विनीत शर्मा नादान
कवि/लेखक,पत्रकार/स्तंभकार
इस साल की शुरुआत में जब पहली बार भारत के तीन चर्चित पहलवानों ने भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर गंभीर आरोप लगाए तो खेलों की दुनिया में जैसे भूचाल आ गया। एक तरफ बृजभूषण सिंह ने ख़ुद पर लगे आरोपों को बेबुनियाद बताया तो दूसरी ओर ये खिलाड़ी इस बात पर अड़े रहे कि उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई हो। इसके बाद खेल मंत्रालय द्वारा एक जाँच कमेटी बनाई, लेकिन कोई कार्रवाई न होने का आरोप लगाते हुए पहलवान फिर जंतर-मंतर पर धरना देते रहे। इस बीच ये मामला जहाँ कोर्ट में पहुँच गया और भारतीय कुश्ती महासंघ भी दो हिस्सों में बँटते नज़र आने लगा।
दर असल इसी दौरान एक और चर्चा शुरू हो गयी कि ये मुद्दा खिलाड़ियों का नहीं है बल्कि कुश्ती महासंघ पर राजनीतिक वर्चस्व को लेकर इतना तूल पकड़ गया है। आरोपों के बीच एक आवाज यह भी उठ रही है कि यह हरियाणा लॉबी और उत्तर प्रदेश लॉबी के बीच कुश्ती संघ पर कब्जे की जंग है। अब भले ही ये मामला सीधे तौर पर सियासत से न जुड़ा हो लेकिन कुश्ती संघ को करीब से जानने वालों को याद होगा कि एक जमाने में हरियाणा का कुश्ती संघ पर वर्चस्व रहा है। बृजभूषण शरण सिंह ने जब पहली बार 2011 में भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष का चुनाव जीता था तो उन्होंने कांग्रेस नेता दीपेंद्र सिंह हुड्डा को शिकस्त दी थी जिनके पिता भूपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा के पूर्व सीएम हैं। यहां एक बात और ध्यान देने योग्य है कि देश के समस्त खेल संघ राजनीतिक व्यक्तियों द्वारा ही नियंत्रित होते हैं। पहली बार कोई (गैर राजनीतिक) खिलाड़ी, उड़न परी पी टी उषा, भारतीय ओलंपिक संघ की अध्यक्ष बनी है।
भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) की अध्यक्ष पूर्व ओलंपियन और राज्यसभा सदस्य, ने विरोध स्थल का दौरा किया पहलवानों को हर संभव सहायता का आश्वासन भी दिया। पीटी उषा ने धरने पर बैठे खिलाड़ियों से कहा कि एक सार्वजनिक विरोध में बैठने का फैसला करने से पहले अपने आरोपों को देखने के लिए काम करने वाली समिति की रिपोर्ट का इंतजार नहीं करना अनुचित है। उनका कहना था कि विरोध अनुशासनहीनता के बराबर है। खिलाड़ियों को सड़कों पर विरोध नहीं करना चाहिए था। उन्हें कम से कम समिति की रिपोर्ट का इंतजार करना चाहिए था। उन्होंने जो किया है वह खेल और देश के लिए अच्छा नहीं है। यह एक नकारात्मक दृष्टिकोण है। इस पर पहलवानों ने पीटी ऊषा के साथ अभद्रता की और उन्हें धरना स्थल छोड़ने पर मजबूर किया। पहलवानों ने पीटी उषा के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था कि वे उनकी टिप्पणियों से आहत हैं क्योंकि वे समर्थन के लिए उनकी ओर देख रहे हैं।
जनवरी में, खेल मंत्रालय ने शिकायतों की जांच के लिए ओलंपिक पदक विजेता मुक्केबाज एमसी मैरी कॉम की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति का गठन किया था। जिस पर पहलवानों ने, निराशा व्यक्त करते हुए कि सरकार ने पैनल के निष्कर्षों को सार्वजनिक नहीं किया, याचिका पर तत्काल सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने कहा, “अंतर्राष्ट्रीय खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले पहलवानों द्वारा यौन उत्पीड़न के बारे में याचिका में गंभीर आरोप लगाए गए हैं। इस मामले पर इस अदालत द्वारा विचार किए जाने की आवश्यकता है।” सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद दिल्ली पुलिस 28 अप्रैल को सात महिला पहलवानों (एक नाबालिग सहित) की शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज करने पर सहमत हुई थी। पहलवानों ने इसे “न्याय की खोज में अपनी पहली जीत” करार दिया। बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ कनॉट प्लेस पुलिस स्टेशन में दो प्राथमिकी दर्ज की गई थी। पहली प्राथमिकी एक नाबालिग पीड़िता द्वारा लगाए गए आरोपों से संबंधित है और पोक्सो अधिनियम के तहत दर्ज की गई है, साथ ही आईपीसी की प्रासंगिक धाराओं के साथ-साथ शील भंग आदि से संबंधित है।दिल्ली पुलिस ने कहा कि संबंधित धाराओं के तहत अन्य पहलवानों – वयस्क शिकायतकर्ताओं – की शिकायतों की व्यापक जांच करने के लिए दूसरी प्राथमिकी दर्ज की गयी है।
इस बीच खिलाड़ियों की शिकायत पर रेसलिंग फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह का बयान दर्ज किया गया और उनसे कुछ दस्तावेज़ मांगे गए। इस मामले की जांच के लिए स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम का भी गठन किया गया है जिसमें चार महिला पुलिस अधिकारियों समेत छह पुलिस टीमें काम करेंगी।
इसी बीच मौका देखकर तमाम राजनीतिक दल भी सक्रिय हो गये और धरना स्थल पर समर्थन देने पहुंचने लगे। कांग्रेस से प्रियंका वाड्रा, आम आदमी पार्टी से अरविंद केजरीवाल, वामपंथी सीता राम येचुरी, तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी, राष्ट्रवादी कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों के नेता धरना दे रहे पहलवानों के बहाने केंद्र सरकार पर हमलावर होने लगे, निशाना साधते नज़र आये। आम आदमी पार्टी के सोमनाथ भारती तो टेंपो में पलंग आदि सामान भरकर पहुंचे, तो वहीं अपने आप को अराजनीतिक कहने वाले तथाकथित किसान नेता राकेश टिकैत भी मौका भुनाने में पीछे नहीं रहे और धरना स्थल पर समर्थन देने पहुंच गए। राकेश टिकैत ने ऐलान किया कि हमारी बेटियां यहां बैठी है उन पर अत्याचार हो रहा है। बृजभूषण शरण सिंह को जेल भेजने तक हम आंदोलन समाप्त नहीं करेंगे, चालीस हजार ट्रैक्टर लेकर किसान आंदोलन की तर्ज़ पर फिर दिल्ली को बंद कर देंगे, और इन्हें न्याय दिलाने के लिए, भाजपा सरकार की ईंट से ईंट बजा देंगे। पहलवान तो पहलवान ठहरे वो इन राजनीतिक लोगों की जाल में फंस गये। रही सही कसर जाट ख़ापों को बीच में लाकर इन पहलवानों ने मसले को जाट बनाम अन्य बना दिया। इन्होंने कोर्ट में केस डालने के बावजूद घोषणा कर दी कि जो हमारी खाप निर्णय देगी हम वही मानेंगे और मामला 16 जने की बजाय उलझता चला गया।
अब समझते हैं कि असलियत में क्या क्या वजहें रही जिससे ये हरियाणा के पहलवान असंतोष का शिकार क्यों हुये। बताया गया कि बृजभूषण सिंह द्वारा कुछ नियमों में बदलाव इनको रास नहीं आ रहे थे। जिनमें एक था- दो सेंटर अलग अलग बनवा दिया जाना, महिलाओं के लिए लखनऊ में तथा पुरुषों के लिये सोनीपत में भी। यही इन पहलवानों के असंतोष का कारण बताया जा रहा है। इस बात को लेकर भी नाराज़गी थी कि सेंटर अलग-अलग क्यों किया जा रहा है। एक पहलवान के अनुसार सोनीपत में हम सब एक साथ अभ्यास करते थे और उस दौरान अनुशासन की कमियाँ नज़र आईं जिसका कुश्ती पर असर पड़ता दिखा। इसीलिये महिला और पुरुष खिलाड़ियों के सेंटरों में बदलाव लेने का फ़ैसला किया गया।
एक और नियम जो बृजभूषण सिंह ने बदला वो ये है कि पहले राष्ट्रीय प्रतियोगिता में नंबर वन आने वाले राज्य अगले नेशनल्स में दो टीमें लेकर जा सकते थे, इससे उस राज्य का दबदबा बन रहता था। जिसमें बदलाव किया गया, ताकि अन्य राज्यों के खिलाड़ियों को भी मौक़ा मिल सके। नाम न बताने की शर्त पर कुछ महिला कुश्ती खिलाड़ियों का कहना है कि पहले ये पहलवान कहते थे एफआईआर होनी चाहिए। अब जब इस मामले में एफ़आईआर दर्ज हो चुकी हैं ये खिलाड़ी कह रहे हैं गिरफ़्तारी होनी चाहिए। इन खिलाड़ियों का मानना है कि एशियन गेम्स आने वाले हैं और ऐसे में इन खिलाड़ियों को अब आगे की कार्रवाई का इंतज़ार करना चाहिए और खेल पर फ़ोकस करना चाहिए।
अब समझते हैं कि अन्य प्रदेशों के कुश्ती फैडरेशन व पहलवानों का क्या कहना या सोच है
उत्तर प्रदेश कुश्ती संघ के अधिकारियों का कहना है कि बृजभूषण सिंह के ख़िलाफ़ हो रहा प्रदर्शन ग़लत है, क्योंकि वे हर खिलाड़ी की मदद करते हैं। एक अन्य पदाधिकारी के अनुसार उनका एक कॉलेज है, जहाँ हज़ारों की संख्या में लड़कियाँ पढ़ती हैं। वहीं कुश्ती में यूपी की कई लड़कियाँ हैं, लेकिन किसी ने ऐसे आरोप नहीं लगाए हैं। यह राजनीतिक रूप से संघ पर दबदबा कायम रखने के लिये बृजभूषण शरण सिंह को बदनाम करने के उद्देश्य से हरियाणा के इन पहलवानों को मोहरा बनाया जा रहा है। जंतर-मंतर पर बैठी इन महिला कुश्ती खिलाड़ियों को सपोर्ट करने हरियाणा के ही अन्य पहलवान क्यों नहीं आ रहे हैं? बताया जा रहा है कि बृजभूषण शरण सिंह की ओर से लागू किए गए नियम भी इसके कुछ कारण हैं। जैसे कि पहले खिलाड़ी इंडिया टीम में चयन के लिए होने वाले कैंप में आने की बजाए सीधे ट्रायल देते थे, लेकिन बृजभूषण सिंह को लगा कि इससे अच्छे खिलाड़ियों को मौक़ा नहीं मिल पाता थ। मान लीजिए, कोई खिलाड़ी कुश्ती में 65 किलोग्राम वज़न वर्ग में ओलंपिक के लिए क्वालिफ़ाई कर जाता है, तो इस खिलाड़ी को इसी वज़न वर्ग में नेशनल स्तर पर जो खिलाड़ी जीतता है, उससे मुक़ाबला करना होगा। अगर ओलंपिक के लिए क्वालिफ़ाई किया हुआ खिलाड़ी इसमें हार जाता है, तो उसे 15 दिन बाद फिर ट्रायल के लिए मौक़ा दिया जाएगा। इस ट्रायल में जीत के बाद ही ओलंपिक के लिए क्वालिफ़ाई किया हुआ खिलाड़ी टीम इंडिया में शामिल हो पाएगा। इसको काफ़ी लोग नाजायज़ प्रक्रिया मानते हैं? क्या प्रतिभा के हिसाब से खिलाड़ियों को मौक़ा देना और नियम बनाना ग़लत बात है? विरोध कर रहे खिलाड़ियों की नाराज़गी इसी बात से है। मेलबर्न में हुई कॉमेनवेल्थ रेसलिंग चैम्पियनशिप में रजत पदक जीतकर आने वाले एक पहलवान वरुण कुमार कहते हैं कि वो साल 2007 से कुश्ती से जुड़े हुए हैं। उनका कहना है कि बृजभूषण सिंह ने कैंपों में अनुशासन पर ज़ोर दिया और कई बार कार्रवाई भी की है, जो इन खिलाड़ियों को पसंद नहीं थी।
चंडीगढ़ यूटी रेसलिंग एसोसिएशन वालों का कहना है कि वे इस मामले में कुछ नहीं कहना चाहेंगे और वे कोर्ट के फ़ैसले का इंतज़ार करेंगे।
गुजरात स्टेट रेसलिंग एसोसिएशन वाले मानते हैं कि हरियाणा के खिलाड़ी काफ़ी मज़बूत होते हैं और वहाँ की राज्य सरकार अन्य राज्यों की तुलना में अपने खिलाड़ियों को काफ़ी सुविधाएँ देती हैं, इसलिए हरियाणा लॉबी संघ पर दबदबा बनाए रखने के लिये इन खिलाड़ियों को मोहरा बना रहे हैं। ये वर्चस्व की लड़ाई है बेबुनियाद आरोपों की आड़ में। पिछली बार दीपेंदर हुड्डा ने चुनाव लड़ा था, लेकिन नहीं जीते। बृजभूषण का कार्यकाल तो ख़त्म हो ही रहा है अगर इन्हें कुश्ती संघ पर नियंत्रण करना है तो चुनाव लड़ना चाहिए लेकिन ऐसे सस्ते आरोप नहीं लगाने चाहिए।
छत्तीसगढ़ रेसलिंग एसोसिएशन वाले भी इसे राजनीतिक मुद्दा बताते हैं। उनके मुताबिक पिछले पाँच सालों में कुश्ती में कई सुधार हुए हैं, जिसे नकारा नहीं जा सकता।
हिमाचल प्रदेश रेसलिंग एसोसिएशन के एक शीर्ष पदाधिकारी के अनुसार इस ख़बर के आते ही उन्होंने एसोसिएशन में शामिल सभी लड़कियों से बात की, लेकिन उन्होंने किसी प्रकार के यौन उत्पीड़न से इनकार किया। मगर इस मुद्दे के बाद अब पेरेंट्स बहुत डरे हुए हैं कि कहीं उनके बच्चे के साथ ग़लत न हो जाए। हालाँकि अधिकांश का मानना है कि ये राजनीतिक मुद्दा है।
स्पोर्ट्स अथॉरिटी के अधिकारियों का कहना है कि स्पोर्ट्स अथॉरिटी के किसी भी कैंप से पहले खिलाड़ियों और कोच की वर्कशॉप होती है, जिसमें बताया जाता है कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए।जब भी महिला खिलाड़ियों के साथ पुरुष कोच जाते हैं, तो महिला एसिटेंट कोच साथ में रहती हैं, ताकि अगर कोई आरोप लगें, तो कम से कम दो कोच रहें।ये मामला सामने आने के बाद अब ये और गंभीर तरीक़े से होगा और मंत्रालय की तरफ़ से भी निर्देश गए हैं कि ऐसे मामले सामने नहीं आने चाहिए।
अब जबकि पुलिस द्वारा धरना समाप्त करा दिया गया है और आगे यह आंदोलन नहीं चल पाएगा तो प्रश्न यही उठता है कि आखिर इन लोगों ने क्या हासिल किया। इस पूरे प्रकरण में कोई पक्ष अपने आप को विजेता नहीं कह सकता, आंदोलनरत खिलाड़ियों को कुछ नहीं मिला 36 दिन तकलीफ गिरने के बाद उन्हें वापस जाना पड़ा, बृजभूषण शरण सिंह को चरित्र हनन का की बदनामी झेलनी पड़ी, केंद्र सरकार को मूक दर्शक और असंवेदनशील होने का दंश झेलना पड़ा लेकिन इनके पीछे खड़े होकर राजनीति करने वाले अवसर वादी, आपदा में अवसर तलाश लेने वाले दलों ने अपनी अपनी सियासी रोटियां तो सेक ली। परेशानियां और बदनामियां किन्हें झेलनी पड़ी। जिन खिलाड़ियों को देश ने धन दौलत, नौकरी सम्मान दिया, जनता जिन्हें सर आंखों पर बिठाया करती थी, मान सम्मान देती थी वो अपनी थोड़ी सी नादानी के चलते कुश्ती संघ पर वर्चस्व की इस लड़ाई में दांव पर लग गये यह बहुत दुखद है।