीं।  दीदी मां साध्वी ऋतंभरा ने कहा कि भारत की जानकी के ऊपर कोई दश्यू अगर कुदृष्टि रखता है तो भारतीय नारी  लंका के स्वर्णप्रचीर को चीर  कर रखने की शक्ति रखती है।  त्रिदेव को भी नन्हा बालक बनाने का दम भारत की नारी में है। नारी ही निर्मात्री है, विधाता है, युद्ध मे भी दशरथ का साथ दे सकती है,  अंग्रेजों से भी लोहा ले सकती है। दीदी माँ साध्वी ऋतंभरा ने कहा कि दिल दुखता है जब कॉलेज की लड़कियां कॉलेज के बाहर सिगरेट के छल्ले बनाती है, जब सोशल मीडिया पर गंदी गालियां देती हैं और जब सड़कों पर शराब की बोतलें तोड़ती हैं। नारी बीज है और विशाल वन बन कर प्रकट हो जाती है। हम वो हैं जिसके कोख में आने को ईश्वर भी तड़पते हैं।

आपको बता दें कि राष्ट्र सेविका समिति भारतीय महिलाओं का सबसे बड़ा और सुदृढ़ संगठन है, जिसकी शाखाएं पूरे भारत में ही नहीं वरन विदेशों में भी फैली हुई हैं। भारत के 2380 शहरों, कस्बों और गांवों में समिति की 3000 शाखाएं चल रही हैं। समिति के 400 सेवा प्रकल्प चल रहे हैं। दुनिया के 16 देशों में समिति की सशक्त उपस्थिति दर्ज हो चुकी है। सेविका समिति सामाजिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक धरातल पर 1936 से काम कर रही है । शाखाओं के माध्यम से समिति की सेविकाएं (सदस्या) समाज और देश के समग्र विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।

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